सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों के सरकारी आवास वाले मामले में एक बड़ा कदम उठाया है। कोर्ट ने आज पूर्व मुख्‍यमंत्रि‍यों के कार्यमुक्‍त होने के बाद सरकारी आवासों में रहने की परमीशन देने वाले कानूनी संशोधन को रद्द कर द‍िया है। ऐसे में अब सभी पूर्व सीएम को सरकारी बंगले खाली करने पड़ेंगे।

सार्वजनिक पद छोडने के बाद हर नागरिक सामान हो जाता
नई दिल्ली (प्रेट्र)। सुप्रीम कोर्ट में आज जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस कानून में संशोधन संवैधानिक अधिकार क्षेत्र में नही हैं क्योंकि यह संविधान के तहत समानता के अधिकार के खिलाफ है। यह संशोधन मनमाना होने के साथ ही भेद-भाव करने वाला और समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला है। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक पद छोड़ देने के बाद एक आम नागरिक और पद पर रहे व्यक्ति में कोई अंतर नही रह जाता है।
कोर्ट ने 19 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था
पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास में रहने की परमीशन देने के लिए यूपी सरकार द्वारा क़ानून में किए गए संशोधन को एक एनजीओ ने सु्प्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। ऐसे में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि एनजीओ ने जिस प्रावधान को चुनौती दी है, अगर वह अवैध करार हो जाता है तो दूसरे राज्यों में मौजूद समान कानून भी चुनौती की दायरे में आ जाएंगे।
पूर्व की अखिलेश सरकार द्वारा किया गया था संशोधन
बतादें कि पूर्व की अखिलेश सरकार द्वारा यूपी मंत्री (वेतन, भत्ते और अन्य प्रावधान) कानून 1981 में संशोधन किया गया था। इस पर एनजीओ ने चैलेंज किया था। इसके अलावा आवास आवंटित किए जाने वाले 2016 के एक और यूपी कानून को लेकर भी याचिका दायर हुई है। इसमें ट्रस्ट, पत्रकारों, राजनीतिक दलों, विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, न्यायिक अधिकारियों तथा सरकारी अफसरों को आवास आवंटित करने वाले कानून को चैलेंज किया गया है।

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Posted By: Shweta Mishra