Jamshedpur: 160 सालों से हमारे लिए कुछ एक शब्दों में पूरा समाचार लाने वाला टेलिग्राम अब बंद हो जाएगा. बीएसएनल ने 15 जुलाई से इस सर्विस को पूरी तरह से बंद करने का डिसीजन लिया है.

इससे शुरू हुआ था काम
सिटी में अंग्रेजी शासन के समय से ही टेलिग्राम सर्विस स्टार्ट हुआ था। उस समय मोर्स कीबोर्ड पर काम होता था। इस कीबोर्ड पर हिंदी और इंग्लिश के डिफरेंट कीज को दबाते ही उससे एक खास तरह का टोन निकलता था जो उस सेंटर पर सुना जाता जहां टेलिग्राम भेजा जाना हो। उस सेंटर पर बैठा व्यक्ति उस टोन को सुनकर टाइप करता और टाइप किए हुए उस पेपर को कंसर्न पर्सन के पास पहुंचा दिया जाता। बिस्टुपुर टेलिग्राफ डिपार्टमेंट में टेलिग्राफ मास्टर आरएस कुशवाहा कहते हैं कि मोर्स कीबोर्ड पर काम करने के लिए 9 महीने की ट्रेनिंग दी जाती थी। इसके बाद मैनुअल फिर इलेक्ट्रॉनिक टाइपिंग मशीन यूज होने लगा। फाइनली टेलिग्राम में इंटरनेट ने भी एंट्री मारी।

थी direct service भी
पहले के समय में टेलिग्राम की तो काफी वैल्यू थी पर हर जबह के लिए यह फैसिलिटी अवेलबल नहीं थी। सिटी की बात करें तो यहां से कुछ ही जगहों के लिए डायरेक्ट सर्विस थी। आस-पास के एरिया में जादूगोड़ा, घाटशिला, धालभूमगढ़, चाईबासा, चक्रधरपुर और टाटानगर रेलवे स्टेशन के लिए डायरेक्ट सर्विस थी। टेलिप्रिंटर आने के बाद सिटी से जिन सिटीज के लिए डायरेक्ट सर्विस स्टार्ट हुई उनमें कलकत्ता, पटना, रांची, राउरकेला और नागपुर शामिल थे।

तब फुर्सत नहीं मिलती थी
आज से लगभग 15-20 साल पहले सिटी के टेलिग्राफ ऑफिस में 17 मेसेंजर्स हुआ करते थे। उनका काम एडरेस पर टेलिग्राम पहुंचाने का होता। पिछले कुछ सालों से इस सर्विस के प्रति लोगों का इंट्रेस्ट कम होने की वजह से अब बिस्टुपुर स्थित सेंट्रल टेलिग्राफ ऑफिस में सिर्फ एक ही मेसेंजर रह गए हैं। पिछले 36 साल से मेसेंजर का काम काम कर रहे कदमा के रहने वाले डीके सिंह का कहना था कि लगभग 15-20 साल पहले डेली 5 से 7 सौ तक टेलिग्राम आते और जाते थे। उन्होंने कहा कि एक दिन में सभी टेलिग्राम को सही जगह तक पहुंचाना उस समय एक चेलेंज की तरह था। अब तो डेली एवरेज 2-5 टेलिग्राम ही आते हैं इसलिए डीके बाबू को ज्यादा दौड़-भाग नहीं करनी पड़ती।

डीसी से भी बढक़र था जलवा
बिस्टुपुर स्थित पिछले 40 साल से टेलिग्राफ डिपार्टमेंट में काम करने वाले टेलिग्राफ मास्टर आरएस कुशवाहा कहते हैं कि टेलिग्राम का इंपॉर्टेंस इसी समझा जा सकता है कि पहले के जमाने में तार बाबू का जलवा आज के डीसी जैसा होता था। उनके उपर काफी जिम्मेवारी होती और उनके अंडर में कम से कम 80 लोग काम करते थे।

थी अलग व्यवस्था
बिस्टुपुर स्थित सेंट्रल टेलिग्राफ ऑफिस में टेलिग्राफ मास्टर आरएस कुशवाहा ने कहा कि मीडिया वालों के लिए ऑफिस में अलग से व्यवस्था रहती थी। उनके लिए एक रूम था जिसमें बैठकर वे डिफरेंट सिटीज में खबर टाइप कर भेजते थे। उनसे डिपार्टमेंट द्वारा पैसे भी कम लिए जाते थे। इनके लिए प्रत्येक शब्द 1 पैसे लिए जाते थे। शब्दों की संख्या ज्यादा होने पर प्रत्येक शब्द 2 पैसे लिए जाते थे। सिटी से जिन सिटीज में खबर टाइप कर भेजी जाती थी उनमें पटना, कलकत्ता, दिल्ली और रांची शामिल थे।

टाटा का परसेंटेज सबसे ज्यादा
सिटी स्थित टेलिग्राफ ऑफिस में काम करने वाले ऑफिसियल्स और स्टाफ का कहना है कि जब काफी संख्या में टेलिग्राम आते और भेजे जाते उस समय इस सर्विस में सबसे ज्यादा परसेंट टाटा स्टील का होता था। मेसेंजर डीके सिंह ने कहा कि टोटल टेलिग्राम आने और भेजने में टाटा स्टील का 40 परसेंट हिस्सा होता था। इसके अलावा बैंक के 20 परसेंट और डिफेंस से रिलेटेड टेलिग्राम का परसेंटज 10 होता था। बाकी के 30 परसेंट आम लोगों से रिलेटेड होता था। यह भी बताया गया कि गवर्नमेंट के डिफरेंट डिपार्टमेंट के लिए क्लियर लाइन टेलिग्राम आता था जिसकी आधे घंटे के अंदर डिलीवरी देनी होती थी।

तो बिगडऩे लगी हालत
अगस्त 1995 में इंटरनेट ने कंट्री में अपनी दस्तक दी। तब तक मोबाइल ने भी घरों में अपनी एंट्री दर्ज करा दी थी। 2000 और उसके बाद के कुछ सालों में मोबाइल ने तेजी से अपनी पहुंच बढ़ाई। इसके बाद ई-मेल और मैसेज किसी बात को इधर से उधर पहुंचाने में ज्यादा आसान मीडियम साबित होने लगे। इंटरनेट और मोबाइल की पहुंच घरों तक बढ़ती गई और इससे मेल और मैसेज करना सस्ता भी होता गया। स्थिति ऐसा आ गई कि बिजनेसमैन, स्टूडेंट्स और गवर्नमेंट ऑफिसियल्स भी ई-मेल के जरिए ही अपने मैसेज को कए दूसरे तक पहुंचाने लगे। आज के डेट में ऐसी स्थिति थी कि अगर कोई टेलिग्राम करता है तो उसे 30 शब्दों के लिए 29 रुपए देने होते जबकि इतने पैसे से इंटरनेट यूज कर बहुत सारे मेल कर सकते हैं। मैसेज के पहुंचने में लगा समय देखा जाए तो मेल और मैसेज के जरिए कुछ सेकेंड में अपनी बातों को एक दूसरे के पास पहुंचाया जा सकता है जबकि टेलिग्राम में उससे ज्यादा समय लगता था।

अब तो लेटर भी नहीं आते
सिर्फ टेलिग्राम ही नहीं अब तो हाथों से लिखा लेटर भी पोस्ट ऑफिस में नहीं दिखते। सिटी के पोस्टल सुप्रिंटेंडेंट एन सरकार ने कहा कि ई-मेल और मैसेज ने लेटर को लगभग खत्म कर दिया है। उनका कहना था कि पिछले 10 सालों में लेटर्स की संख्या लगभग 95 परसेंट कम हो चुकी है। उन्होंने कहा कि बिजनेस लेटर्स की संख्या तो बढ़ी है जिनमें बैंक स्टेटमेंट, एकाउंट स्टेटमेंट और म्युचुअल फंड से रिलेटेड लेटर्स शामिल होते हैं।

ऐसे स्टार्ट हुआ टेलिग्राफ
इंडियन पोस्टल और टेलिकॉम सेक्टर ने मिलकर 1850 में टेलिग्राफ सर्विस स्टार्ट की थी। इस साल पहला एक्सपेरिमेंटल इलेक्ट्रिक टेलिग्राफ लाइन कलकत्ता और डायमंड हार्बर के बीच स्टार्ट किया गया था। 1851 में ब्रिटिश इंडिया कंपनी द्वारा इसका यूज स्टार्ट किया गया। पोस्टल एंड टेलिग्राफ डिपार्टमेंट द्वारा पब्लिक वक्र्स डिपार्टमेंट के ऑफिस के एक कॉर्नर में इसका ऑफिस ओपेन किया गया। 1853 में कलकत्ता, पेशावर, आगरा, बंबई, मद्रास और बंगलौर में यह सर्विस स्टार्ट हुई। 1902 में वायरलेस टेलिग्राफ स्टेशन स्टेबलिश हुआ। 1907 में पहला सेंट्रल बैट्री ऑफ टेलिफोन्स कानपुर में इंट्रोड्यूस हुआ। काफी सालों तक एक साथ काम करने के बाद 1986 में बीएसएनएल और पोस्टल डिपार्टमेंट टेलिग्राम सर्विस को अलग करने का डिसीजन लिया। उस समय तक ये एक दूसरे के लिए काम कर रहे थे लेकिन 2001 में टेलिग्राम को पोस्टल डिपार्टमेंट से पूरी तरह हटा लिया गया। 15 जुलाई 2013 को इसे पूरी तरह बंद करने का फैसला लिया गया है।

Report by: amit.choudhary@inext.co.in

Posted By: Inextlive