- शहर की 40 फैक्ट्रियां हो जाएंगी प्रभावित

- 10 करोड़ से ऊपर का सालाना टर्नओवर होगा प्रभावित

- 50 हजार से अधिक लोग हो जाएंगे बेरोजगार

Meerut : लोगों के जिंदगी में पॉलीथिन ने इस तरह घर कर गई है कि इसके गैरमौजूदगी की बात सोचते ही दिमाग में अजीब सी सनसनी दौड़ जाती है, लेकिन आज से इसके लिए तैयार रहना होगा। मेरठ समेत पूरी यूपी में पॉलीथिन को पूरी तरह से बैन कर दिया गया है। जहां एक ओर पॉलीथिन निर्माता कंपनी के मालिक बेचैन हैं वहीं व्यापारी भी थोड़े परेशान हो गए हैं कि आखिर आगे किस तरह से काम चलेगा?

50 हजार हो जाएंगे बेरोजगार

अगर बात पॉलीथिन इंडस्ट्री की करें तो मेरठ में पॉलीथिन मैन्युफैक्चरिंग की 40 यूनिट हैं। इनमें से प्रति दिन 10 टन पॉलीथिन बैग बनती है। इस इंडस्ट्री का 60 करोड़ रुपए का सालाना कारोबार है। 50 हजार से अधिक इस कारोबार से जुड़े हुए लोग हैं। इंडस्ट्री की ओर से बिजली विभाग को प्रति माह 50 लाख रुपए बिजली बिल भुगतान होता है। सरकार को प्रति माह 20 लाख रुपए वैट के तौर पर मिलता है।

असमंजस की स्थिति

प्लास्टिक प्रोसेसिंग, मैन्युफैक्चरिंग एंड ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश कुमार गर्ग का कहना है कि शासनादेश में अभी तक तय नहीं हुआ कि आखिर किस तरह की पॉलीथिन को बैन किया जाना है? अभी तक असमंजस की स्थिति बनी हुई है। सेंट्रल गवर्नमेंट की ओर से 40 माइक्रोन से नीचे की पॉलीथिन का निर्माण नहीं किया जा सकता है। जबकि हमारी ओर से 40 माइक्रोन से ऊपर का ही निर्माण किया जा रहा है।

मशीनें हो जाएंगी कबाड़

एसोसिएशन के महामंत्री प्रदीप गुप्ता ने कहा कि हमारी इंडस्ट्री बंद हो जाने के बाद लाखों-करोड़ों रुपए की मशीनें पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगी। अगर इसे बंद की करना है तो इसका दूसरा ऑप्शन क्या होगा उस पर बात होनी काफी जरूरी है। इस तरह से इंडस्ट्री को सील लगाने के आदेश ठीक नहीं है।

दो गुना हो जाएगा खर्चा

इस मामले में दुकानदार भी काफी चिंतित नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि कस्टमर्स पॉलीबैग ही मांगते हैं। वहीं पॉलीबैग और पेपर बैग की कॉस्ट में दोगुना अंतर है। हमें प्लास्टिक बैग 7 रुपए में पड़ता है तो पेपर बैग की कॉस्ट 15 रुपए पड़ती है। वहीं पेपर बैग की लाइफ प्लास्टिक बैग के मुकाबले में बिल्कुल आधी है। व्यापारियों का ये भी कहना है कि पेपर बैग बनाने के लिए पेड़ों की ज्यादा कटाई होगी, जिससे पर्यावरण को नुकसान होगा।

यह प्रतिबंधित नहीं

प्रतिबंध के दायरे में ऐसी प्लास्टिक जो पैकेजिंग का हिस्सा है या उसका अभिन्न भाग है, उस पर प्रतिबंध नहीं होगा। इसमें दूध की थैलियां, मट्ठा, ब्रेड, नमकीन, बन-पाव के पैकेट आदि शामिल नहीं होंगे। डिस्पोजिबिल गिलास, प्लेटें, चम्मचें व अन्य सामान पर भी किसी तरह की कोई रोक नहीं है। पान मसाले के पाउच, दूध की थैलियां, बिस्किट, चिप्स, शैंपू, सूप, जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन एवं निस्तारण) एक्ट , 1998 के तहत पॉलीथीन कैरी बैग्स के इस्तेमाल को प्रतिबंध के दायरे से बाहर रखा गया है। हॉस्पिटल वेस्ट के निस्तारण या सामान लाने-ले जाने के लिए कोई रोक नहीं होगी।

वर्जन

सभी मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में करोड़ों रुपए की मशीनें लगी हुई हैं। ऐसे में पॉलीथिन के बैन होने जाने के बाद ये मशीनें कूड़ा हो जाएंगी। उसके बाद हमारा क्या होगा? इस बारे में सरकार ने नहीं सोचा है।

- प्रदीप गुप्ता, महामंत्री, प्लास्टिक प्रोसेसिंग, मैन्युफैक्चरिंग एंड ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन

गजट में जिस नियमावली की बात की गई है उसका पब्लिक के बीच कोई प्रचार प्रसार नहीं हुआ है। हम चाहते हैं कि निम्न स्तर की पॉलीबैग को बैन किया जाए। लेकिन इस तरह नहीं। पब्लिक को इस बारे मं कोई जानकारी ही नहीं है।

- नवीन गुप्ता, अध्यक्ष, संयुक्त व्यापार संघ

कस्टमर्स पॉलीबैग ही मांगते हैं। वहीं पॉलीबैग और पेपर बैग की कॉस्ट में दोगुना अंतर है। हमें प्लास्टिक बैग 7 रुपए में पड़ता है तो पेपर बैग की कॉस्ट 15 रुपए पड़ती है। वहीं पेपर बैग की लाइफ प्लास्टिक बैग के मुकाबले में बिल्कुल आधी है।

- राजबीर सिंह, ऑनर, सरदार जी एक्सक्लूसिव

प्लास्टिक की पॉलिथीन का बहुत बड़ा रोल एयर पॉल्यूशन, सॉयल पॉलयूशन व वॉटर पॉल्यूशन को बढ़ाने में है। इसके लिए हमें खुद ही जागरुक होने की आवश्यकता है। अपने आस पड़ोस के लोगों को जागरुक करें ताकि पर्यावरण संरक्षण में सहयोग मिल सकें।

- सुनीता, हरियाली क्लब

हमारी सोसाइटी में अक्सर इसके हल के लिए प्रशासन व अन्य शहर की हस्तियों से बात की है। लेकिन वाबजूद इसके भी कोई इसको लेकर चिंतित नहीं दिखता है। मेरे हिसाब से इसके लिए हमें खुद को ही इसके लिए जागरुकता लानी चाहिए।

- विजय पंडित, ग्रीन केयर सोसाइटी

Posted By: Inextlive