-महामंडप व गर्भगृह में मौजूद पत्थरों के ज्वाइंट खुलने लगे

-जल्द ट्रीटमेंट का सुझाव, एएसआई व स्टेट टूरिज्म डिपार्टमेंट की टीम ने किया था दौरा

DEHRADUN: विश्व की सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिरों में शामिल भगवान शिव के मंदिर तुंगनाथ पर खतरा मंडरा रहा है। मंदिर के गर्भगृह में पत्थरों के ज्वाइंट टूट रहे हैं। बताया गया है कि पानी के रिसाव के कारण यह दिक्कत सामने आ रही है। जानकारों की मानें तो इस पर जल्द ध्यान न दिया गया तो आने वाले समय में मंदिरों को और खतरा हो सकता है।

चूहों के बिल से बढ़ रहा खतरा

हाल में उत्तराखंड टूरिज्म विभाग के अधिकारियों के अलावा एएसआई (भारतीय पुरातत्व विभागग) की ज्वाइंट टीम ने जून के शुरुआत में तुंगनाथ मंदिर का दौरा किया। जहां टीम को मंदिर की सुरक्षा से लेकर कई खामियां नजर आई। टीम में एएसआई यानि आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के ज्वाइंट डायरेक्टर जनरल के अलावा दून रिजन के एक्सप‌र्ट्स भी शामिल थे। तुंगनाथ के विजिट के बाद अब एएसआई ने अपनी रिपोर्ट स्पष्ट किया है कि पानी के रिसाव से मंदिर को खतरा बढ़ रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मंदिर के सामने जो निर्माण कार्य हुए हैं, उनमें पुजारी निवास, छोटा मंदिर ऑफिस, धर्मशाला व रेन शेल्टर शामिल हैं। उसको शिफ्ट किया जाना चाहिए। स्थानीय लोगों का कहना है कि इलाके में पाए जाने वाले चूहे दुमकटू के कारण मंदिर को नुकसान पहुंच रहा है। कई मात्रा में मौजूद दुमकटू नामक चूहों ने गर्भगृह के अलावा मंदिर के आस-पास में अपने बिल बनाए हुए हैं। इन बिलों से उनका इधर उधर जाने का सिलसिला जारी है। जिस कारण इन बिलों यानि बनाए गए छेद से पानी का रिसाव जारी है। खासकर बरसात में सबसे ज्यादा यह दिक्कत सामने आ रही है। नुकसान यह है कि मंदिर के नार्थ ईस्ट प्वाइंट के नीचे महामंडप व गर्भगृह में पत्थरों के ज्वाइंट तक खुल रहे हैं। एएसआई ने जल्द ट्रीटमेंट किए जाने का सुझाव दिया है। बताया जा रहा है कि टूरिज्म डिपार्टमेंट के कहने पर एएसआई की टीम ने मंदिर का विजिट किया था।

फ्म्80 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तुंगनाथ मंदिर

पंचकेदार में से एक भगवान तुंगनाथ का मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। तुंगनाथ पर्वत पर स्थित तुंगनाथ का मंदिर फ्म्80 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मान्यताएं हैं कि सातवीं शताब्दी में बना मंदिर एक हजार वर्ष पुराना है। जहां भगवान शिव की पूजा होती है और हर साल यहां देश-विदेश के भक्त पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं। मान्यताएं यह भी हैं कि पांडवों ने शिव का खुश करने के लिए मंदिर का निर्माण किया था। तुंगनाथ की चोटी में तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है, मंदिर चोपता से तीन किमी दूर स्थित है। जनवरी-फरवरी में बर्फ की चाढ़र से मंदिर ढका रहता है। लेकिन जुलाई से अगस्त तक मंदिर के चारों ओर मखमली घास का मैदान ही मैदान नजर आता है। कई पर्यटक यहां की तुलना स्वीट्जरलैंड तक से करते हैं।

Posted By: Inextlive