- सीओ जियाउल हक की हत्या से शुरू हुआ था सिलसिला

- पश्चिमी उप्र में अपराधियों ने कई पुलिसकर्मियों को बनाया निशाना

- सरकार ने भी माना, चार सालों में हुए ज्यादा हमले

ashok.mishra@inext.co.in

LUCKNOW: यूपी में पिछले चार सालों के दौरान विभिन्न एजेंसियों के सुरक्षाकर्मियों पर हमले की घटनाएं बढ़ी है। केवल यूपी पुलिस की चार सालों के दौरान 1044 बार इसका शिकार बनी है। यह स्वीकारोक्ति खुद राज्य सरकार ने विधान सभा में की थी। मऊ में निरीक्षक गोविंद सिंह और प्रतापगढ़ के कुंडा में डिप्टी एसपी जिया उल हक की हत्या से शुरु हुआ यह सिलसिला खत्म नहीं होने का नाम नहीं ले रहा। पिछले साल सूबे के 148 पुलिसकर्मी शहीद हुए जो देश भर में सबसे ज्यादा था। हालिया घटनाक्रम में बिजनौर में एनआईए अफसर तंजील अहमद की हत्या ने एक बार फिर एजेंसियों को सकते में डाल दिया है।

कई पुलिसकर्मी बने बदमाशों का निशाना

अप्रैल 2012 में मऊ के चिरैयाकोट में बदमाशों से हुई मुठभेड़ के दौरान इंस्पेक्टर गोविंद सिंह की गोली लगने से मौत हो गयी थी। विगत दो मार्च 2013 को प्रतापगढ़ के कुंडा में ग्राम प्रधान के परिजनों ने डिप्टी एसपी जिया उल हक की हत्या कर दी। इसके बाद 14 जून 2013 को इलाहाबाद के बारा थाना प्रभारी आरपी द्विवेदी बदमाशों की गोलियों का निशाना बन गये। वर्ष 2014 भी पुलिस के लिए अच्छा नहीं रहा। 15 जून को फिरोजाबाद में तैनात आरक्षी दिनेश प्रताप व गिर्राज किशोर बदमाशों से मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गये। इसी तरह 11 जुलाई को बागपत के थाना सिघावली अहीर क्षेत्र में आरक्षी सुभाष चन्द्र को बाइक सवार बदमाशों ने मौत के घाट उतार दिया। नवंबर 2014 में सबसे ज्यादा पुलिसकमिर्यो की मौतें हुई। दो नवम्बर को हरदोई में थाना बेहटा गोकुल के थानाध्यक्ष नीरज वालिया भी दबिश के दौरान बदमाश की गोली का निशाना बन गये थे। नवंबर के पहले हफ्ते में फर्रुखाबाद में वांछित अपराधी को गिरफ्तार करने गये कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक राजकुमार सिंह बदमाशों की गोलियों का निशाना बन गये। पांच नवंबर 2014 को फिरोजाबाद में चेकिंग बैरियर तोड़कर भाग रहे बदमाशों की गाड़ी का पीछा करने वाले सिपाही सतीश यादव को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। वहीं मेरठ में मुठभेड़ के दौरान एक सिपाही बदमाशों की गोलियों का निशाना बन गया। 2015 में बनारस में डिप्टी जेलर अनिल त्यागी की हत्या हुई तो फरार अपराधी अंशु दीक्षित को गिरफ्तार करने मध्य प्रदेश गये एसटीएफ के इंस्पेक्टर संदीप मिश्रा को मुठभेड़ में गोली मार दी गयी। पिछले साल बरेली के फरीदपुर में सब इंस्पेक्टर मनोज मिश्रा की गश्त के दौरान पशु तस्करों ने गोली मारकर हत्या कर दी। प्रतापगढ़ में इंस्पेक्टर अनिल सिंह को भी मामूली विवाद में बदमाशों ने गोली मार दी जिससे उनकी मौत हो गयी। हाल ही में प्रतापगढ़ के मानिकपुर में होमगार्ड महादेव प्रसाद मिश्र की भी अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी।

माया सरकार में कम मामले

पूर्ववर्ती बसपा सरकार के कार्यकाल में पुलिस पर 547 बार हमले हुए थे। वहीं सपा सरकार में पुलिस पर हमलों की संख्या बढ़ी है। विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक चार सालों में पुलिस पर 1044 बार हमले हुए। इनमें बीस पुलिसकर्मियों की मौत हो गयी जबकि 572 पुलिसकर्मी घायल हुए। पुलिस पर हुए हमलों में 3071 लोगों को नामजद किया गया। विवेचना में 813 लोगों के नाम प्रकाश में आए जिसके बाद कुल आरोपितों की संख्या बढ़कर 3884 हो चुकी है। पुलिस ने 1969 लोगों को गिरफ्तार किया जबकि 899 आरोपियों ने सरेंडर कर दिया। 16 आरोपियों के यहां कुर्की की गई, 12 आरोपियों पर एनएसए लगाया गया, 162 आरोपियों के खिलाफ गैंगेस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की गई। 990 आरोपियों के खिलाफ गुंडा एक्ट और निरोधात्मक कार्रवाई की जा चुकी है जबकि 627 आरोपित फरार चल रहे हैं।

-2012-13 में 202 हमले

- 2013-14 में 264 हमले

- 2014-15 में 300 हमले

-2015-16 में 278 हमले

Posted By: Inextlive