सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ एक व्‍यक्ति की लिविंग विल को मंजूरी दे दी है। सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने एक मरणासन्‍न व्‍यक्ति की लिविंग विल यानी इच्‍छा मृत्‍यु के वसीयत की सुनवाई के दौरान यह फैसला दिया है।


ऐसा तरीका होना चाहिए जिससे हो सके गरिमापूर्ण मृत्यु


एक मरणासन्न व्यक्ति की लिविंग विल यानी इच्छा मृत्यु की वसीयत को चीफ जस्टिस दीपक मिश्र के नेतृत्व में संविधान पीठ ने मंजूरी दे दी है। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि लाइफ टू राइट में गरिमापूर्ण मृत्यु का अधिकार है यह तो कोर्ट नहीं कहेगा लेकिन न्यायालय चाहेगा कि गरिमापूर्ण मृत्यु पीड़ा रहित होनी चाहिए। कोर्ट यह मानता है कि कुछ ऐसा तरीका होना चाहिए जिससे सम्मान के साथ मृत्यु हो सके। कोर्ट ने फैसले में कहा कि लिविंग विल को तभी मान्यता दी जाए जब वह मजिस्ट्रेट और दो गवाहों के समक्ष तैयार की गई हो। इच्छा मृत्यु का दुरुपयोग रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट पर्याप्त सेफगार्ड देगा। सर्वोच्च न्यायालय ने एक मरणासन्न व्यक्ति की लिविंग विल की मंजूरी के लिए दायर एक याचिका पर सुनवाई के बाद 11 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने लिविंग विल का विरोध किया था। सरकार का कहना था कि देश में पैसिव यूथेनेशिया का पहले से कानून है ऐसे में इस लिविंग विल को इजाजत मंजूरी देना उचित नहीं होगा। केंद्र सरकार ने कहा कि इच्छा मृत्यु पर एक ड्राफ्ट बिल तैयार है। इसमें पर्याप्त सुरक्षा मानकों का जिक्र है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार ने पूछ लिया था कि तो क्या किसी मरणासन्न व्यक्ति को उसकी इच्छा के बगैर लाइफ सपोर्ट पर जीवित रखने को मजबूर किया जाना ठीक रहेगा?क्या है लिविंग विल या इच्छा मृत्यु की वसीयतलिविंग विल में कोई व्यक्ति पहले से ही कानूनी ढंग से इच्छा मृत्यु की वसीयत तैयार करता है। वह अपनी वसीयत में इस बात का जिक्र करता है कि यदि भविष्य में उसका स्वास्थ्य इतना बिगड़ जाए कि वह मरणासन्न अवस्था में पहुंच जाए। ऐसी अवस्था में उसे जीने की उम्मीद धूमिल हो जाए लेकिन उसके प्राण न निकल रहे हों तो उसे इच्छा मृत्यु दे दी जाए।क्या है दया मृत्युजब कोई मरीज किसी गंभीर बीमारी से अचेत पड़ा हो और उसके ठीक होने की संभावना न बची हो। जैसे वह ब्रेन डेट हो चुका हो लेकिन उसका हार्ट काम कर रहा हो या फिर वह कोमा या उसकी जैसी स्थिति में लाइफ सपोर्ट पर पड़ा हो। दूसरे शब्दों में कहें तो डॉक्टर यह मान चुके हों कि अब उसे ठीक कर पाना संभव नहीं है तो उसका कोई नजदीकी रिश्तेदार या तीमारदार दया मृत्यु के लिए कहे।कैसे दी जाती है इच्छा मृत्यु

दुनिया में दो प्रकार से किसी को इच्छा मृत्यु दी जाती है। एक को एक्टिव यूथेनेशिया कहते हैं और दूसरे को पैसिव यूथेनेशिया कहा जाता है। दुनिया में जहां भी इच्छा मृत्यु कानूनी रूप से मान्य है वहां ज्यादातर पैसिव यूथेनेशिया दिया जाता है।क्या है एक्टिव यूथेनेशियाजब कोई मेडिकल प्रैक्टिशनर या अन्य व्यक्ति के द्वारा कुछ करने से किसी मरणासन्न मरीज की मौत हो जाए तो इसे एक्टिव यूथेनेशिया कहा जाता है। उदाहरण के लिए किसी मरणासन्न मरीज को जहर का इंजेक्शन लगा देना ताकि उसकी मृत्यु हो जाए।क्या है पैसिव यूथेनेशियाजब किसी मरणासन्न व्यक्ति के जीवित रहने के लिए डॉक्टरों द्वारा कुछ प्रयास न किया जाए ताकि वह मरीज मौत के रास्ते चला जाए तो इसे पैसिव यूथेनेशिया कहते हैं। उदाहरण के लिए सालों से कोमा में रह रहे व्यक्ति का लाइफ सपोर्ट हटा देना।भारत में 2011 से लीगल है पैसिव यूथेनेशिया

अरूणा शानबाग के दया मृत्यु वाली याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने 7 मार्च, 2011 को एक फैसला दिया। कोर्ट ने माना कि कुछ शर्तों के साथ पैसिव यूथेनेशिया द्वारा मरणासन्न मरीज को दया मृत्यु की इजाजत दी जा सकती है। शर्तों के मुताबिक या तो मरीज के मस्तिष्क की मौत यानी ब्रेन डेड हो चुका हो या फिर वह 'परसिस्टेंट वेजिटेटिव स्टेट' यानी उसका मस्तिष्क कोई प्रतिक्रिया न दे रहा हो बोले तो कोमा जैसी स्थिति। ऐसे मरीज को मेडिकल बोर्ड की सहमति के बाद दया मृत्यु पैसिव यूथेनेशिया द्वारा दी जा सकती है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अरूणा शानबाग के लिए पत्रकार और समाजसेवी पिंकी विरानी की दया मृत्यु की याचिका ठुकरा दी थी। कोर्ट ने माना कि अरूणा शानबाग पैसिव यूथेनेशिया द्वारा दया मृत्यु की हकदार है लेकिन पिंकी उनकी कुछ नहीं लगती और वे उनकी तीमारदार भी नहीं हैं, इसलिए उनकी तरफ से यह मांग जायज नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अरूणा की तीमारदारी किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल स्टाफ पिछले 38 सालों से कर रहा है और वह चाहता है कि उन्हें इसी हालत में जीवित रखा जाए।

Posted By: Satyendra Kumar Singh