इसलिए मंदिर और घर में जरूरी होती है घंटी की ध्वनि
इतने प्रकार की होती है घंटियांगरूड़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है। द्वार घंटी यह द्वार पर लटकी होती है। यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है। हाथ घंटी पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं। घंटा यह बहुत बड़ा होता है। कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा। इसको बजाने के बाद आवाज कई किलोमीटर तक चली जाती है।
रोज सुबह शाम घंटी बजा कर पूजा अर्चना करने से देवताओं के समक्ष आपकी हाजिरी लग जाती है। मान्यता अनुसार घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना जागृत होती है जिसके बाद उनकी पूजा और आराधना अधिक फलदायक और प्रभावशाली बन जाती है। घंटी की मनमोहक एवं कर्णप्रिय ध्वनि मन-मस्तिष्क को अध्यात्म भाव की ओर ले जाने का सामर्थ्य रखती है। मन घंटी की लय से जुड़कर शांति का अनुभव करता है।
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