- मुस्लिम वोट बैंक सरकने के डर से मुलायम से कराएंगे प्रचार

- सपा ने काटे कई मुस्लिम प्रत्याशियों के टिकट, विरोध शुरु

- डैमेज कंट्रोल में जुटी, मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर फोकस

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LUCKNOW:कांगे्रस से गठबंधन के फेर में सपा को अपने कई मुस्लिम प्रत्याशियों के टिकट काटने पड़े लेकिन इससे उपजे विरोध को देख अब डैमेज कंट्रोल करने की नौबत आन पड़ी है। यही वजह रही कि सपा ने सूबे में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले मुरादाबाद में सारे मुस्लिम प्रत्याशी उतारे है। नतीजतन पार्टी की निगाहें अपने संरक्षक मुलायम सिंह यादव पर टिकी हैं जिनकी मुस्लिम वोट बैंक पर तगड़ी पकड़ मानी जाती है। मुलायम द्वारा पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार किए जाने के ऐलान ने कुछ राहत तो दी लेकिन अभी उनके चुनाव कार्यक्रम को लेकर संशय बरकरार है। फिलहाल यह तय है कि मुलायम 11 फरवरी को इटावा से चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत कर सकते हैं।

बसपा में ठिकाना तलाश रहे मुस्लिम नेता

सूबे की 143 सीटों पर मुस्लिम मतदाता अहम भूमिका अदा करते हैं। टिकट कटने का असर यह रहा कि तमाम मुस्लिम नेता और संगठन अब बसपा में अपना ठिकाना तलाश रहे हैं। सोमवार को पसमांदा समाज ने बसपा को अपना समर्थन दे दिया तो शादाब फातिमा जैसी कद्दावर मुस्लिम नेता के बसपा में जाने की अटकलें लगातार लगायी जा रही हैं। कौमी एकता दल का बसपा में विलय कर मायावती ने पूर्वाचल में अपनी बढ़त बनाने की कवायद की है। वहीं कांग्रेस से भी बगावत करने वाले तमाम मुस्लिम विधायकों ने बसपा में ही पनाह ली है। लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए इस बार मुस्लिम नेताओं के साथ मतदाताओं में भी असमंजस की स्थिति है। यही वजह है कि ओवैसी की पार्टी तेजी से यूपी में अपना जनाधार बढ़ाने में कामयाब हो रही है। जल्द ही वह चुनाव में पीस पार्टी की जगह ले ले तो हैरत की बात नहीं होगी। वहीं सपा के तमाम ऐसे मुस्लिम विधायक जिन्हें टिकट नहंी मिला, वे भी राष्ट्रीय लोक दल, लोक दल आदि दलों से चुनाव लड़ रहे हैं।

मुलायम ही दे सकते हैं जवाब

मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में रखने के लिए इन सभी दलों को केवल मुलायम ही माकूल जवाब दे सकते हैं। अयोध्या मामले में मुलायम ने जो रुख अपनाया था, उसकी छाप आज तक सूबे के मुसलमानों के दिल में है। मुलायम खुद भी कई बार इसका जिक्र करने से नहंी चूकते हैं। यही वजह है कि उन्होंने पहले गठबंधन का विरोध किया था क्योंकि गहरी राजनीतिक समझ रखने की वजह से उन्हें पता था कि इसका फायदा केवल कांग्रेस को होगा और आगामी लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाता सपा के बजाय कांग्रेस के पाले में जा सकते हैं। मुस्लिम वोट बैंक की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2012 के चुनाव में सपा के 41 मुस्लिम विधायक जीते थे जिससे सरकार बनाने में आसानी हो गयी थी। वहीं बसपा के मुस्लिम विधायकों की संख्या 2007 में 29 से घटकर 2012 में महज 15 रह गयी थी।

सपा ने काटे इनके टिकट

शादाब फातिमा, हाजी जमीउल्लाह, नजीबा जीनत खान, शमीमुल हक, अशफाक खान, सईद अहमद उर्फ बाबू खान, शाकिर अली, वसीम अहमद, कमाल यूसुफ, गुफरान अहमद व अन्य।

पार्टियों ने उतारे मुस्लिम प्रत्याशी

समाजवादी पार्टी- 69

बहुजन समाज पार्टी- 99

कांग्रेस- 19

भाजपा- 0

मुस्लिम विधायकों की संख्या

1993- 28

1996- 38

2002- 46

2007- 56

2012- 64

मुस्लिम आबादी वाले दस प्रमुख जिले (फीसद में)

रामपुर- 50.57

मुरादाबाद- 47.13

बिजनौर- 43.05

सहारनपुर- 41.96

मुजफ्फरनगर- 41.30

अमरोहा- 40.78

मेरठ- 34.43

बलरामपुर- 37.51

बरेली- 34.56

बहराइच- 33.53

Posted By: Inextlive