हमें बार बार बताया जाता है कि स्‍वस्‍थ रहने के लिए एक व्‍यस्‍क इंसान को कम से कम छह से सात घंटे तक कि नींद लेना जरूरी है। अब एक अध्‍ययन में पता लगा है कि जो लोग पांच घंटे कम सोते हैं तो उनकी याददाश्‍त भी कमजोर हो जाती है। आइये जाने कैसे होता है कम नींद का आपकी याददाश्‍त पर बहुत ज्‍यादा असर।

हिप्पोकैम्पस संयोजन का प्रभाव
एक अध्यनन के जरिए कुछ शोधकर्ताओं ने प्रमाणित किया है कि मनुष्य की सीखने और याद रखने की मानसिक प्रक्रिया जिसे हम हिप्पोकैम्पस कहते हैं, का संयोजन कम नींद से बहुत प्रभावित होता है। है। अध्ययन में कहा गया है कि कम सोने से हिप्पोकैम्पस में तंत्रिका कोशिकाओं के बीच संपर्क नही हो पाता है जिससे याददाश्त कमजोर होती है। इस अध्ययन के बाद विशेषज्ञों ने कहा कि याददाश्त बरकरार रखने में नींद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ये बात पहले ही स्थापित हैं कि झपकी लेना महत्वपूर्ण यादों को वापस लाने में सहायक होता है। अब ये भी स्पष्ट है कि कम नींद हिप्पोकैंपस में संयोजन कार्य पर असर डालती है और याददाश्त को कमजोर करती है। ये भी कहा जाता रहा है कि तंत्रिका कोशिकाओं को सिग्नल पहुंचाने वाली सिनैपसिस स्ट्रक्चर में संयोजन बदलने से भी याददाश्त पर असर पड़ता है।

चूहों के दिमाग पर किया परीक्षण
शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने इस बारे में चूहों के दिमाग पर परीक्षण किया था। इस परीक्षण में डेनड्राइट्स के स्ट्रक्चर पर पड़ने वाले कम नींद के प्रभाव को देखा गया, जिसके लिए उन्होंने सर्वप्रथम सिल्वर-स्टेनिंग पद्धति के आधार पर पांच घंटे की कम नींद को लेकर डेन्ड्राइट्स और चूहों के हिप्पोकैम्पस से संबंधित डेन्ड्राइट्स स्पाइन की संख्या का निरीक्षण किया। इसमें पता चला कि कम नींद के चलते तंत्रिका कोशिकाओं से संबंधित डेन्ड्राइट्स की लंबाई और मेरुदंड के घनत्व में कमी आई है। परीक्षण के अगले चरण में चूहों को बिना बाधा तीन घंटे सोने दिया गया ताकि कम सोने से होने वाले नुकसान की भरपाई हो सके। इसके बाद पांच घंटे की कम नींद वाले परीक्षण के प्रभाव को दोबारा जांचा गया। इसमें चूहों के डेन्ड्रिक स्ट्रक्चर की निगरानी करने पर उसमें कोई अंतर नहीं पाया गया।  इसके बाद इस बात की जांच की गई कि कम नींद से आण्विक स्तर पर क्या असर पड़ता है। इसमें पता चला कि आण्विक तंत्र पर कम नींद का नकारात्मक असर पड़ता है और यह कॉफिलिन को भी प्रभावित करता है।

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Posted By: Molly Seth