LUCKNOW : समाजवादी पार्टी की करारी शिकस्त की तस्वीर छह माह पहले ही दिखने लगी थी। पार्टी में विरोध के स्वर उभरे तो इसका असर विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाने लगा। तमाम कवायदों के बाद भी बिगड़ी बात नहीं बन सकी और पार्टी में दो-फाड़ हो गये। अखिलेश ने कांग्रेस का हाथ तो थामा तो साइकिल पर बटन दबाने वाले हाथ पीछे हटने लगे। नतीजतन सपा को 2007 से भी बुरी हार का सामना करना पड़ गया। इस करारी हार का 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी की राह भी मुश्किल हो सकती है।


- छह महीने पहले ही बन गयी थी सपा की हार की तस्वीर- मुस्लिम के साथ यादव वोट बैंक भी सपा से छिटक गया- गठबंधन जनता को पसंद नहीं, विवादित बोल बने मुसीबतलगातार गलती करते रहे अखिलेश
सपा की हार के कारणों की बात करें तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने इर्द-गिर्द चल रहे सियासी उलटफेर और पारिवारिक झगड़ों में बुरी तरह लड़खड़ाते दिखे। कैबिनेट में मंत्रियों की आवाजाही अपना असर दिखाती रही। चाचा शिवपाल सिंह यादव की नाराजगी को वे खत्म नहीं कर सके लिहाजा बात बढ़ती चली गयी। उन्होंने ऐसे लोगों को अपने करीब रखा जिनकी सियासी सूझबूझ संदेह के दायरे में थी। ऐसा नहीं कि सपा नेतृत्व को भाजपा की रणनीति का अंदाजा नहीं था। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लंबे समय से भाजपा की रणनीति को लेकर खुद भी लोगों को आगाह करते दिखते थे। इसके बावजूद पारिवारिक झगड़ों में उलझकर उन्होंने न केवल पार्टी के तमाम नेताओं बल्कि जनता से भी दूरी बना ली। जो चुनाव प्रचार बहुत पहले शुरु हो जाना था, वह चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद शुरु हुआ। इसके बाद नई सपा ने कांग्रेस से गठबंधन का फैसला लिया जो चुनाव नतीजों के मुताबिक उसके लिए घातक सिद्ध हुआ। कांग्रेस विरोधी लहर की चपेट में सपा भी आ गयी और उसे पचास सीटों के इर्द-गिर्द सिमटना पड़ गया। अखिलेश और डिंपल ने चुनाव में जमकर प्रचार तो किया लेकिन कांग्रेस से गठबंधन की वजह से उन्हें भी नुकसान उठाना पड़ा। अंतिम समय तक सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद भी हार की बड़ी वजह बन गये।समझाने से नहीं, बहकाने से मिलता है वोट : अखिलेश


चुनाव नतीजे आने के बाद शाम को पांच, कालिदास मार्ग पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पत्रकारों से मुखातिब हुए तो उनके चेहरे पर चिरपरिचित मुस्कान थी। सवालों की बौछार शुरु हुई तो कई जगह विचलित भी हुए। चुनाव हारने का तनाव बढ़ा तो बोले कि लोकतंत्र में समझाने से नहीं, बहकाने पर वोट करती है। तंज कसा कि अब तो यूपी में एक्सप्रेस वे की जगह बुलेट ट्रेन आएगी। नई सरकार गरीबों को हजार की जगह दो हजार रुपये पेंशन देगी। पहली कैबिनेट में किसानों का कर्जा माफ हो जाएगा और यह बात खुद प्रधानमंत्री ने कही है तो पूरे देश में किसानों का कर्जा भी जरूर माफ होगा। हम भी देखना चाहते हैं कि नोटबंदी का पैसा गरीबों को कैसे मिलता है। पत्रकारों ने पारिवारिक रार को हार की वजह मानने की बात पूछी तो कहा कि मैं पुरानी बातों में नहीं जाना चाहता। चाचा शिवपाल द्वारा घमंड टूटने के बयान पर सवाल हुआ तो बोले कि मेरा स्वभाव तो आप सबको पता ही है। वहीं मायावती द्वारा ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी के आरोप पर कहा कि यदि किसी ने इस तरह का आरोप लगाया है तो इसकी जांच हो जानी चाहिए। हार की जिम्मेदारी लेने से बचते हुए कहा कि पहले मैं खुद चुनाव नतीजों की समीक्षा करूंगा। कहा कि जब तक कोई हमसे अच्छा काम नहीं करेगा, हमारा काम बोलता रहेगा। वहीं मंत्रियों का बचाव करते हुए कहा कि उन्हें पहले से ज्यादा वोट मिले हैं लेकिन वे जीत नहीं सके। गठबंधन पर भी कांग्रेस का बचाव करते हुए कहा कि यह आगे भी जारी रहेगा। इससे हमें फायदा हुआ है।National Newsinextlive fromIndia News Desk

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari