-पितृपक्ष की मातृनवमी पर विधि विधान से किया सामूहिक त्रिपिंडी श्राद्ध

-किया भंडारा भी, पुरोहितों को भोजन करा खुद भी ग्रहण किया प्रसाद

VARANASI

खुशी की लाली लपेटे इन चेहरों के पीछे कितना दर्द छिपा है इसका एहसास सिर्फ उन्हें ही है। हर किसी की हिकारत भरी नजरें जीने नहीं देतीं पर जिंदा रहने की मजबूरी से सांसें चलती रहती हैं। पर जिसने जन्म लिया वह मरता भी है। ये भी मरती हैं लेकिन इन्हें मोक्ष नहीं मिलता। हिन्दू धर्म की होने के बावजूद कोई इनका श्राद्ध नहीं करता। पर हर सनातनी की तरह मोक्ष का अधिकार तो इनका भी है। इसी मोक्ष के अधिकार के लिए देश भर के किन्नरों का शनिवार को काशी में जुटान हुआ। पितृपक्ष की मातृनवमी पर पिशाच मोचन के विमल तीर्थ पर किन्नर महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की अगुवाई में किन्नरों ने अपने समुदाय के पितरों का त्रिपिंडी श्राद्ध किया और उनके मोक्ष की कामना की। श्राद्ध के बाद हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय में भंडारे का आयोजन किया गया। इसमें पुरोहितों को भोजन कराने के साथ ही किन्नरों ने भी प्रसाद ग्रहण किया।

विमल तीर्थ में बना इतिहास

तकरीबन क्क् बजे मुख्य पुरोहित पं। अनूप शर्मा के आचार्यत्व में ख्क् ब्राह्माणों ने श्राद्ध की प्रक्रिया शुरू करायी। अलग अलग राज्यों से आये क्ब् किन्नरों ने अपने समुदाय के पितरों के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया। खास बात यह रही कि जैसे ही श्राद्ध की प्रक्रिया शुरू हुई वैसे ही बादल बरसने लगे। तीन घंटे तक श्राद्ध की प्रक्रिया चली और तब तक मूसलधार बारिश होती रही। महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने बताया कि महाभारत काल में शिखंडी के द्वारा पितरों के श्राद्ध का उल्लेख मिलता है पर उसके बाद कभी भी किन्नरों का श्राद्ध किसी ने नहीं किया। आज हजारों साल बाद अपने समुदाय के पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए यहां पर किन्नरों ने श्राद्ध किया है और इतिहास बनाया है। इस अवसर पर किन्नर अखाड़ा के संस्थापक उज्जैन के ऋषि अजय दास, गंगा महासभा के जितेन्द्रानंद सरस्वती आदि उपस्थित थे। आयोजन में विमल तीर्थ के मुन्ना लाल पाण्डेय, रवि शंकर द्विवेदी का विशेष सहयोग रहा।

किन्नर अखाड़े के महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने पत्रकारों से हुई बातचीत में कहा कि यहां से एक शुरुआत हुई है। किन्नर समुदाय के पितरों का हर पांच साल पर काशी में श्राद्ध आयोजित किया जायेगा। ख्0क्भ् उज्जैन के महाकुंभा में किन्नर अखाड़े की स्थापना हुई। अब यह अखाड़ा किन्नरों के अस्तित्व की लड़ाई लड़ेगा।

लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, महामंडलेश्वर किन्नर अखाड़ा

मोक्ष हर सनातनी का अधिकार है। किन्नरों के जन्म के समय तक तो संस्कार हिन्दू रीति रिवाज से होते हैं लेकिन उनके मरने के बाद उन्हें दफना दिया जाता है। ऐसे में उनकी आत्मा शांत नहीं होती। हजारों सालों से किन्नरों की आत्मा की शांति के लिए कोई अनुष्ठान नहीं किया गया। यह त्रिपिंडी श्राद्ध का कार्यक्रम उनके पितरों की आत्मा की शांति के लिए है।

ऋषि अजयदास, संस्थापक किन्नर अखाड़ा

जो हिन्दू धर्म में पैदा हुआ है उसके मरने के पश्चात उसके संस्कार भी धर्म के अनुकूल ही होने चाहिए। पर ऐसा नहीं होता। किन्नरों का शवदाह न करके उन्हें दफनाये जाने की परंपरा है। ऐसे में उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मोक्ष की कामना में भटकती रहती है। हमारे सनातन धर्म के अनुसार त्रिपिंडी श्राद्ध के जरिये ही मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए इस बार काशी से इतिहास का सृजन किया गया है।

स्वामी जितेन्द्रानंद, गंगा महासभा

हमारी भूख भी आप जितनी ही है

किन्नर श्राद्ध में शामिल होने के लिए दिल्ली से आयी भवानी मां ने पत्रकारों से बातचीत में समाज के ठेकेदारों पर व्यंग किया। कहा कि हमारी भूख बहुत छोटी है। एक सामान्य व्यक्ति की जितनी जरूरतें होती हैं उतनी ही हमारी भी होती हैं। पर हमें अपने बच्चों के लिए जिद करना पड़ता है। बताया कि उन्होंने अपने समुदाय के दो लोगों को उच्च शिक्षा दिलायी है। ट्िवकल और खुशी नाम की इन दोनों ने ही दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद लंदन से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। बड़े दुखी मन से कहा कि जब हम इन्हें पाल और पढ़ा सकते हैं तो आप क्यों नहीं। क्यों कोई मां बाप अपने कलेजे के टुकड़े को घर निकाले की सजा दे देते हैं जिनकी कोई गलती ही नहीं होती। कहा कि मैंने भी पढ़ाई की और अपने बच्चों को भी पढ़ाया है। ये अब हमारे अभियान का आगे बढ़ायेंगे।

बॉक्स

अजन्मी बेटियों का किया श्राद्ध

जनजागरूकता के लिए धर्मनगरी काशी ने शनिवार को मातृनवमी पर अनूठा अनुष्ठान किया। आगमन संस्था की ओर से अजन्मी पांच हजार बेटियों का दशाश्वमेध घाट पर श्राद्ध किया गया। कोख ही में मार दी गई उन बेटियों की मोक्ष की कामना से विधि-विधान पूर्वक तर्पण समेत समस्त अनुष्ठान किए गए। दूसरे साल श्राद्ध-तर्पण कर रहे संस्था के संस्थापक डॉ। संतोष ओझा ने बताया कि शास्त्रीय मान्यता के अनुसार किसी जीव की अकाल मौत पर मृतक की आत्मशांति के लिए शास्त्रीय विधि से पूजन-अर्चन का विधान है। दिनेश शंकर दुबे के आचार्यत्व में क्क् वैदिक ब्राह्मणों ने वैदिक रीति से श्राद्ध कर्म कराया।

Posted By: Inextlive