एक खराब फिल्म देखने के बाद एक ओके सी फिल्म अच्छी लगने लगती है और अगर फिल्म जिससे आपको रत्ती भर भी उम्मीद न हो वो अच्छी निकल आये तो वो और अच्छी लगती है। आज मेरे साथ ये दोनों ही बातें हुईं। द ज़ोया फैक्टर उम्मीद से बेहतर निकली और पल पल से कहीं बेहतर लगी आइये बताते हैं क्यों।


रेटिंग : 3.5 स्टार

कहानी :1983 वर्ल्ड कप के दिन जन्मी एक लड़की ज़ोया जो वैसे अपनी लाइफ में निहायत ही मनहूस है सड़नली भारत क्रिकेट टीम का लकी चार्म बन जाती है आगे क्या होता है जानने के लिए देखिए फिल्म।समीक्षा :


ये एक परफेक्ट रोमांटिक कॉमेडी है, हल्की फुल्की सी फिल्म जो आपको गुदगुदा सकती है और हंसा भी सकती है। प्लाट भले ही बिलिवेबल न हो पर एक्सपेरिएंस बड़ा ही एंजोयबल है और यही कारण है कि बिना किसी भद्दे और भोंडे जोक्स के बिना ये फिल्म आपका दिल खुश कर देती है। राइटिंग अच्छी है और डाइलॉग कंसिस्टेंटली फनी हैं। फिल्म सही मायनो में कहें तो एक लंबी सी ऐडफिल्म है जो कभी आपको होप, कभी आपको रोमांस , कभी आपको सपने तो कभी क्रिकेट, चोकलेट, कोल्ड ड्रिंक और सीमेंट तक बेचने की कोशिश करती है। अलग किस्म की हल्की फुल्की फिल्म है जो कोई दिखावा किये बिना बस आपको फील गुड कराती है। डिरेक्शन अच्छा है और एडिटिंग क्रिस्प है एन्ड और  CGI का काम थोड़ा और अच्छा होता तो मज़ा आ जाता।अदाकारी :

सोनम कपूर एक मनहूस ज़िंदगी जी रही लड़की का रोल प्ले कर रहीं हैं, जिसका कोई काम ढंग से नहीं होता बड़ा एफर्टलेस तरीके से निभाती हैं, बड़ा अच्छा काम किया है उन्होंने। दलकर सलमान बहुत ही जबरदस्त तरीके से अपने किरदार में ढल जाते हैं , साउथ में उनका रणबीर कपूर जैसा रुतबा है, फिल्म देख कर पता चल जाता है क्यों। इसके अलावा अंगद बेदी, कोयल पूरी, संजय कपूर और सिकंदर खेर का काम भी बढ़िया है और ओवर आल कास्टिंग बढ़िया है।कुलमिलाकर जरूर देखिए ज़ोया फैक्टर, अगर आप लकी होके अपने टिकेट का पैसा वसूलना चाहते हैं।बॉक्स ऑफिस प्रेडिक्शन : 30 से 40 करोड़

Posted By: Mukul Kumar