बाबू राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्‍ट्रपति बने. वे दो बार राष्‍ट्रपति रहे और युवाओं को मौका देने के लिए तीसरी बार खुद को राजनीति से संन्‍यास ले लिया. उनकी मेधा और सादगी को लेकर बहुत सारे संस्‍मरण हैं. उनके जीवन से जुड़े तीन संस्‍मरणों के बारे में हम चर्चा कर रहे हैं जो आज भी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं...


परीक्षार्थी, परीक्षक से बेहतर हैराजेन्द्र बाबू फारसी में शिक्षा ग्रहण करने के बाद छपरा के जिला स्कूल में पढ़ने लगे. आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने टीके घोष अकादमी पटना में एडमिशन ले लिया. 18 वर्ष की आयु में राजेन्द्र बाबू ने कोलकाता यूनिवर्सिटी के एंट्रेंस एग्जाम फर्स्ट आए. 1902 में कोलकाता के ही नामचीन प्रेसीडेंसी कालेज में पढ़ाई शुरु की. इसी कालेज में परीक्षा के बाद राजेंद्र बाबू की आंसर शीट चेक करते समय परीक्षक ने उनकी उत्तर-पुस्तिका पर ही लिखा 'The examinee is better than the examiner.' (परीक्षार्थी, परीक्षक से बेहतर है.) ये थी उनकी विद्वता की मिसाल. 1915 में उन्होंने गोल्ड मेडल के साथ लॉ की मास्टर डिग्री हासिल की. इसके बाद कानून के क्षेत्र में ही उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि भी हासिल की.सीनेटर के पद को मार दी लात


राजेंद्र बाबू महात्मा गांधी के विचारों, देश-प्रेम से इतना प्रभावित हुए कि 1921 में कोलकाता यूनिवर्सिटी के सीनेटर का पद छोड़ दिया. विदेशी और स्वदेशी के मुद्दे पर अपने बेटे मृत्युंजय को कोलकाता यूनिवर्सिटी से निकालकर बिहार विद्यापीठ में एडमिशन करा दिया. गांधीजी के असहयोग आन्दोलन को सफल बनाने के लिए राजेंद्र बाबू ने बिहार में असहयोग आन्दोलन की अगुआई की और बाद में नमक सत्याग्रह आन्दोलन भी चलाया.खाते में मात्र 1,813 रुपये

बाबू राजेंद्र प्रसाद ने 24 अक्टूबर, 1962 में पंजाब नेशनल बैंक के पटना स्थित एक्जिबिशन रोड ब्रांच में एक खाता खुलवाया था. उनका एकाउंट नंबर 038000010030687 है. पीएनबी ने उनके खाते को आजतक बंद नहीं किया है. इसमें अब भी ब्याज की रकम जमा होती है. पीएनबी ने देश के पहले राष्ट्रपति को प्राइम कस्टमर का दर्जा दे रखा है. देश के पहले राष्ट्रपति की सादगी और ईमानदारी की यह मिसाल आज के नेताओं के लिए नजीर है, जो घोटालों में जेल तक काट रहे हैं. कई नेताओं का काला धन स्विस बैंकों में जमा है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh