ये नन्‍हे चूज़े न्‍यूक्‍लियर की तरह दिखाई दे रहे हैं लेकिन अंधेरे में इनके पैरों और चोंच का चमकना वास्‍तव में बर्ड फ्लू जैसी खतरनाक बीमारी को लेकर चल रहे अनुसंधान का नतीजा है।

मददगार हुआ फ्लोरोसेंट ग्रीन प्रोटीन का इंजेक्शन
दरअसल इन चूजों को फ्लोरोसेंट ग्रीन प्रोटीन का इंजेक्शन दिया गया है। ऐसा इसलिए किया गया ताकि वैज्ञानिकों परीक्षण के दौरान अन्य पक्षियों से इन्हें अलग पहचानने में सहूलियत हो सके। इनमें से हर किसी को आनुवंशिक रूप से 'डेकोये' जीन के साथ संशोधित किया गया है। उसके बाद उनकी प्रगति के स्तर पर गौर किया जा रहा है। अब विशेषज्ञ निगरानी रख सकते हैं कि ये रोग के प्रति कितने असंवेदनशील रह सकते हैं।

प्रोफेसर हेलेन सांग ने बताया
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एडिनबर्ग और लारेंस टाइली विश्वविद्यालय पर आधारित रोसिलन संस्थान में प्रोफेसर हेलेन सांग के नेतृत्व में पूरा किया जा रहा है। इतना ही नहीं इस शोध को यूके गर्वनमेंट का सानिध्य भी मिला हुआ है। इस क्रम में कई पोल्ट्री फर्म्स भी इस साल इस बीमारी के प्रकोप को रोकने के लिए तत्पर हैं। बताते चलें कि अकेले अमेरिका में एवियन इन्फ्लूएंजा से पीड़ित हो दिसंबर से लेकर अब तक करीब 48 लाख मुर्गियों और कई तुर्कियों की मौत हो चुकी है। इसको लेकर अब शोधकर्ता अनुवाशिंक रूप से चूजों को 'डेकोय' जीन का इंजेक्शन देते हैं। इससे ये बड़े होकर और अंडे देते हैं। ये अंडे डेकोय जीन से युक्त चूजों के रूप में बाहर आते हैं।
ऐसे होता है बचाव
बताया जा रहा है कि ये डेकोय जीन चूजों में एक तरह के फ्लोरोसेंट प्रोटीन का निर्वहन करता है, जो इन्हें पराबैंगनी प्रकाश में काफी चमकदार बना देते हैं। ठीक ऐसे ही ये काले अंधेरे में भी चमकते हैं। अब ये बदले हुए पक्षी जब फ्लू के संपर्क में आते हैं तो इनका अनुवांशिक कोड अपने आप वायरस को डेकोय में कॉपी कर देता है। इसके साथ ही वायरस की खुद को बढ़ाने की क्षमता भी पूरी तरह से खत्म होने लगती है।
ऐसे किया गया परीक्षण
एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 16 संक्रमित मुर्गियों को 16 सामान्य और 16 डेकोय की मदद से अनुवांशिक तौर पर बदली गई मुर्गियों के संपर्क में रखा। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आणविक विषाणु विज्ञान में एक वरिष्ठ व्याख्याता लॉरेंस टाइली ने बताया कि इनमें से अनुवांशिक लक्षणों वाली मुर्गियों पर न के बराबर असर पड़ा।  अब विशेषज्ञ इस तरह की आशा कर रहे हैं कि ये अनुसंधान के दो तरीके में रोग को रोकेंगे। पहला, मुर्गी के अंडा देते समय ही अंडे में शुरुआती इंफेक्शन को रोककर और दूसरा पक्षियों के इस रोग के संपर्क में आ जाने पर उन्हें वायरसमुक्त करके। हालांकि इन चमकने वाली पक्षियों को बेचने के लिए नहीं उतारा जाएगा। बता दें कि एवियन इन्फ्लूएंजा की तरह बर्ड फ्लू भी पक्षियों का संक्रामक रोग है। इसका कारण इन्फ्लूएंजा ए वायरस का मानक संस्करण है। इसकी पहचान सबसे पहले 1900 में हुई थी। इंसानों में इसके लक्षण बुखार और गले दर्द वा खांसी के रूप में सामने आने शुरू होते हैं।
Courtesy by Mail Online

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Posted By: Ruchi D Sharma