द व्हाइट टाइगर अरविंद अडिगा की किताब द व्हाइट टाइगर का फ़िल्मी रूप है। कहानी एक ऐसे साधारण से लड़के की है जो कि गांव का है। हलवाई है। लेकिन सपने उसके बड़े-बड़े हैं। वह अपने सपनों को मारना नहीं चाहता है और तय करता है कि वह उड़ान भरेगा। उसके लिए जरिया वह एक जमींदार परिवार को चुनता है। फिल्म में अमीरी-गरीबी के भेदभाव को दिखाते हुए कहानी कही गई है। स्लमडॉग मिलेनियर फिल्म में दिखाया गया भारत का वह गरीबी रेखा से नीचे का एक वर्ग वहीं खड़ा है क्या आज भी अपनी जरूरतों को पूरा करने भर के लिए अमीरजादों के हाथ के वे मोहरे बनते हैं। इंडिया बनने पर आमदा एक देश को क्यों अबतक भारत एक खोज की ही जरूरत है क्यों भारत को समझने के लिए अब भी छोटे-छोटे गांवों में लौटने की जरूरत है। फिल्म इसी मुद्दे की पड़ताल की कोशिश करती है लेकिन कहानी सतही रहती है। पढ़ें पूरा रिव्यु

फिल्म : द व्हाइट टाइगर
कलाकार : प्रियंका चोपड़ा, राजकुमार राव, आदर्श गौरव, महेश मांजरेकर
निर्देशक : रमिन बहरानी
ओ टी टी : नेटफ्लिक्स
रेटिंग : ढाई स्टार

क्या है कहानी
फिल्म में एक संवाद है कि जानवरों में व्हाइट टाइगर कई पीढ़ियों में एक बार जन्म लेता है। फिल्म के लिए इसे ही कटाक्ष के रूप में इस्तेमाल किया गया है। फिल्म एक गांव की है, जहां बलराम (आदर्श गौरव ), अपने परिवार के साथ रहता है। पिताजी टीबी की बीमारी से मर जाते हैं। इसके बाद बलराम की जिंदगी बदल जाती है। घर की जिम्मेदारी सिर पर आ जाती है। सपने चूर होते हैं। फिर भी वह अपने सपनों को एक मौक़ा देता है। वह अपने गांव के जमींदार के बेटे अशोक(राजकुमार राव ) का कार ड्राइवर बन जाता है। उसके साथ उसकी पत्नी पिंकी (प्रियंका ) भी उसके साथ आई है। दोनों मिल कर आउट सोर्सिंग व्यवसाय को आगे बढ़ाना चाहते हैं। इसी बीच एक ऐसी घटना घटती है, जिससे कहानी में पूरी तरह मोड़ आ जाता है। बलराम को एहसास होता है कि गरीबों का इस्तेमाल कर, किस तरह अमीर अपने पाप छुपाते हैं। बलराम फिर तय करता है कि वह भी अब सीधा रास्ता नहीं चुनेगा। उसकी मंजिल कहाँ ले जाती है। यहीं सार है । लेकिन कहानी स्लम डॉग की तरह दिल को छूती नहीं है।

क्या है अच्छा
कहानी पूरी तरह रियलिस्टिक तरीके से दिखाने की कोशिश की गई है। नैरेटिव अच्छा है।

क्या है बुरा
काफी सतही तरीके से प्रस्तुत की गई है कहानी। आपको पता है आगे क्या होना है। ऐसी कहानियां पहले भी देखी गई है। राजकुमार और प्रियंका जैसे कलाकारों के होने के बावजूद, अभिनय में दम नजर ही नहीं आता है। ऐसी घटनाएं भी नहीं हैं, जो आपको आकर्षित करे। फिल्म में ऐसा कोई मोमेंट नहीं है, जो इमोशनल करता हो। इन दिनों हर फिल्म में जबरन हिन्दू-मुस्लिम मुद्दे ठूसे जा रहे हैं, जो अखड़ते हैं। जातिवाद, अमीरी-गरीबी पर सुपरफिशियल अप्रोच है।

अभिनय
राजकुमार राव और प्रियंका चोपड़ा के होते हुए, उस स्तर की स्क्रीनप्ले गढ़ी नहीं गई है। राजकुमार राव ने तो फिर भी सरल और स्वभाविक काम किया है। प्रियंका बेवजह ओवरएक्टिंग करती नजर आई हैं। आदर्श गौरव की ही यह फिल्म है और उन्होंने अपने हिस्से की ईमानदारी,बिल्कुल अच्छी तरह से निभाई है। उन्होंने काफी बेहतरीन काम किया है।

वर्डिक्ट :
आम दर्शकों को कनेक्ट करने की गुंजाईश कम है।

Review By: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari