सुप्रीम कोर्ट ने थर्सडे को मौत की सजा को उम्र कैद में तब्‍दील करने के मामले से संबंधित मुकदमे की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट पर काम के दबाव के बारे में चर्चा की.


शीर्ष कोर्ट पर काम का बोझ चीफ जस्टिस आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने कहा 'इतना अधिक काम, जो उच्चतम न्यायपालिका में आ रहा है अनियंत्रित और अत्यधिक है. हमें इस स्थिति से निबटने के तरीके और उपाय नहीं सूझ रहे हैं.' पूरे साल काम का प्रस्तावचीफ जस्टिस ने अदालतों में पूरे साल काम होने के प्रस्ताव पर वकील संगठनों के रिएक्शन पर भी अप्रन्नता जाहिर की. इस प्रस्ताव पर वकीलों की ओर से आती प्रतिक्रियाएं पर चीफ जस्िटस ने कहा कि विषय के बारे में सोचे समझे और चर्चा के बगैर ही प्रस्ताव के खिलाफ प्रतिक्रियाएं आ रही हैं' इसके बाद उन्होंने सीनियर एडवोकेट्स काम के बढ़ते बोझ से निपटने के लिए आपस में डिस्कशन करके कोई सुझाव दें.दुनिया में कोई इतने मुकदमें नही देखता


चीफ जस्टिस लोढ़ा ने दुनिया के 12 चीफ जस्टिसों के साथ चर्चा करके यह पाया कि दुनिया की कोई भी सुप्रीम कोर्ट इतनी बड़ी संख्या में मुकदमों को नही देखती है. उन्होंने कहा कि 'कुछ उच्चतम न्यायालयों में तो एक साल में सिर्फ 150 अपीलों पर ही सुनवाई की जाती है और जब मैंने उन्हें बताया कि सोमवार और शुक्रवार को हम कम से कम 800 से 900 मुकदमों को देखते हैं तो वे दंग रह गए'

  तीन जजों वाली बेंच करेगी मौत की सजा तय सुप्रीम कोर्ट मौत की सजा को उम्र कैद में बदलने के लिए दायर पेटिशंस पर सुनवाई कर रहा था. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि मौत की सजा से रिलेटेड मुकदमों की सुनवाई कम से कम तीन जजों की बेंच द्वारा की जानी चाहिए.

Posted By: Prabha Punj Mishra