बागबान से कम नहीं है इन बुजुर्गों की कहानी, अपनों ने ठुकराया तो गैरों ने दिया सहारा
लखनऊ (ब्यूरो)। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने कुछ ऐसे ही बुजुर्गों को तलाशा, जिन्हें ना केवल अपनों ने ठुकरा दिया था बल्कि उनके जिंदगी का फलसफा सुनने के बाद किसी के भी आंखों से आंसू छलक सकते हैं। कुछ तो ऐसे हैं जो कभी डॉक्टर थे या फिर उनके एक -दो नहीं बल्कि चार-चार बेटे हैं, लेकिन उनको अपनों ने ही बेघर कर दिया। केस नंबर एक- लावारिस हालात में बीमार मिले पीएचडी होल्डर
कानपुर निवासी पीएचडी होल्डर पीएस त्रिपाठी (78) कई दिनों तक अद्र्धनग्न अवस्था में गंदगी से सने सिविल अस्पताल के बाहर पड़े रहे। दीपक महाजन और वर्षा वर्मा उनके पास पहुंचे और उनके बारे में पूछा तो वह इंग्लिश में बात करने लगे। इस पर उन्होंने गाड़ी से कपड़े निकाले और उन्हें पहनाए। इसके बाद उन्हें सिविल अस्पताल की इमरजेंसी के बाथरूम में ले जाकर नहलाया और वार्ड के 7 नंबर बेड पर भर्ती कराया। साथ ही उन्हें नाश्ता कराया। डॉक्टर त्रिपाठी ने बताया कि वह कानपुर के निवासी हैं, उनका एक बेटा है, लेकिन जब उसने लव मैरिज की थी तब उन्होंने उससे संबंध खत्म कर लिए थे। ऐसे में वह इधर-उधर बीमार अवस्था में घूम रहे हैं, उनकी कोई सुध लेने वाला नहीं है।
केस दो- चार बेटे, तीन बेटियां फिर भी लावारिस हालत में मिलेदुबग्गा में एक वृद्ध गंदगी से सने नाली में पड़े मिले। उन्हें 108 नंबर एंबुलेंस से सिविल हॉस्पिटल पहुंचाया गया, जहां उनका पूरा ट्रीटमेंट कराया गया। उनके कपड़े बदले गए। बुजुर्ग रामकुमार (75) कई दिनों से भूखे प्यासे थे। उन्हें जैसे ही बंद मक्खन दिया गया वह तेजी से उसे खाने लगे। उनकी भूख को देखकर खाना खिलाया गया। रामकुमार ने बताया कि नक्खास में उनकी परचून की दुकान थी। उनके चार बेटे और तीन बेटियां हैं। सभी लखनऊ में रहते हैं। इसके बावजूद वह लावारिस हालात में दर-दर की ठोंकरे खाने को मजबूर हैं। केस नंबर तीन- बच्चों ने निकाला तो गैरों ने अपनाया
रूपा (70) केकेसी चारबाग के पास में रहती थी। बच्चों ने उन्हें निकाल दिया तो एपी सेन रोड निवासी कैथेडल स्कूल में टीचर अभिजीत मोहन गुप्ता ने उन्हें शरण दी। वह पिछले तीन माह से यहां रह रही हैं। अभिजीत ने बताया कि उनकी बड़ी बहन हनुमान सेतु के पास योगा केंद्र चलती हैं। उन्होंने फोन करके बताया कि एक महिला जिसको आंखों से कम दिखता है, वह लावारिस है और उसका आंखों का ऑपरेशन कराना है। इस पर अभिजीत ने दीपक महाजन और वर्षा वर्मा से संपर्क किया। दोनों रूपा को लेकर एक निजी हॉस्पिटल लेकर गए, जहां डॉक्टर पल्लवी सिंह ने जांच की। बुजुर्ग महिला का 17 सितंबर को आंख का ऑपरेशन होना है। डॉ। पल्लवी सिंह ने इलाज के लिए एक भी पैसा चार्ज नहीं किया। रूपा के टेस्ट डॉ। पल्लवी नेहसबैंड डॉ। वैभव प्रताप सिंह के डायग्नोसिस सेंटर में फ्री में कराए। रूपा ने बताया कि उनके बच्चे चारबाग में रहते हैं। उनके बच्चों ने उन्हें घर से निकाल दिया, जिसके बाद से वह समाजसेवी अभिजीत मोहन गुप्ता के घर में रह रही हैं। केस नंबर चार- बागवान से कम नहीं इनकी स्टोरी
विश्वनाथ मेहरा (75) कानपुर के निवासी हैं। इनके बेटे ने इनकी रेडीमेड गारमेंट की दुकान हड़प ली। इतना ही नहीं विश्वनाथ और उनकी पत्नी को घर छोडऩे पर मजबूर कर दिया। घर से निकले के बाद वह वैष्णो देवी मंदिर दरबार कटरा पहुंचे, जहां पर उन्होंने किसी तरह कुछ पैसे इक्ट्ठा किये और कपड़ों की दुकान खोली। वहीं जब वह काफी बुजुर्ग हो गए तो सरोजनीनगर स्थित एक वृद्ध आश्रम में रहने लगे। उन्होंने अपनी पत्नी को बेटे के पास छोड़ दिया। अचानक तबियत बिगडऩे पर उन्हें लोहिया में भर्ती कराया गया। डॉक्टर ने उन्हें हार्टअटैक होने की जानकारी दी, जिसके बाद लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया। उसी दिन उनकी एंजियोग्राफी की गई तो पता चला कि तीनों आल्टरी ब्लॉक हैं। उनके इलाज का खर्च दिव्य सेवा फाउंडेशन ने उठाया।ऐसे लोग हैं तो हमारे बुजुर्ग सुरक्षित हैंजहां एक तरफ अपनों से ठुकराये बुजुर्ग बेसहारा होकर रोड पर भटकने को मजबूर हैं तो वहां ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने बुजुर्ग को अपनाने का बीड़ा उठाया है। बुजुर्गों के लिए यह लोग अपनों से भी ज्यादा प्यारे हैं। शहर में सरकारी पद पर कार्यरत दीपक महाजन और उनकी सहयोगी वर्षा वर्मा ऐसे बुजुर्गों की ना केवल सेवा कर रही हैं बल्कि उनकी हेल्थ में अपनी कमाई का हिस्सा भी लगा रही हैं।lucknow@inext.co.in