स्थान प्राइवेट हो या पब्लिक वहां पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए यदि कोई सामने आए तो हालात बदल सकते हैं। इसके लिए हमें इस समस्या को निजी नहीं सामुदायिक मान कर उसका समाधान भी सामुदायिक तौर पर ही करना चाहिए। इस पर ब्रेकथ्रू इंडिया ने एक स्टडी जारी की है जिसमें सभी पक्ष को ध्यान में रखकर सुझाव दिए गए हैं।


कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। सार्वजनिक या निजी स्थानों पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए अकसर देखा गया है कि लोग सामने आने से कतराते हैं। ऐसी परिस्थितियों को समझ कर बाइस्टैंडर को महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए ब्रेकथ्रू इंडिया ने बाइस्टैंडर बिहेवियर पर एक स्टडी जारी की है। ब्रेकथ्रू महिलाओं के खिलाफ हिंसा को अस्वीकार्य बनाने के लिए काम करने वाली संस्था है। यह सर्वेक्षण ऊबर इंडिया और आइकिया फाउंडेशन की सहायता से जुलाई-अगस्त और सितंबर-अक्टूबर 2020 तक दो चरणों में किया गया। यह स्टडी को 721 लोगों से ऑनलाइन और 91 लोगों से सीधे इंटरव्यू के जरिए तैयार किया गया है। इसमें बिहार, हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, झारखंड और तेलंगाना राज्यों के लोग शामिल थे। सर्वे में शामिल अधिकांश प्रतिभागी जिसमें विशेष रूप से महिलाओं ने हिंसा को शारीरिक, मानसिक, मौखिक और यौन शोषण के रूप में पहचान की।


महिला हिंसा के खिलाफ निजी नहीं सामुदायिक कार्यवाही हो

ब्रेकथ्रू की अध्यक्ष व सीईओ सोहिनी भट्टाचार्य ने कहा, 'हमारे लिए पॉजिटिव बाइस्टैंडर एक्शन को बढ़ावा देना हमेशा महत्वपूर्ण रहा है यही वजह है कि आज हम आप से इस मुद्दे पर बात कर रहे हैं। ऐसे अभियानों को शुरू करने में ब्रेकथ्रू का उद्देश्य यह है कि लोग महिला हिंसा को निजी मामला न मानते हुए समुदाय का मुद्दा माने और एक साझा जिम्मेदारी लें और सामुदायिक कार्यवाही करें।' ऊबर के हेड ऑफ ड्राइवर, सप्लाई व सिटी आपरेशन्स (भारत व दक्षिण एशिया) पवन वैश ने कहा, 'ब्रेकथ्रू के साथ साझेदारी की वजह से बाइस्टैंडर पर यह विस्तृत रिपोर्ट बन सकी है, हम आशा करते हैं कि इस रिपोर्ट के माध्यम से हमारे साझा कैंपेन #IgnoreNoMore को और ताकत मिलेगी।'लोग आगे क्यों नहीं आते महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकनेसर्वे में यह बात सामने आई है कि महिलाओं के लिए सेफ पब्लिक स्पेस बनाने के लिए कई स्तरों पर काम करने की जरूरत है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण समाधान उनके बीच के ही किसी व्यक्ति (बाइस्टैंडर) का समर्थन या सामने आना है। ऐसा नहीं है कि महिलाओं के प्रति हिंसा रोकने के लिए किसी में भावना ही नहीं है बल्कि वे खुद को हिंसा के लिए दोषी ठहराए जाने के डर, पुलिस और कानूनी प्रक्रियाओं में फंसने संबंधी तमाम ऐसी चुनौतियां हैं जो लोगों को दखल देने से रोकती हैं। ऐसी स्थितियों में क्या करना है, यह न जानना भी लोगों को हिंसा को रोकने में दखल देने से रोकती है।महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने वालों का कटु अनुभव

सर्वेक्षण में ऐसे लोगों ने भी अपने अनुभव शेयर किए जिन्होंने दुर्व्यवहार और यौन हिंसा के अधिकांश सर्वाइवर के मौन पर अपनी नाराजगी व्यक्त की। उनमें से कुछ ने महिला व्यवहार और उनके चयन को प्रभावित करने में संरचनात्मक और सामाजिक स्थिति द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया। उन्होंने बताया कि लड़कियों को बचपन से ही कैसे विनम्र होना सिखाया जाता है। यही वजह है कि वे कम से कम अपने परिवेश को चुनौती नहीं दे पाती हैं। हिंसा का सामना करने वालों की चुप्पी सार्वजनिक स्थानों पर अक्सर हस्तक्षेप करने वालों को हतोत्साहित करती है।महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने वाले को मिले सपोर्ट
सार्वजनिक और निजी स्थानों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए बाइस्टैंडर हस्तक्षेप एक महत्वपूर्ण उपकरण है। सरकार को महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए व्यक्तिगत कार्रवाई और व्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिए पहल करनी चाहिए। आसानी से सभी के लिए सुलभ रिपोर्टिंग सिस्टम का निर्माण, सूचना की जानकारी का प्रसार, हिंसा का सामना करने वाली की सुरक्षा सुनिश्चित करना और बाइस्टैंडर के हस्तक्षेप को बढ़ावा देना इसके लिए आवश्यक है। साथ ही पुलिस कर्मियों के लिए लैंगिक संवेदनशीलता, बेहतर सामुदायिक कार्रवाई के लिए नागरिक-पुलिस के बीच महिलाओं के लिए सुरक्षित और हिंसा मुक्त सार्वजनिक स्थान बनाने के लिए महत्वपूर्ण होंगे। इसके अलावा, हमें महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा की रोकथाम के लिए प्रणालीगत और नीतिगत स्तर की बदलाव लाने की जरूरत है और अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए।

Posted By: Satyendra Kumar Singh