- एमबीबीएस और एमएस की पढ़ाई के दौरान ही बन गए थे लीडर

- 1980 में मेडिकल स्टूडेंट और पुलिस के बीच हुए झगड़े के बाद अरेस्ट भी हुए, लखनऊ तक लड़ी थी लड़ाई

- कालेज परिसर में संघ की शाखा लगवाने की शुरुआत की थी डॉ। हर्षवर्धन ने

एमबीबीएस और एमएस की पढ़ाई के दौरान ही बन गए थे लीडर

- क्980 में मेडिकल स्टूडेंट और पुलिस के बीच हुए झगड़े के बाद अरेस्ट भी हुए, लखनऊ तक लड़ी थी लड़ाई

- कालेज परिसर में संघ की शाखा लगवाने की शुरुआत की थी डॉ। हर्षवर्धन ने

kanpur@inext.co.in

KANPUR (23 Aug.)

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संडे को मेडिकल कॉलेज अपने नेताजी की अगवानी करेगा। केद्रींय स्वास्थ्य मंत्री डॉ। हर्षवर्धन को 'नेताजी' नाम मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही मिला था। एमबीबीएस फ‌र्स्ट ईयर से ही उन्होंने कॉलेज कैंपस में संघ की शाखा लगवानी शुरु कर दी थी। ब्यॉज हॉस्टल-फ् के ख्0 नंबर कमरे में रह कर पढ़ाई पूरी करने के बाद वह दिल्ली चले गए और प्रैक्टिस करने के साथ ही सक्रिय राजनीति में भी उतर गए। लेकिन तब डॉ। हर्षवर्धन के जमाने के कानपुर मेडिकल कॉलेज और अब के जीएसवीएम में काफी फर्क आ चुका है। लेकिन संडे को जब डॉ। हर्षवर्धन देश के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में जीएसवीएम में होंगे तो उनसे कॉलेज के लिए काफी कुछ करने की उम्मीदें भी होगी।

डॉक्टर के साथ नेताजी भी बने

डॉ.हर्षवर्धन ने क्97ब् में जीएसवीएम में एमबीबीएस बैच में एडमिशन लिया था। इसके बाद क्98फ् में एमएस ईएनटी में (रोल नंबर 7म्) पास हुए। 9 साल की पढ़ाई के दौरान वह डॉक्टर के साथ-साथ नेताजी भी बन गए थे। उन्हें कॉलेज में इसी नाम से जाना जाता था। इस दौरान उन्होंने मेडिकल स्टूडेंट्स से रिलेटेड इश्यूज हों या फिर स्टूडेंट्स के हक की लड़ाई, दोनों में ही बतौर लीडर उभरे थे। उनकी बैचमेट रहीं प्रो। आरती लालचंदानी बताती हैं कि उनके दोस्तों की टोली ऐसी थी कि एक बार एक दोस्त के घर शादी में शामिल होने के लिए बस की छत पर बैठ कर फतेहपुर गए थे।

कानपुर मेडिकल कॉलेज से जीएसवीएम तक

डॉ। हर्षवर्धन के जमाने में कानपुर मेडिकल कॉलेज के रुप में इस संस्थान की धाक थी। एडमिशन के लिए मारामारी तो अब भी वैसी ही है, लेकिन तब सीटें कम थीं और उस हिसाब से फैकल्टी भी खूब थी। आज जब फैकल्टी की शॉर्टेज है, इस बीच पढ़ाई भी उतनी ठीक से नहीं होती क्योंकि फैकल्टी के पास टाइम ही नहीं है।

पहले चार थे, अब एक है

क्979 में जब उन्होंने एमएस ईएनटी के लिए एडमिशन लिया था तब तीन से चार फैकल्टी मेंबर्स थे लेकिन आज इस डिपार्टमेंट में सिर्फ एक ही असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। इसके अलावा ईएनटी डिपार्टमेंट के साथ पूरे हॉस्पिटल पर ही पेशेंट्स का लोड क्0 गुना से ज्यादा बढ़ चुका है।

पहले नहीं होते थे पेशेंट्स से झगड़े

आज के दौर में जो जूनियर डॉक्टर्स और पेशेंट्स व तीमारदारों के बीच मारपीट होती रहती है, वैसा पहले नहीं था। इसकी एक वजह पेशेंट्स का कम लोड भी था। मेडिकल कॉलेज में डॉ। हर्षवर्धन के सीनियर रहे डॉ। सुरेश चंद्रा ने बताया कि उस दौर में फैकल्टी मेंबर्स के पास भी पेशेंट्स को देखने के लिए ज्यादा समय होता था। साथ ही फैकल्टी और स्टूडेंट्स दोनों ही कभी लेक्चर्स मिस नहीं करते थे। और पेशेंट्स को भी काफी समय दिया जाता था।

Posted By: Inextlive