पूर्व मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त टीएन शेषन अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जिसने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की चुनाव प्रक्रिया को निष्‍पक्ष व पारदर्शी बनाने में बड़ा योगदान दिया। देश के 10वें मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त के रूप में उन्‍होंने चुनाव आयोग की स्‍वायत्‍तता व अधिकारों को लेकर दृढ़ता दिखाई। इतना ही नहीं अपनी सीधी व सपाट बात व नियमों के पालन में सख्‍ती के लिए मशहूर शेषन ने चुनाव प्रक्रिया में लोगों का भरोसा बहाल किया। उनके तय किए मानकों ने चुनाव आयोग को नई प्रतिष्‍ठा दी। आइए उनके बारे में अधिक जानते हैं...


चेन्नई (पीटीआई)। भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का रविवार रात चेन्नई में निधन हो गया। उनके कार्यकाल को चुनाव सुधारों के लिए याद किया जाता है जिनसे भारतीय चुनाव व्यवस्था को पारदर्शी बनाने में मदद मिली। उन्होंने निडर होकर स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए निष्क्रिय अधिकारियों व राजनीतिक दलों दोनों को कसौटी पर कसा। मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में 1990 से 1996 के अपने छह साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने मिसाल कायम की।टीएन शेषन का जन्म व पूरा नाम
टीएन शेषन का जन्म 15 दिसंबर 1932 को केरल के पलक्काड जिले में हुआ। उनका पूरा नाम तिरुनेल्लै नारायण अय्यर शेषन था। उन्होंने राजनीतिक दलों की नाराजगी मोल लेते हुए सख्ती से आदर्श आचार संहिता लागू की। जब उन्होंने कार्यभार संभाला राजनीतिक दलों का मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक ले जाना बेहद सामान्य बात समझी जाती थी, यह मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान रूका जब उन्होंने आचार संहिता को लेकर सख्ती दिखाई। फर्जी मतदान पर भी उन्होंने बहुत तक अंकुश लगाया।मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में कार्यकाल


इस तरह के सुधारों के बारे में तब तक सुना भी नहीं गया था जब उन्होंने भारत के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में 1990 में पदभार संभाला। चुनाव व्यवस्था की सफाई के अपने अभियान में अनेक राजनेताओं की नाराजगी भी झेली, एआईएडीएमके प्रमुख जे जयललिता ने उन्हें 'दंभी' करार दिया था। रेमन मैग्सेसे सम्मान उन्हें अपने कार्य के लिए सम्मान भी मिले। सरकारी सेवा में अपने अनुकरणीय कार्य के लिए उन्हें 1996 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। प्रशस्ति पत्र में कहा गया था, 'टीएन शेषन को सरकार सेवा के लिए 1996 रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान करते हुए, बोर्ड दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया में अनुशासन, निष्पक्षता और प्रमाणिकता लाने में उनके योगदान को स्वीकार करता है।' अन्य पहलुओं के अलावा शेषन के स्थानीय गुंडों पर लगाम लगाने व मतपेटियों की चोरी रोकने के लिए केंद्रीय पुलिस बल तैनात करने को भी रेखांकित किया गया।मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में किए गए काम  

प्रशस्ति पत्र में लिखा गया कि 'उन्होंने वोटों की खरीदारी रोकने के लिए सख्त कदम उठाए। तड़क भड़क वाले चुनाव प्रचार और शोरगुल वाली रैलियों पर रोक लगाई और उम्मीदवारों को उन दीवारों व भवनों की सफाई के लिए विवश किया जिनकी सूरत उन्होंने बिगाड़ी थी।' 'उन्होंने चुनावी खर्च सीमा को सख्ती से लागू किया और उम्मीदवारों को चुनावी खर्च का ब्यौरा जमा करने के लिए विवश किया जिसकी जांच स्वतंत्र सरकारी निरीक्षकों को करनी थी। उन्होंने सरकारी संसाधनों का चुनाव प्रचार के लिए उपयोग करने वाले राजनेताओं की कलई खोल कर रख दी और सरकारी कर्मचारियों के लिए चुनाव की पूर्व संध्या पर तोहफों की बरसता पर रोक लगा दी। उन्होंने चुनाव के समय शराब की बिक्री पर रोक लगाई और अवैध हथियार जब्त करवा दिए। उन्होंने धर्म के आधार पर चुनाव प्रचार पर रोक लगाई।'  टीएन शेषन के जीवन के अंतिम वर्ष  
टीएन शेषन उम्र संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं के चलते लंबे समय से अपने घर तक ही सीमित थे। उनकी पुत्री श्रीविद्या ने पीटीआई को बताया कि यात्रा, लोग जिन्हें वह जानते थे और लोगों की सेवा में बिताए अपने समय के बारे में लिखना चाहते थे लेकिन ऐसा हो नहीं सका। उन्होंने बताया कि उनकी इच्छा के अनुसार, पिछले वर्ष अगस्त में आध्यात्मिकता के प्रसार के लिए एक ट्रस्ट 'नारायणियम', वेदों का आध्यात्मिक व भक्तिमय संकलन, बनाया गया था। 1955 बैच के आईएएस अधिकारी शेषन ने सरकारी सेवा में कई महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया, इनमें रक्षा सचिव व कैबिनेट सचिव जैसे पद शामिल हैं। बहरहाल देश के घर-घर में उनका नाम मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालने के बाद ही जाना गया।टीएन शेषन का काम करने का तरीका उनका काम करने का तरीका बेहद सीधा व सपाट था, उन्होंने सुनिश्चित किया कि पूरी चुनाव प्रक्रिया नामांकन पत्रों की जांच से लेकर मतदान तक नियमों के मुताबिक चले। निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव पर्यवेक्षकों की तैनाती से लेकर चुनाव कार्यक्रम तक करने जिससे कि सुरक्षा बलों की ठीक तरह से तैनाती हो सके और बूथ कैप्चरिंग के लिए बदनाम विशेषकर बिहार व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इस पर रोक लगाने के लिए कर्रवाई, उनकी कई पहल हैं जिनके चलते उन्होंने राजनीतिक दलों की नाराजगी भी झेली। उन्होंने 1991 में पंजाब में चुनाव रद्द करने जैसा साहसिक फैसला लिया ताकि चुनाव प्रक्रिया पर हिंसा का साया न हो।उनकी शिक्षा-दीक्षा टीएन शेषन से चेन्नई के मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से पढ़ाई की थी। वह साहसी थे और जैसा कि कांग्रेस नेता शशि थरूर ने लिखा कि वह एक 'क्रस्टी बॉस' थे, जिन्होंने चुनाव आयोग की स्वायत्तता और अधिकार को मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में दृढ़ता से प्रकट किया, जैसा कि उनके पूर्व किसी ने नहीं किया था। वह हमारे लोकतंत्र के स्तंभ सरीखे थे।'रिटायरमेंट के बाद का जीवन  
1993 में, सरकार ने चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया और दो और आयुक्त नियुक्त किए, तब इसे अप्रत्याशित शेषन पर लगाम लगाने की कोशिश के तौर पर देखा गया था। उन्हें अपनी सीधी और सपाट बात के लिए जाना जाता है, उन्होंने एक बार कहा था रिटायरमेंट के बाद 'अपने घर में बगीचे की देखभाल करेंगे,' और सरकार से किसी दायित्व की अपेक्षा नहीं रखते हैं। हालांकि रिटायरमेंट के बाद के भी उनके कई साल खासे व्यस्त रहे। उन्होंने 1997 में केआर नारायणन के खिलाफ राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा लेकिन असफल रहे। शेषन ने 1999 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ गुजरात की गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ा, यहां भी उन्हें चुनावी मुकाबले में हार मिली। टीएन शेषन का परिवार उनके परिजनों में गोद ली हुई बेटी श्रीविद्या व दामाद महेश शामिल हैं। उनकी पत्नी जयलक्ष्मी का बीते वर्ष निधन हो गया था। शेषन का झुकाव अध्यात्म की ओर था, वे कांची शंकर मठ के भक्त थे।

Posted By: Shweta Mishra