गंगाजल परियोजना के प्लांट के नाम पर खानापूर्ति

क्लोरीन और एलम के चैंबरों की नहीं हुई सफाई

Meerut : सावधान मेरठ में गंगाजल सप्लाई के लिए तैयार है। किंतु इसे यूं ही प्रयोग में न लाएं। प्लांट की सफाई के दौरान केमिकल युक्त दूषित सिल्ट इस पानी में आ रही है। जो नुकसानदायक है। जल निगम की लापरवाही शहरवासियों की सेहत पर भारी पड़ने वाली है। जल निगम भोला की झाल स्थित प्लांट से मंगलवार सुबह गंगाजल की सप्लाई करने जा रहा है। इससे पूर्व सोमवार को दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की तफ्तीश में निकलकर आया कि प्लांट की सफाई के नाम पर जल निगम ने न सिर्फ खानापूर्ति कर दी बल्कि एनजीटी के आदेशों को दरकिनार कर दिया है।

दूषित है प्लांट का पानी

शहरवासियों को शुद्ध गंगाजल नहीं बल्कि दूषित-जहरीला पानी पीने को मिलेगा। जल निगम ने प्लांट के ट्रीटेड पानी के टैंकों (क्लेरीफ्लैक्लोटर) से जहरीले केमिकल की सिल्ट को नहीं हटाया गया। इन टैंकों की सफाई मशीनों से होनी चाहिए थी, जिसे मैन्युअली करा दिया। जिससे ट्रीटेड पानी में भारी मात्रा में केमिकल मिली सिल्ट मौजूद है। सफाई के बाद जल निगम ने गंदा दूषित पानी भी प्लांट के पार्क में छोड़ दिया गया।

जरा समझ लें

हर वर्ष दशहरे के दौरान अपर गंगा कैनाल (गंग नहर) का पानी रोक दिया जाता है। इस दौरान नहर की सफाई होती है। नहर में पानी की सप्लाई बंद होने से 100 मिलियन लीटर पर डे (एमएलडी) वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी ठप हो जाता है। इसी अवधि में जल निगम मेरठ की जलापूर्ति के मुख्य स्रोत गंगाजल परियोजना के भोला की झाल स्थित ट्रीटमेंट प्लांट की सफाई कराता है। अव्वल तो लापरवाही का आलम यह है कि 27 अक्टूबर से गंगनहर में तो पानी को छोड़ दिया गया किंतु ट्रीटमेंट प्लांट अभी तक सफाई के नाम पर ठप पड़ा है।

टैंकों में भरा जहरीला पानी

100 एमएलडी के इस वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में गंग नहर से 'गंगाजल' को पंप करके सेटलिंग टैंक में डाला जाता है। यहां पानी में मौजूद डस्ट और गंदगी (टर्बिटी) को हटाने के लिए 5-7 पार्ट पर मिलियन (पीपीएम) पॉली एल्युमिनियम क्लोराइड (पीएसी) पाउडर मिलाया जाता है। इसके अलावा 2-5 पीपीएम क्लोरीन को पानी में नुकसानदायक बैक्टीरिया और वायरस को मारने के लिए प्रयोग किया जाता है। केमिकल का यह मिश्रण अशुद्धियों की मात्रा पर घटता-बढ़ता रहता है। सेटलिंग टैंक से पानी को क्लेरीफ्लैक्लोटर में ले जाया जाता है। प्लांट पर ये 3 टैंक हैं जहां से पानी को फिल्टर करने के बाद पाइप लाइन में सप्लाई के लिए छोड़ दिया जाता है। सेटलिंग टैंक की मैन्युअली सफाई कर सकते हैं जबकि क्लियर वाटर टैंक की सफाई मशीनों से कराने का प्रावधान है। यहां जल निगम ने इन टैंकों की सफाई भी खानापूर्ति करते हुए मैन्युअली ही करा दी। जिससे पीएसी और क्लोरीन की सिल्ट भारी मात्रा में सीएलएफ में मौजूद है। जो बेहद हानिकारक है।

सफाई के नाम पर खानापूर्ति

इसके अलावा तफ्तीश में यह भी निकला कि सेटलिंग टैंक और सीएलएफ की सफाई के नाम पर जल निगम ने खाना पूर्ति कर दी है। लोहे पर किया गया हानिकारक पेंट भी सीएलएफ में ट्रीटेड वाटर के साथ मिला है। सफाई के दौरान टैंकों में मौजूद केमिकल युक्त सिल्ट भरा गंदा पानी भी प्लांट में ही छोड़ दिया। जो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेशों की खुली अवहेलना है।

खतरनाक है क्लोरीन और पीएसी

सीनियर फिजिशियन डॉ। विश्वजीत बैंबी ने बताया कि पानी में क्लोरीन और पॉली एल्यूमिनियम क्लोराइड के कण यदि ज्यादा होते हैं और व्यक्ति उसका सेवन कर लेता है तो बॉडी में पानी की बहुत अधिक कमी हो जाती है। इसकी वजह से डायरिया, उल्टी जैसी स्थितियां भी हो जाती है।

प्लांट में मानकों के अनुसार की सफाई के निर्देश दिए गए हैं। बाद इसके यदि सफाई सही से नहीं हुई है तो इसकी जांच की जाएगी। पेयजल की सप्लाई से पहले उनकी गुणवत्ता का परीक्षण किया जाएगा।

-रमेश चंद्रा, प्रोजेक्ट मैनेजर, गंगाजल परियोजना, मेरठ

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Posted By: Inextlive