ऑस्ट्रेलिया की एक प्रमुख सुपर मार्केट चेन कोल्स में सफाईकर्मियों की ज़रुरत है. इसके लिए बाकायदा विज्ञापन भी प्रकाशित हुआ है लेकिन इसमें एशियाई लोगों खासकर भारतीयों को आवेदन करने से मना कर दिया गया है.

ठेकेदार की ओर से दिए गए इस विज्ञापन के ख़िलाफ़ लोगों ने विरोध शुरु कर दिया है। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार इंटरनेट पर दिए गए इस विज्ञापन स्पष्ट तौर पर कहा गया है, ''स्टोर को किसी भारतीय या एशियाई कामगारों की ज़रुरत नहीं है.'' कोल्स ऑस्ट्रेलिया का एक प्रमुख चेन सुपर मार्केट है। इसके देशभर में 2,100 से ज्य़ादा स्टोर हैं जहाँ एक लाख से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं।

वेबसाइट पर विज्ञापनस्थानीय मीडिया के अनुसार गमट्री नाम की वेबसाइट पर ये विज्ञापन प्रकाशित हुआ है। इस विज्ञापन में ईस्टलैंड्स शॉपिंग सेंटर के सुपरमार्केट में सफाईकर्मियों के लिए जगह खाली थी। इस विज्ञापन के छपते ही ऑस्ट्रेलिया में सोशल मीडिया साइट्स पर इसका विरोध शुरु हो गया और नाराज़ लोग कोल्स सुपरमार्केट का बहिष्कार करने की मांग करने लगे।

स्थानीय अखबार 'द मर्करी' के अनुसार विरोध के स्वर तेज़ होने के बाद गमट्री ने अपनी साइट से ये विज्ञापन हटा लिया है। ऑस्ट्रेलिया में रह रही भारतीय पत्रकार पल्लवी जैन ने बीबीसी से इसकी पुष्टि की है।

कोल्स के प्रवक्ता का कहना है कि ये विज्ञापन उस कंपनी की ओर से प्रकाशित करवाया गया है जिसें रोसनी स्थित स्टोर की सफ़ाई का ठेका दिया गया था। कोल्स के प्रवक्ता जिम कूपर के अनुसार, ''ये विज्ञापन कोल्स की जानकारी के बगैर छापा गया था और जब हमें इसके बारे में पता चला तो हम काफी चिंतित हुए.''

ठेकेदार की तलाशतस्मानिया में भेदभाव-विरोधी मामलों की कमिश्नर रॉबिन बैंक्स ने कहा है कि वो इस ठेकेदार का पता लगाना चाहती हैं ताकि उसके खिलाफ़ कानूनी कार्रवाई कर सके। बैंक्स ने कहा, ''नस्ल के आधार पर इस तरह से किसी व्यक्ति को उसके अधिकारों से वंचित रखना ग़ैरक़ानूनी है.''

बैंक्स ने ये भी कहा कि उनके पास अक्सर इस किस्म की शिकायतें आती रहती हैं जिसमें नौकरी के संदर्भ में दिए गए विज्ञापनों में धर्म, जाति, नस्ल और रंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है। उन्होंने कहा जिस कंपनी में ये जगह खाली थी और जिस प्रकाशक ने ये विज्ञापन छापा है उन दोनों के खिलाफ़ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। रॉबिन बैंक्स के अनुसार, ''इस विज्ञापन को छापकर गमट्री ने भी कहीं ना कहीं कानून को तोड़ा है, क्योंकि नियमों के अनुसार वे किसी भी तरह की विवादास्पद सामग्री अपनी वेबसाइट पर नहीं छाप सकते.''

नस्लभेद

कुछ दिन पहले ही एक रिपोर्ट में ये बात सबने आई थी कि ऑस्ट्रेलिया दक्षिण एशियाई मूल के और खासकर भारतीयों की पहली पसंद बन रहा है। ऑस्ट्रेलिया में बसने वालों में भारतीयों की संख्या में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। भारत ने इस मामले में चीन और ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ दिया है। लेकिन ऑस्ट्रेलिया में एक साल पहले नस्लीय हमलों के कई मामले सामने आए थे, जिसके निशाने पर कई भारतीय थे।

Posted By: Inextlive