गवर्नमेंट को स्वाइन फ्लू डेंजरस नहीं लगती

-स्टेट गवर्नमेंट के एक भी हॉस्पीटल में नहीं होता है स्वाइन फ्लू का टेस्ट

-पीएमसीएच से 2010 में लैब बनाने का पैसा लौटा दिया गया

-नए बजट में बॉयो सेफ्टी लैब बनाने पर बनेगी बात, जांच की नहीं है समुचित व्यवस्था

PATNA: पीएमसीएच में चार साल पहले ही स्वाइन फ्लू के एच वन एन वन टेस्ट की व्यवस्था होते-होते रह गई। स्टेट के सबसे बड़े हॉस्पीटल होने के बावजूद पीएमसीएच में इसका अरेंजमेंट नहीं होने से लोगों को प्रॉब्लम होती है। खास बात यह है कि कॉस्टली होने से हर कोई अपने बूते इसकी जांच नहीं करा सकता। इन दिनों इस बीमारी को लेकर पूरे देश में भय का माहौल है और सैकड़ों लोग इसकी चपेट में आकर मौत के शिकार हो रहे हैं।

2010 में ही बन जाता, लेकिन

पीएमसीएच में स्वाइन फ्लू की जांच की तैयारी शुरू हो गई थी जब 2009 में भयंकर तरीके से स्वाइन फ्लू से राज्य में सैकड़ों लोगों की असमय मौत होने लगी थी, तब प्रिंसिपल डॉ कैप्टन एनपी यादव थे। जानकारी के मुताबिक पीएमसीएच को पहले इंस्टॉलमेंट की रािश भी दी गई थी, लेकिन स्टेट गवर्नमेंट का यह प्रोजेक्ट पीएमसीएच के तत्कालीन आफिसियल्स की कार्य शिथिलिता के कारण राशि आवंटित होने के बाद भी आगे नहीं बढ़ पाया।

लौटा दी गई आवंटित राशि

पीएमसीएच के तत्कालीन एडमिनिस्ट्रेशन की सुस्ती का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि स्वाइन फ्लू सहित कई बड़ी वायरल बीमारियों की जांच के लिए आवंटित राशि लौटा दी गई। वित्त वर्ष बीत जाने के बाद इसकी चर्चा ही नहीं हुई। इस प्रोजेक्ट पर डीएमसीएच के तत्कालीन प्रिंसिपल डॉ एसएन सिन्हा ने तत्परता दिखायी और इसे पूरा किया। सूत्रों ने बताया कि लैब बनाने कि पहली इंस्टॉलमेंट 59 लाख रुपए वापस कर दिया गया।

The other side

मुजफ्फरपुर में फैला था एईएस

2010 में मुजफ्फरपुर में एईएस का जबरदस्त कहर था। जब डीएमसीएच के प्रिंसिपल ने इसमें रुचि दिखाई, तो अधिकारियों ने भी नॉर्थ बिहार में इसे स्थापित करने में पूरा सहयोग किया। मुजफ्फरपुर दरभंगा के पास होने के कारण इसे प्रायोरिटी के तौर पर स्टेट गवर्नमेंट ने लिया। पते की बात यह है कि प्रोजेक्ट डिजाइन करने में पीएमसीएच के माइक्रोबॉयलॉजी डिपार्टमेंट के डॉक्टर्स ने अहम भूमिका निभायी थी।

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क्या है बॉयो सेफ्टी लैब लेवल थ्री

साधारण शब्दों में समझना हो तो कहा जा सकता है कि किसी भी जांच के लिए लैब सेफ्टी के अलग-अलग लेबल निर्धारित किया गया है। बीमारी जितना घातक होगा, लेवल उतना ही हाई होगा। जैसे स्वाइन फ्लू की जांच के लिए लेबल थ्री और रेबीज की जांच के लिए लेबल फोर लैब के प्रोटोकाल का होना आवश्यक है। फिलहाल पीएमसीएच में वायरल बीमारियों के करीब 22 टेस्ट होते हैं और यह लेबर-टू का लैब है। अगर यहां लेवल थ्री का लैब बन जाता, तो स्वाइन फ्लू की जांच हो सकती थी।

बजट कॉस्ट चार गुणा बढ़ गया

स्टेट गवर्नमेंट के खर्चे पर बनने वाली इस लैब का कॉस्ट 2010 में जहां चार करोड़ 30 लाख रुपए था, वहीं यह अब बढ़कर 15 करोड़ का हो गया है। खास बात यह है कि इस लैब को तैयार करने में आईसीएमआर तकनीकी सहयोग प्रदान करेगा, यानी प्रोजेक्ट की गाइडलाइन के मुताबिक ही यह तैयार किया जाएगा, जिसके बाद एलाइजा बेस्ट सेरोलॉजिकल टेस्ट होगा।

लैब में होगा ये टेस्ट

ज्ञात हो कि लेबल थ्री स्टैंडर्ड को पूरा करने पर पीएमसीएच के माइक्रोबॉयलाजी डिपार्टमेंट में एचआइवी, कई प्रकार के आरएनए टेस्ट और स्वाइन फ्लू की जांच की सुविधा मिलने लगेगी, साथ ही यहां वायरस का कल्चर होना शुरू हो जाएगा। फिलहाल लेबल थ्री का बॉयोसेफ्टी लैब केवल डीएमसीएच में है।

अब उम्मीद जगी है

इस संबंध में आई नेक्स्ट ने वर्तमान में पीएमसीएच के माइक्रोबॉयलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ एसएन शर्मा से बात की। डॉ शर्मा ने बताया कि हम चाहते हैं कि यहां स्वाइन फ्लू सहित अन्य वायरस कल्चर का टेस्ट हो। सचिवालय में जनवरी, 2015 में आयोजित प्री-बजट मीट में इस बारे में सरकार के सामने प्रपोजल रखा गया है। सरकार ने इसके लिए सहमति भी जता दी है। बिहार स्टेट हेल्थ सोसायटी के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर आनंद किशोर ने इसके लिए इसी बजट में धनराशि उपलब्ध कराने की बात स्वीकार की है। इसमें कौन-कौन सा टेस्ट उपलब्ध होगा। इस बारे में आईसीएमआर की गाइडलाइन के मुताबिक उपलब्धता तय की जाएगी।

Highlights

-ख्0क्0 में बॉयो सेफ्टी लैब-लेबल-फ् पीएमसीएच में बनना था।

-कुल लागत- ब् करोड़ फ्0 लाख रुपए।

-पीएमसीएच से हटाकर डीएमसीएच में बनाया गया बायो सेफ्टी लैब-लेबल-फ्।

-पीएमसीएच को दी गई राशि भ्9 लाख रुपए लौटाई गई।

-फिलहाल स्टेट के किसी गवर्नमेंट हॉस्पीटल में नहीं है स्वाइन फ्लू की जांच की व्यवस्था।

Posted By: Inextlive