- दोनों गुटों के चुनाव आयोग जाने से सुलह के सारे रास्ते बंद

- सिंबल न मिलने की सूरत में पार्टी में मच सकती है भगदड़

- चुनाव को भी प्रभावित करेगा चुनाव आयोग का फैसला

LUCKNOW: सूबे में अगली सरकार बनाने की कोशिशों में जुटी समाजवादी पार्टी का टूटना अब तय हो गया है। शुक्रवार को चुनाव आयोग में जाने के साथ सुलह के सारे बंद हो गये। छह महीने पहले मामूली कहासुनी से शुरू हुई सपा की लड़ाई का अंत इस तरह होगा, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। चुनाव आयोग में पार्टी के नाम और सिंबल की लड़ाई के साल 25 साल पुरानी इस पार्टी में बिखराव की शुरुआत भी हो चुकी है। वहीं सिंबल और नाम बदलने की सूरत में पार्टी में भगदड़ मचने की आशंका भी जताई जाने लगी है।

फैसला आने के बाद बढ़ेगी रार

सपा में मचे घमासान से पार्टी को उतना नुकसान नहीं हुआ जितना जल्द ही चुनाव आयोग द्वारा पार्टी के सिंबल और नाम को लेकर सुनाए जाने वाले फैसले के बाद होगा। सपा के तमाम नेता अब इस बाबत चर्चा करने लगे हैं कि आने वाले वक्त में पार्टी में बड़े पैमाने पर भगदड़ मचने के साथ गुटबाजी तेज होगी। इसक बानगी शुक्रवार को देखने को भी मिली जब बुलंदशहर के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री अशोक प्रधान ने समाजवादी पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। इससे साफ है कि फिलहाल हाशिए पर दिख रहे मुलायम चुनाव में बहुमत न मिलने पर दोबारा मजबूत हो सकते हैं। वहीं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए भी आगे की राह आसान नहीं है और यह चुनाव उनका राजनीतिक भविष्य भी तय कर देगा।

प्रत्याशियों की धड़कनें भी बढ़ीं

चुनाव आयोग में इस मामले का फैसला सुरक्षित होने से प्रत्याशियों की धड़कनें भी बढ़ गयी है। मालूम हो कि मुलायम गुट ने 325 तो अखिलेश गुट ने 235 प्रत्याशियों की सूची जारी की थी। दोनों ने ही करीब 170 विधायकों को दोबारा टिकट देने का ऐलान भी किया था। अब प्रत्याशियों के लिए मुसीबत का सबब यह है कि वे बिना पार्टी के नाम और सिंबल के प्रचार कैसे करें लिहाजा ज्यादातर ने अभी चुनाव प्रचार शुरु तक नहीं किया है। वहीं गठबंधन को लेकर प्रत्याशियों में असमंजस की स्थिति बनी है। यदि अखिलेश गुट कांग्रेस के साथ गठबंधन करता है तो कई प्रत्याशियों का टिकट कटना तय है।

कांग्रेस भी कर रही इंतजार

अखिलेश गुट और कांग्रेस के बीच गठबंधन की सुगबुगाहट के बीच यह चर्चा भी बढ़ती जा रही है कि बिना मुलायम सिंह यादव के यह कितना असरदार साबित होगा। दरअसल यूपी में मुस्लिम मतदाता मुलायम सिंह यादव पर ज्यादा भरोसा करते हैं। गठबंधन होने पर मुलायम का चेहरा भी जरूरी होगा ताकि मुस्लिम वोट बैंक को पूरी तरह अपने पाले में किया जा सके। अब देखना यह है कि चुनाव आयोग का फैसला आने के बाद गठबंधन को लेकर कांग्रेस क्या रणनीति अपनाती है। लब्बोलुआब यह है कि आयोग का फैसला आने के बाद ही साफ होगा कि यूपी चुनाव में किस तरह के नये समीकरण बनेंगे।

Posted By: Inextlive