- आदि दर्शन पर अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में सीएम ने व्यक्त की पीड़ा

- कहा, झारखंड में आदिवासियों को नहीं मिला विकास का लाभ

- बिगड़ रहा आदिवासी और प्रकृति के बीच संतुलन

- आदिवासियों की संस्कृति, भाषा को अक्षुण्ण रखेगी सरकार

रांची : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि विकास का वर्तमान पैमाना (आधुनिक मॉडल) जनजातीय समुदाय को लूट रहा है। कंक्रीट के जंगलों ने आदिवासियों के अस्तित्व के साथ-साथ उनकी संस्कृति, परंपरा, भाषा आदि को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया है। मुख्यमंत्री शुक्रवार को रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान द्वारा आद्रे हाउस में आदि दर्शन (जनजातीय दर्शन) पर आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार के शुभारंभ समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस क्रम में उन्होंने आदिवासियों की संस्कृति, भाषा, परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखने की सरकार की प्रतिबद्धता भी बताई।

40 करोड़ की आबादी

मुख्यमंत्री ने कहा कि पूरे विश्व की आबादी का पांच प्रतिशत यानी पूरे विश्व में 800 करोड़ की आबादी में लगभग 40 करोड़ की आबादी आदिवासियों की है। लेकिन यह एक बड़ी विडंबना है कि पूरे विश्व की गरीबी में 15 फीसद की हिस्सेदारी आदिवासियों की है। झारखंड में आदिवासियों की आबादी 35 फीसद से घटकर 26 फीसद हो गई। कहा, आखिर ऐसा क्यों है, यह शोध का ही विषय है। उन्होंने विकास के वर्तमान मॉडल पर सवाल उठाते हुए ब्राजील, मलेशिया, आस्ट्रेलिया जैसे देशों का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां किस तरह विकास के नाम पर आदिवासियों को हटाया जा रहा है। झारखंड में ही खनिज के उत्खनन के लिए आदिवासियों को जमीन से बेदखल किया गया। कहा, राज्य में बड़े-बड़े कारखाने तो लगे लेकिन आदिवासियों को उस तरह लाभ नहीं मिल सका, जिसकी कल्पना की गई थी। कहा कि जब सड़कें, बड़े-बड़े भवन बनते हैं और आदिवासी इन सड़कों पर चलने लायक नहीं रह पाते तो विकास का कोई मतलब नहीं रह जाता। साथ ही विकास के आधुनिक मॉडल ने आदिवासी और प्रकृति के रिश्ते के संतुलन को बिगाड़ दिया है।

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जल, जंगल, जमीन से अलग किया गया :

मुख्यमंत्री ने कहा कि मलेशिया में आदिवासी समुदाय के लोग मछलियां पकड़कर अपना जीवनयापन करते थे। उन्हें विकास के नाम पर शोषित और पीडि़त किया गया। ब्राजील के आदिवासी समुदाय, जिन्हें गौरानी समूह के रूप में जाना जाता था, भी अपनी परंपरा और संस्कृति से उखड़ गया। सरकार ने इन्हें विस्थापित कर दिया क्योंकि सरकार पेट्रोल-डीजल के लिए गन्ने की खेती करना चाहती थी।

चिंतन की जरूरत

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिग से चिंतित है। लेकिन आदिवासी समुदाय प्रकृति को अपने सीने से लगाकर रहता है। प्रकृति को इस समूह से कोई नुकसान नहीं हुआ है। हड़प्पा संस्कृति और मोहनजोदड़ो की खुदाई में पाए गए बर्तन में आज भी आदिवासी समुदाय के लोग खाना खाते हैं। लेकिन आदिवासी समुदायों के गिरते जीवन स्तर पर भी हमें चिंतन करने की आवश्यकता है।

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कई विशेषज्ञ व शोधकर्ता शामिल

19 जनवरी तक चलने वाले इस सेमिनार में सात देशों से आदिवासी दर्शनशास्त्र के विशेषज्ञ और शोधकर्ता हिस्सा ले रहे हैं। सेमिनार को डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ सत्यनारायण मुंडा, कल्याण सचिव हिमानी पांडेय, राम दयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान के निदेशक रणेंद्र कुमार आदि ने संबोधित किया।

Posted By: Inextlive