Allahabad : अमावस्या के घनघोर अंधेरे में उजाला फैलाने के लिए एक दीप काफी होता है. हमारे समाज में भी कई ऐसे दीप हैं जो अपने स्वस्थ प्रयास से कुरीतियों के अंधेरे को काटने में लगे हैं. आइए इस दीपावली कुछ ऐसे ही 'दीपोंÓ से कराते हैं आपकी मुलाकात...

 

-सामाजिक बुराइयों का अंधियारा दूर करने के लिए खुद को किया समर्पित

 सिर्फ एक दीप अंधेरे को खत्म करने की ताकत रखता है। दीपावली की रात को फैले हुए अंधेरे को भी हम दीपों की रोशनी से मिटाकर घर को जगमग कर देते हैं। अंधेरा सिर्फ अमावस्या की रात में ही नहीं है बल्कि हमारे समाज में भी फैला हुआ है। यह है कुरीतियों का अंधेरा। इस अंधेरे से लडऩे के लिए समाज के ही कुछ लोग एक दीप की तरह कुरीतियों के अंधेरे को काटने में लगे हुए हैं। वह बिना रिजल्ट की फिक्र किए कोशिश करते जा रहे हैं इन लोगों का साफ कहना है किसी भी कोशिश में या तो नतीजा मिलता है या फिर वह एक नया सबक सिखा कर जाती है। आज भी करप्शन, महिला अत्याचार, प्रदूषण, गरीबी, भूखमरी जैसे तमाम रावण हमारे सामने मुंह खोले हुए खड़े हैं। जिनसे लडऩे की उनकी कोशिश बदस्तूर जारी है. 

ऐसे लोगों के पास बहाना नहीं होता है 

हमारे शहर में ऐसे कई शख्स हैं जो सोसायटी के लिए लड़ाई लड़ रहे है। नाइंथ के स्टूडेंट कपिल ने अपनी जिद से गरीबी के अंधेरे को खत्म कर दिया है। ग्रीन एनवायरमेंट और नदियों को पॉल्यूशन फ्री कराने के लिए मनोज लगातर लड़ाई लड़ रहे हैं। होनहार स्टूडेंट कपिल कहते हैं कि अभाव किसी की राह नहीं रोकते हैं, बल्कि उसके इरादे को मजबूत करते हैं. 

1- कपिल- बहाने तो कमजोरों के पास होते हैं

जिद का दूसरा नाम कपिल कुमार देव है। क्लास नाइंथ के इस स्टूडेंट ने अपने रिसर्च के बल पर अच्छे-अच्छे को सोचने पर मजबूर कर दिया है। पिता किसान हैं, बेटे को अच्छी शिक्षा दिला पाएं यह उनके बस में नहीं है। लेकिन क्लास नाइंथ में पढऩे वाले कपिल ने मोबाइल लॉकर नाम की एक ऐसी डिवाइस बना दी है कि खुद काका कलाम उसकी पीठ थपथपा गए हैं। गवर्नमेंट इंटर कॉलेज में पढऩे वाले कपिल पहली बार एमएनएनआईटी में एक एग्जीबिशन में सबके सामने आए थे। वहां के डाइरेक्टर ने उनकी इस खोज पर खुश होकर उनको एमएनएनआईटी लैब रिसर्च के लिए उपलब्ध करा दी। जीआईसी के प्रिसिंपल ने उनको लैपटाप उपलब्ध कराया व उनकी फूडिंग लॉजिंग फ्री करवा दी है। गरीबी के अंधेरे से जूझ रहे कपिल उन लोगों के लिए एक सबक हैं जो नाकामयाबी के बहाने ढूंढने में लगे रहते हैं।  

2- मनोज श्रीवास्तव- थोड़ी जीत मिल चुकी, थोड़ी बाकी है 

ग्रीन एनवायरमेंट के लिए मनोज श्रीवास्तव की लड़ाई काफी आगे बढ़ चुकी है। वह सिस्टम के अगेंस्ट सिस्टमेटिक तरीके से ही इस लड़ाई को अंजाम दे रहे हैं। जीत मुश्किल लग रही थी, लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई। ग्लोबल ग्रीन संस्था के प्रेसिडेंट मनोज ने अपना अस्तित्व खोने की तरफ बढ़ रही गंगा व यमुना को बचाने के लिए कानूनी तौर पर लड़ाई लड़ी। हाईकोर्ट में लड़ी इस लड़ाई में उनको बड़ी सफलता तब मिली जब हाईकोर्ट ने इलाहाबाद सिटी में पॉलीथिन को पूरी तरह से बैन कर दिया। उसके बाद उन्होंने मूर्ति विसर्जन के लिए लड़ाई लड़ी। रिजल्ट मिला, गंगा और यमुना में मूर्तियों को प्रवाहित करने पर रोक लगा दी। मनोज की मेहनत रंग ला रही है। सिर्फ कानूनी तौर पर कान उमेठने के साथ ही वह पब्लिक को अवेयर करने की कोशिश में भी जुटे हुए है. 

3- मंजू पाठक- ताकि कोई खुद को न समझे कमजोर और बेसहारा 

कमजोर, बेसहारा, सिस्टम और अपनों की सताई हुई महिलाओं के लिए मंजू पाठक एक आस का नाम है। महिलाओं की लड़ाई चाहे जिससे हो, मंजू हमेशा उनके पीछे साए की तरह खड़ी रहकर मजबूती देती हैं। महिला की लड़ाई चाहे आईएएस पति से हो या फिर रेप का शिकार बना देने वाले मंत्री से। मंजू हर तरह की मदद करती हैं। सिटी में एक दो नहीं बल्कि दर्जनों ऐसे मामले हैं जिनमें उन्होंने पीडि़त महिलाओं को शक्ति प्रदान की है। यहां तक की कई बार पीडि़त महिलाओं की मदद के लिए वह अपने घर के दरवाजे खोलने से लेकर पैसा तक खर्च करती हंै। अपने प्रेमी को पाने के लिए गुडग़ांव से इलाहाबाद आई मधुलिका हो या फिर मंत्री द्वारा रेप की भुक्तिभोगी कमला रही हो। मंजू ने बखूबी उनका साथ दिया. 

4- केके राय- हर गलत पर कोशिश करना जिनकी फितरत है 

हर गलत को रोकने के लिए एक कोशिश जरूरी है। कई बार रिजल्ट तो कई बार एक नया सबक मिलता है। यह मानना है एडवोकेट केके राय का। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में लॉ के गोल्ड मेडलिस्ट रहे केके राय ने अपने नॉलेज को ही अपना हथियार बनाया। उन्होंने गरीब, मजबूर और जरूरतमंद के लिए कानूनी तरीके से हक हासिल करवाया। चाहे भीषण सर्दी में गरीबों के सिर छिपाने के लिए रैन बसेरा हो, बुंदेलखंड में किसानों की कर्ज की वसूली पर रोक हो, या फिर यूपी में मानवाधिकार आयोग के गठन के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी। वह बताते हैं कि तीनों ही मामलों में उन्होंने पिटीशन दाखिल की। इसके साथ ही इलाहाबाद में जाड़े में गरीबों के लिए रैन बसेरा के लिए भी उन्होंनें लड़ाई लड़ी। अपने इस काम के चलते उनकी पापुलरिटी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके पास देशभर में लॉ के इंस्टीट्यूट व यूनिवर्सिटी से स्टूडेंट्स इंटर्नशिप के लिए आते हैं. 

5- राजेंद्र प्रताप सिंह- वाकई इनको तो सलाम करना ही पड़ेगा 

स्वरूपरानी हॉस्पिटल के मर्चुरी में आए दिन अज्ञात लाशें पहुंचती हैं। जिनका कोई भी अपना नहीं होता है। इन लाशों को अंतिम संस्कार का खर्च उठाने की जिम्मेदारी राजेंद्र प्रताप सिंह ने ले रखी है। वहीं पर मेडिकल स्टोर चलाने वाले राजेंद्र मर्चुरी पहुंचने वाली हर अज्ञात बॉडी के दाह संस्कार का खर्च अपनी जेब से देते हैं। करीब तीन सौ रुपए प्रति अज्ञात बॉडी वह देते हैं। अभी तक वह सैकडों अज्ञात बॉडी के दाह संस्कार का खर्च दे चुके हैं। इसके पीछे वह बताते हैं कि एक बार एक अज्ञात लाश आई थी, लेकिन पैसा न होने के चलते उसका दाह संस्कार नहीं हो पा रहा था। तब से यह परंपरा सी बन गई है। यह काम खुद अकेले करवाते हैं। आज भी एसआरएन में अगर कोई अज्ञात बॉडी आती है तो सीधे राजेंद्र के पास पहुंच जाती है. 

 

Posted By: Inextlive