इन दिनों हर जगह ओलंपिक की चर्चा है जिसमें मेडल दिए जाते वक्त अलग अलग देशों के राष्ट्रगान भी सुनाई देते हैं.

मेडलों की इस रस्साकशी में आम तौर पर राष्ट्रगानों की तरफ कम ही ध्यान दिया जाता है। लेकिन इनके पीछे बहुत ही दिलचस्प और हैरान करने वाली कहानियां छिपी हैं।

क्रांति से फूहड़ता तकफ्रांस का राष्ट्रगान 'ला मार्सेयेज़' दुनिया के सबसे ज्यादा जाने माने राष्ट्रगानों में से एक है। 1792 में लिखा गया ये गीत जल्द ही यूरोप भर में फैल गया था और इसने ग्रीस से लेकर रूस तक के क्रांतिकारियों को प्रेरित किया। हाल के समय में हुए कुछ विद्रोहों के दौरान भी इसे सुना गया। चीन में थ्येन आनमन चौक पर 1989 के विद्रोह के दौरान भी इसे गाया गया। वैसे इस गीत की तरह इसे रचने वाले क्लोद जोसेफ रोजे दे लिजले को ज्यादा कामयाबी नहीं मिली।

दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने चंद घंटों के भीतर उस वक्त ला मार्सेयेज़ को लिखा और इसका मकसद ऑस्ट्रिया के खिलाफ लड़ाई की तैयारी करने वाले फ्रांसीसी सैनिकों को प्रेरित करना था।

क्लोद जोसेफ रोजे दे लिजले ने 44 साल के अपने जीवनकाल में कोई और यादगार गीत नहीं रचा। एक वक्त तो ऐसा भी था जब उन्होंने पैसे की खातिर फूहड़ गीत लिखने शुरू कर दिए थे।

पूर्वी फ्रांस में बने उनके संग्राहलय में ऐसा ही एक गीत प्रदर्शित किया गया है। वो इतना बेहूदा है कि अगर वहां से बच्चे गुजर रहे हों तो उसके आधे शब्दों को छिपा लिया जाता है।

गीत एक, देश अनेकब्रिटेन का राष्ट्रगान 'गॉड सेव द क्वीन' 1745 में प्रकाशित हुआ था और उस वक्त किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन की ओर से मान्यता पाने वाला ये पहला राष्ट्रगान था।

इसकी धुन राष्ट्रवाद के साथ इस तरह जुड़ गई कि बहुत से देशों ने भी सिर्फ शब्द बदल कर उसे अपने राष्ट्रगान में इस्तेमाल किया।

लिश्टेनश्टाइन के राष्ट्रगान ओबेन अम युंगेन राइन (युवा राइन के ऊपर) में अब तक यही धुन चलती है। ऐसे में जब लिश्टेनश्टाइन की फुटबॉल टीम इंग्लैंड के साथ खेली तो खासी भ्रम की स्थिति पैदा हो गई। इसी तरह ओमान और जिम्बाब्वे ने भी अपने राष्ट्रगान में ला मार्सेयेज़ की धुन का उपयोग किया है।

वफादारी पर सवालअगर आप नेपाल के राष्ट्रगान को सुनें, तो वो आपको एक सामान्य सी लोकधुन लगती है जिसके बोल हैं कि कैसे सभी नेपाली फूलों की तरह एक माला में गुंथे हैं। ये बोल भी सीधे सीधे लगते हैं, लेकिन काफी राजनीतिक हैं।

देश में 10 साल तक चले गृह युद्ध और माओवादियों के नेतृत्व में हुए विद्रोह के कारण 2006 में राजशाही खात्मे के बाद ये राष्ट्रगान लिखा गया।

इस राष्ट्रगान को लिखने वाले कवि ब्याकुल मैला को अस्थिर माहौल के बीच इस बात का प्रमाण देने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी की वो राजशाही के वफादार नहीं हैं। दरअसल मैला ने कभी कविता की एक किताब का संपादन किया था जिसमें पूर्व राजा ने भी कुछ लिखा था।

वहीं कैरेबियन देश बारबाडोस का राष्ट्रगान न्यूयॉर्क कैलिप्सो गायक इरविन बर्गी ने लिखा। कैलिप्सो संगीत त्रिनिडाड के मूल निवासियों का संगीत है जो अब पूरे अमरीकी क्षेत्र में सुना और सुनाया जाता है। दिलचस्प बात ये है कि बर्गी तो सिर्फ छुट्टियां मनाने बार्बाडोस गए थे कि वहां के लोगों ने उनसे अपना राष्ट्रगान ही लिखवा लिया।

मेहनतानाराष्ट्रगान सदियों तक गाए जाते हैं, लेकिन उन्हें लिखने के लिए कितना मेहनताना दिया जाता होगा? इसका जवाब है, बहुत ज्यादा नहीं। किसी को ज्यादा मिल जाए तो वो उसकी किस्मत है।

युगांडा का राष्ट्रगान रचने वाले जॉर्ज काकोमा को तो अपनी मौत से कुछ समय पहले अपनी सरकार से कानूनी लडाई भी लड़नी पड़ी क्योंकि उन्हें रॉयल्टी से वंचित कर दिया गया। 1962 में उन्हें राष्ट्रगान रचने के लिए मात्र 2000 युगांडा शिलिंग यानी 45 रुपये दिए गए थे।

वहीं बोस्निया का राष्ट्रगान लिखने वाले दुसैन सेसतिक को कहीं बेहतर मेहनताना मिला। उन्हें 6000 बोस्नियाई मार्क यानी सवा दो लाख रुपये मिले। उन्होंने राष्ट्रगान के बोल भी लिखे। लेकिन उन्हें इसके लिए कभी पैसे नहीं मिलेंगे क्योंकि बोस्निया की संसद ने कई वर्षों की बहस के बाद पिछले महीने उन्हें खारिज कर दिया।

वहीं दुनिया के सबसे नए देश दक्षिणी सूडान का राष्ट्गान लिखने वाले मिडो सैम्युएल को सम्मान और प्रतिष्ठा के अलावा कुछ नहीं दिया गया।

बिना शब्दों वाले राष्ट्रगानस्पेन के राष्ट्रगान में कोई शब्द नहीं हैं, जो बुनियादी तौर पर देश के शाही परिवार की शान में लिखा गया था। वैसे दुनिया में और भी ऐसे राष्ट्रगान हैं जिनमें शब्द नहीं हैं।

कोसोवो में सरकार ने बहुसंख्यक लोगों की भाषा अल्बेनियन में इसीलिए राष्ट्रगान के बोल नहीं लिखने दिए कि इससे कहीं देश में रहने वाले अल्पसंख्यक सर्ब लोग आहत महसूस न करें। लेकिन इसके चलते अकसर कोसोवों में लोग अपने देश का राष्ट्रगान छोड़ कर सर्बिया और अल्बानिया का राष्ट्रगान गाते हुए सुने जा सकते हैं।

इस सिलसिले में इसराइल का भी जिक्र करना होगा जहां राष्ट्रगान में बदलाव की बात हो रही ताकि उसमें यहूदियों के साथ साथ अरब इसराइलियों को भी जगह दी जाए।

Posted By: Inextlive