बरसात के दिनों में कालाजार का प्रकोप बढ़ जाता है। 30 फीसदी डॉक्टर्स की कमी से परेशान हैं गोरखपुराइट्स...

GORAKHPUR: कालाजार, जैसा कि नाम में ही बीमारी का डर दिखता है, वैसे ही यह बीमारी खतरनाक भी है। यह एक ऐसी सीरियस बीमारी है, जिसकी चपेट में आने से 95 फीसदी लोगों की मौत ही हो जाती है। हर साल इंडिया में 26 से 65 हजार डेथ हर साल रिपोर्ट होते हैं। 20 वेरायटी के लिसमैनियासिस प्रोटोजोआ हैं, जो यह फैलाते हैं। एक बार फिर यह बीमारी दस्तक देने के लिए तैयार हैं। बरसात के साथ उनका फेवरेबल मौसम शुरू हो चुका है। हालांकि गोरखपुर में इसका ज्यादा असर नहीं रहा है, लेकिन कुशीनगर और आसपास के इलाकों से इसके पीडि़त लोग शहर में इलाज के लिए पहुंचते हैं।

मरीज गोरखपुर के लिए मुसीबत
कालाजार के मरीजों की बात करें तो यह गोरखपुर के हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन के लिए हमेशा ही मुसीबत की वजह बनते हैं। एक तो 30 परसेंट डॉक्टर्स की कमी है, ऊपर से यही सीजन इंसेफेलाइटिस का भी है। ऐसे में गोरखपुर एडमिनिस्ट्रेशन का सारा ध्यान इसकी रोकथाम पर रहता है। मगर जब बाहर से इस तरह की संचारी बीमारी की चपेट में आने वाले मरीज पहुंचते हैं, तो अलग से व्यवस्था न होने की वजह से उन्हीं मरीजों के साथ ही इन्हें भी एडमिट करना पड़ता है। ऐसे में डॉक्टर्स का सारा फोकस बंट जाता है और इलाज करने में परेशानी सामने आने लगती है।

टेंप्रेचर डिफरेंस में ज्यादा एक्टिव
टेंप्रेचर डिफरेंस की बात करें तो इस वक्त जो टेंप्रेचर डिफरेंस है, वह बैक्टिरिया के लिए काफी फेवरेबल है। इस दौरान पैरासाइट लिसमैनिया डोनोमेनाई काफी एक्टिव हो जाते हैं। इससे बीमारी बढ़ने की चांसेज कई गुना बढ़ जाती है। सामान्य भाषा में ब्लैक फीवर कही जाने वाली यह बीमारी बालू मक्खी के काटने से होते हैं। मेडिकल की भाषा में इसे लिसमैनियासिस कहते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर उन कमजोर और इम्युनिटी की कमी वाले लोगों पर होता है। 15 दिनों तक लगातार बुखार चढ़े रहने से कालाजार की संभावना बढ़ जाती है। अर्ली डायग्नोसिस ही इसका सबसे बेटर क्योर है। खून निकालने के साथ ही इसकी तत्काल स्लाइड बनाकर जांच करने से इसके बैक्टिरिया दिख जाते हैं।

ऐसे फैलता है कालाजार
कालाजार एक संक्रामक बीमारी है। यह बालू मक्खी के काटने से फैलता है। यह परजीवी मनुष्यों के शरीर में रहकर अपना जीवन बीताता हैं। कालाजार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। बालू मक्खी अधिकतर नमी वाले स्थानों पर रहती है। यह कम रोशनी और मिट्टी की दीवारों, चूहों के बिलों व नम मिट्टी वाली जगहों पर पाई जाती है। यह उड़ नहीं सकती है, लेकिन छह फूट की उंचाई तक ही फुदक सकती है। मादा ऐसे स्थानों पर अंडा देती है जो छायादार, नम और जैविक पदार्थो से भरा हो। बालू मक्खी की लाइफ 16-20 दिन है।

कालाजार एक नजर -

- मक्खी के जरिए फैलता है

- यह जिसे काट लेती हैं, उसे यह बीमारी हो जाती है।

- रेनफॉल या टेंप्रेचर में वेरिएशन लिसमैनिया के लिए फेवरेबल कंडीशन

- डीफोरेस्टाइजेशन के समय भी होते हैं एक्टिव

- पुअर अनहाईजेनिक।

- इम्युनिटी कमजोर होती है।

- टीबी, मलेरिया या एड्स, एनिमिया, माल न्यूट्रिशन के सफरर को होने की संभवना ज्यादा।

- मौसम में ह्यूमिडिटी रहने पर तेजी से फैलते हैं।

- तीन प्रकार के पाए जाते हैं।

विसरल लिसमैनियाटिस

कुटैनियस लिसमैनियाटिस

म्यूकोकुटेनियस लिसमैनियाटिस

यह दिखता है असर 5

- तेज बुखार

- जोड़ो में दर्द

- चेहरे, हाथ, या बॉडीके पार्ट पर लाल दाने, जिसमें पस हो सकता है

- आगे चलकर यह अल्सर के तौर पर दिखने लगते हैं।

- वेट लॉस

- लीवर और स्पीलीन बढ़ जाता है

- एनिमिया बढ़ जाता है।

- कंट्रोल न होने से डर

 

बचाव -

- ह्यूमिडिटी और मक्खी वाली चीजों से बचाकर रखें

- अर्ली डायग्नोसिस

- वेक्टर का कंट्रोलिंग प्रोग्राम चलाना चहिए, जिससे ट्रांसमीट न करें

- गड्ढे में पानी में इंसेक्टिसाइड का स्प्रे

- सोशल एजुकेशन रिगार्डिग प्रिवेंशन और पर्सनल हाईजीन मेनटेन

- एनिमल पालने वाले लोगों को अपने रहने की जगह उनसे दूर कर देना चाहिए।

- न्यूट्रिशस फूड बॉडी की इम्युनिटी को मेनटेन रखने के लिए

- गवर्नमेंट को इंफॉर्म करें, लिसमैनियाटिस प्रिवेंशन एंड कंट्रोल प्रोग्राम चलाती है।

 

गोरखपुर में कालाजार का असर काफी कम है, यहां कालाजार के मरीज काफी कम मिलते हैं। कुशीनगर के साथ ही बिहार आदि जगहों से भी यहां लोग इलाज के लिए पहुंचते हैं। अर्ली डायग्नोसिस से ही इसका इलाज संभव है, वरना 95 परसेंट केस में पेशेंट की मौत हो जाती है।

- डॉ। संदीप श्रीवास्तव, फिजीशियन

Posted By: Inextlive