-फरूहाही लोक कलाकार मुफलिसी में बीता रहे दिन

-60 की उम्र में लोक कला के संरक्षण में लगे कलाकार

GORAKHPUR:

चौरीचौरा के 60 वर्षीय छेदीलाल यादव अपनी टीम के साथ पिछले 45 सालों से फरूहाही नृत्य की प्रस्तुती कर रहे हैं। दादा व पिताजी के बाद तीसरी पीढ़ी के रूप में वह फरूहाही लोक कला के प्रसार के लिए काम कर रहे हैं। पर उनकी अगली पीढ़ी को इस कला के प्रसार में कोई दिलचस्पी नहीं है। छेदीलाल के दोनों बेटों में एक पेंटिंग का काम करता है तो दूसरा मैकेनिक का वह पिता को भी सलाह देते हैं कि बंजारों की तरह घूमने से बेहतर है कि घर पर भैंस पालिए। पत्‍‌नी व बच्चों के मना करने और अस्वस्थ होने के बावजूद छेदीलाल रविवार की सुबह 15 सदस्यीय टीम के साथ आए और राजकीय बौद्ध संग्रहालय पर फरूहाही कला का प्रदर्शन किया। इस टीम में नाचने वालों में 60 साल के मेवालाल हैं तो 14 साल का अजय भी। यही नहीं टीम के दो सदस्य देवीदीन और अमरजीत बचपन से ही नेत्रहीन होने के बावजूद प्रत्येक कार्यक्रम में अपनी कला का प्रदर्शन दिखाते हैं।

कला के साथ ही जीना और मरना है

छेदीलाल एंड टीम में आधे से अधिक सदस्य 60 साल की उम्र के हैं। यह सभी कलाकार किशोर अवस्था से ही फरूहाही नृत्य प्रस्तुत कर रहे हैं। बढ़ती उम्र के प्रभाव के सवाल पर बड़ी मूछों वाले मेवालाल कहते हैं कि खाली बैठने से दिक्कत होती है, नाचते रहता हूं तो शरीर में फूर्ती बनी रहती है। हार्ट पेसेंट छेदीलाल ने दो दिन पहले ही डाक्टर को दिखाकर दवाईयां ली थीं। पूरी तरह स्वस्थ नहीं होने के बाद भी वह कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए चले आए। स्वास्थ्य के सवाल करने पर वह कहते हैं कि मैनें तो खुले मंच से कह दिया जब तक जिंदा रहूंगा फरूहाही करता रहूंगा, मरने के बाद ही मेरा और कला का साथ छूटेगा।

मुफलिसी के शिकार हैं कलाकार

फरूहाही टीम के सभी कलाकार या तो किसान हैं या मजदूर। किसी के पास नियमित आय का साधन नहीं है यहां तक कि सभी के पास पहनने को गर्म कपड़े भी नहीं हैं। महीने में उन्हें औसतन एक काम भी नहीं मिल पाता है और प्रोग्राम के जो पैसे मिलते हैं वह इतना कम होता है कि खुद का खर्चा निकालना मुश्किल हो जाता है। छेदीलाल बताते हैं कि कार्यक्रम स्थल तक से जाने-आने में ही काफी खर्चा हो जाता है। जबकि भुगतान 5 से 10 हजार के बीच ही हो पाता है। कुछ लोग तो कार्यक्रम कराने के बाद पैसा देने के समय भाग खड़े होते हैं।

सरकार करे सहयोग

कलाकारों का कहना है कि आजकल हर बात में भारतीय संस्कृति की दुहाई दी जाती है। लेकिन इस संस्कृति को जिंदा रखने वाले कलाकार किन हालातों में जी रहे हैं इस बारे में कोई नहीं सोचता है। हम तीन पीढि़यों से लोक कला को संरक्षित करने के लिए काम कर रहे हैं। राजधानी सहित कई आयोजनों में कार्यक्रम कर चुके हैं और पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं। लेकिन अब हम बूढ़े हो रहे हैं, बीमार हो रहे हैं। पैसे के अभाव में हम इलाज तक नहीं करा पा रहे हैं, सरकार को हमारे पेंशन और इलाज में सहयोग करना चाहिए।

यह है टीम

छेदीलाल यादव मास्टर, सत्य राम, महेन्द्र, मेवालाल, रामदेव, देवीदीन सूरदास, भीखम, सुमेर, नर्वदा, सोनू, धर्मवीर, किशोर, जगदीश यादव, अमरजीत।

Posted By: Inextlive