PATNA: राजधानी पटना की अलंकृता शंकर का सपना प्रशासनिक सेवा में जाने का था, लेकिन परिवार बड़ा था और लड़की होने के कारण पीछे रह गई। पढ़ाई को लेकर जो जज्बा था बेटा होती तो शायद सपना पूरा भी हो जाता लेकिन लड़की होने से ख्वाहिश अधूरी रह गई। जिंदगी के उतार-चढ़ाव में कई सीख मिली और उसी के दम पर आज समाज के नजरिए को बदलकर नजीर बनना चाहती हैं। उन्हें एक बेटी है और अब उसी बेटी के सहारे अपना सपना साकार करने में लगी हैं। इसके लिए अलंकृता ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया है।

ईश्वर का वरदान है बिटिया

अलंकृता अपने बारे में बताती हैं कि पढ़ाई में काफी तेज थीं और अवसर मिला होता तो चयन प्रशासनिक सेवा में हो जाता। पढ़ाई में बाधा आती गई जिससे कम्पटीशन में बैठ नहीं सकीं। लेकिन इस बात की टीस हमेशा दिल में रही। अलंकृता बताती हैं कि जब उनकी शादी सुरेश तनेजा से हुई तो वह परिवार में व्यस्त हो गई और फिर एक बेटी हुई। अब तो बेटी ही उनके लिए सब कुछ है। बेटी सान्या क्लास म् में पढ़ रही है। मां अलंकृता मानती हैं कि वह अपने दिल की इच्छा अपनी बेटी से पूरी कराएंगी।

एक बेटी कई बेटों के बराबर

अलंकृता और स़ुरेश तनेजा का मानना है कि एक बेटी कई बेटों के बराबर है। दोनों ने बेटी पर सब कुछ कुर्बान कर दिया है और उसे पढ़ा-लिखा कर बड़ा अफसर बनाना चाहते हैं। उनका मानना है कि बेटियों में दृढ़ इच्छा शक्ति होती है बस उसे सही दिशा में लगाने की जरूरत है।

बेटी की आंखों में देख रहे अपना सपना

सुरेश तनेजा कहते हैं कि वह और उनकी पत्नी अलंकृता बेटी सान्या की आंखों में ही तरक्की का सपना देखते हैं। दोनों का कहना है कि शादी के बाद बेटी का कोई प्लान नहीं था। बस एक बच्चा चाहते थे, ऐसे में बेटी हुई तो उसी में अपना सपना देखने लगे। बेटी-बेटा में कोई फर्क नहीं है। बेटियां मां-बाप के दिल के काफी करीब होती हैं और उनकी इच्छा शक्ति को देखकर सही दिशा में आगे बढ़ाया जाए तो बेटे से अधिक नाम रोशन करती हैं।

Posted By: Inextlive