- आज है मदर्स डे, स्कूलों में आयोजित किए गए कई कार्यक्रम

- ओल्ड एज होम पहुंचकर करते हैं मां की सेवा, वो अपनी मां नहीं पर मां तो मां है

ये दुनिया है तेज धूप, पर वो तो बस छांव होती है।

स्नेह से सजी, ममता से भरी, मां तो बस मां होती है।

मेरठ। मां का अहसास ही जीवन में खुशियों की सबसे बड़ी सौगात है। जीवन की पगडंडी में मां का सहारा ही सबसे बड़ा संबल होता है। मां अपने बच्चों को हर मुसीबत से बचाती है। मदर्स डे के मौके पर कुछ ऐसी भी कहानियां है जहां ओल्ड एज होम में रह ही मां की आंखें अपनों को खोजती है। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें उन मां भले ही कोख से जन्म न दिया हो पर संवेदनाओं का रिश्ता इतना गहरा है। मां की निगाहें हर पल अपने उन लाडलों को तलाशती रहती हैं।

करते है मां की सेवा

शहर में कुछ ऐसे लोग भी है जो अपनी मां के साथ ही दूसरों की मां का भी ख्याल रखते हैं। ऐसे में वो शहर के विभिन्न वृद्धाश्रमों में जाकर उन मां से भी मिलते है, जिनकी आंखों को उनका इंतजार होता है। भले ही मां से इनका खून का रिश्ता नहीं है, लेकिन फिर भी वो इनको अपना अंश मानकर उनका इंतजार करती है। और हरदम दिल से दुआएं देती हैं।

दिल से है जुड़ाव

इन शहरवासियों में इन मां के प्रति अपनी मां जैसा ही लगाव है। इनका मानना है कि इन्हें आश्रम में आकर इनसे सुख-दुख बांटना, त्योहारों को सेलीब्रेट करना और साथ बैठकर मन की बातें करना बहुत अच्छा लगता है। उनको ऐसा लगता ही नहीं कि वो उनकी मां न हो, तो वहीं दूसरी ओर वृद्धाश्रम में रह रहीं महिलाएं भी अपने इन बेटों के प्रति वात्सल्य से ओतप्रोत रहती हैं।

मां, शब्द ही ऐसा है जिसको कभी परिभाषित नहीं किया जा सकता। मैं अक्सर जब भी वृद्धाश्रम जाती हूं, तो मुझे उन मां को देखकर आंखों में आंसू आ जाते हैं, जिनके बच्चे उनके पास नहीं और हममें ही अपने बच्चों को तलाशती है।

अलका गुप्ता, शंभूनगर

मैं अक्सर वृद्धाश्रम जाती रहती हूं, मुझे वहां की महिलाओं से मिलकर उनके साथ बाते शेयर करना अच्छा लगता है। वो भी मुझे अपनी बेटी मानती है और अपने दुख सुख को शेयर करती है। उनका प्यार पाकर काफी अच्छा लगता है।

साधना मित्तल, बैंकर स्ट्रीट

मां वो है जो खुद गीले बिस्तर में सोकर भी बच्चों को सूखे बिस्तर में सुलाती है। खुद परेशान हो, लेकिन चेहरे पर बच्चों के लिए मुस्कान बनाए रखती है। मां शब्द ही ऐसा है जिसको बयां कर पाना बहुत मुश्किल है।

रीना सिंघल, स्वराजपथ

मां, वो है जो अपने हिस्से का निवाला भी बच्चों को खिलाकर खुश होती है। मैनें उन मां को भी आश्रमों में देखा है, जिनके बच्चे उनके साथ नहीं लेकिन आज भी उनकी आंखे बच्चों के इंतजार में रहती है।

बीबी बंसल, प्रिंसिपल, एसडी ब्वायज सदर

मां के बारे में जितना भी कहूं बहुत कम रह जाता है। मां तो वो है जिसके आंचल में पूरे जहान का सुख मिलता है। मैं अक्सर मदर्स डे पर व अन्य मौकों पर भी वृद्धाश्रम जाता रहता हूं।

विनेश तोमर, कैंट अस्पताल निवासी

Posted By: Inextlive