एनसीजेडसीसी में तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का शुभारम्भ

- वेदों में न्याय के संदर्भ में न्यायविदों ने रखे अपने विचार

ALLAHABAD: हमें अंग्रेजों की न्याय व्यवस्था से कुछ लेने की जरूरत नही है। मुगलों और अंग्रेजों ने हम पर शासन किया और अपना ज्यूडियशरी सिस्टम हम पर थोप दिया। जबकि हजारों साल पहले हमारे वेदों में न्याय व्यवस्था को परिभाषित किया गया है। ये बातें 'वैदिक कांसेप्ट ऑफ लॉ एंड ज्यूरिसप्रडेंस' विषय पर शुरू हुए राष्ट्रीय सेमिनार में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस डीएम धर्माधिकारी ने कही। उन्होंने अध्यक्षीय सम्बोधन के दौरान कहा कि

वेदों में नहीं है कानून बनाने की बात

जस्टिस एम धर्माधिकारी ने कहा कि वेदों में कानून बनाने की बात नहीं कही गई है। इसमें साफ किया गया है कि आप प्रकृति से जितना लो, उससे ज्यादा वापस कर दो। वेदों में भारत को आध्यात्म की भूमि कहा गया है।

वेदों में पंचायत राज्य की भी विस्तार से चर्चा है। वेदों में किसी स्पष्ट कहां गया है कि पांच व्यक्तियों द्वारा बैठ कर समाजिक उत्थान के लिए निर्णय लिया जा सकता है।

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बिना धर्म के नहीं चल सकता भारत

उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा देश है, जो बगैर धर्म के नहीं चल सकता है। साधू संतों को चाहिए कि धर्म को सर्वोपरि रखने के लिए कार्य करें। सेमिनार में जस्टिस धर्माधिकारी ने महिलाओं की शिक्षा और उनके मातृत्व क‌र्त्वयों पर भी अपने विचार रखे। साथ ही वृद्धा आश्रम की स्थिति पर भी विस्तार से चर्चा की। कहा कि विदेशों में ही वृद्धा आश्रम की व्यवस्था थी। जबकि भारत में प्रेम के कारण इसकी मान्यता नहीं थी। आज के समय में पाश्चात्य प्रेम के कारण लोग अलग-अलग रहना पसंद करते है।

ये भी थे मौजूद

सेमिनार की शुरुआत सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस पिनाकी चन्द्र घोष द्वारा दीप प्रज्जवलन से हुई। इस मौके पर लॉ कमिशन के चेयरमैन जस्टिस डा। बीएस चौहान, जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा, जस्टिस सुधीर नारायण मौजूद थे।

Posted By: Inextlive