- दस दिन में यूपी पुलिस ने खोया दूसरा सिपाही

- कहीं भी कभी भी कर देते हैं बदमाश पुलिस पर हमला

- सड़क से लेकर जेल तक पर अब पुलिस कर्मी नहीं रह गए हैं सुरक्षित

Meerut: क्रिमिनल की नजरों में पुलिस सॉफ्ट टारगेट बन गई है। सड़क से लेकर अब जेल तक पुलिस पर क्रिमिनल पुलिस कर्मियों पर हमला बोलकर मौत के घाट उतार रहे हैं। मेरठ में दस दिन के अन्दर दो सिपाही शहीद हो चुके हैं। एक परिवार का चिराग बुझ चुका है, जबकि दूसरे परिवार के बच्चों के सिर से पिता का साया उठ चुका है। ऐसे में क्रिमिनल के हौसले और बुलंद होते जा रहे हैं। सवाल है आखिर पुलिस इन क्रिमिनल से बचाव के लिए क्या करें।

पुलिस ने खोया सिपाही

दो दिसंबर ख्0क्ब् को लिसाड़ी गेट एरिया में गश्त के दौरान मुठभेड़ हो गई थी। जिसमें कंकरखेड़ा के रहने वाले शातिर बदमाश नूर इलाही ने बुलंदशहर के रहने वाले सिपाही एकांत यादव को गोली मारकर घायल कर दिया था। जिसके बाद नूर इलाही भी मुठभेड़ में मारा गया था। अब दूसरा मामला दस दिन के अन्दर फिर हो गया। बुलंदशहर के ही रहने वाले ओमप्रकाश को इस बार बाल संप्रेक्षण गृह के किशोर बंदियों ने जानलेवा हमला बोलकर मौत के घाट उतार दिया। सड़क से लेकर जेल तक तैनात पुलिस कर्मियों को अपनी जान बचानी भारी पड़ गई है। कुछ पुलिस कर्मी खूंखार बाल बंदियों के हाथों घायल हो गए, जिसमें आरआई भगवान सिंह यादव भी शामिल हैं।

पुलिस पर बढ़ गए हैं हमले

पुलिस ऑफिशियल भी मानते हैं कि पिछले कुछ समय से पब्लिक की ओर से पुलिसकर्मियों पर हमले बढ़ गए हैं। तीरगरान दंगा हो या फिर एल ब्लाक पर सन ख्0क्ख् में हुआ बवाल हो। हर परिस्थिति में पुलिस कर्मी को नौकरी करना काफी मुश्किल हो गया है। एकांत यादव के बाद अब ओमप्रकाश का शहीद होना विभाग के लिए बड़ी क्षति है। कई बार पुलिस कर्मियों को खुद को सुरक्षित रखने का मौका भी नहीं मिलता है।

पूरे देश में यूपी तीसरे नंबर

अगर एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों की बात की जाए तो यूपी पुलिसकर्मियों की 8भ् मौतों के साथ देश में तीसरे नंबर पर है। महाराष्ट्र क्07 मौतों के साथ पहले स्थान पर और पंजाब 89 मौतों के साथ दूसरे पायदान पर हैं। तमिलनाडू भ्ब् और राजस्थान में भ्7 मौतें भी कम नहीं है। अगर पूरे देश के राज्य और केंद्र शासित राज्य के आंकड़ों को मिलाकर पुलिस कर्मियों की मौतों की गणना की जाए तो ये संख्या 7ब्0 बैठती हैं। अगर इसी रेट में ऑन ड्यूटी पुलिसकर्मी मरते रहे तो आने वाले सालों में इस आंकड़े में और भी ज्यादा बढ़ोत्तरी हो सकती है।

पुलिस के पास नहीं हैं हथियार

दो सिपाहियों के शहीद हो जाने के बाद पुलिस की व्यवस्था पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। आज भी मेरठ पुलिस राइफल के दम पर नौकरी कर रही है, जबकि बदमाश पिस्टल और रिवाल्वर लेकर वारदात को अंजाम दे रहे हैं। मेरठ क्राइम कैपिटल होने के बावजूद आधुनिक हथियारों से लैस नहीं हो पा रही है। गुरुवार को पुलिस के पास हथियार होते तो वह फायरिंग कर देती तो शायद यह नौबत न आती।

पुलिस कर्मियों का शहीद होना गंभीर विषय है। दस दिन में दूसरी घटना हुई है, यह चिंता का विषय है। आधुनिक हथियारों से पुलिस को लैस कराने के लिए शासन स्तर पर अधिकारियों से वार्ता की जाएगी।

रमित शर्मा

डीआईजी

मेरठ रेंज

कब-कब हुए पुलिस वालों पर हमले

क्। ब् मई वर्ष ख्0क्ब् को मोहिउद्दीनपुर के अहाते चोरी की गाडि़यां काटे जाने की सूचना परतापुर पुलिस पहुंची तो बदमाशों से पुलिस कर्मियों पर हमला बोल दिया। दोनों ओर से काफी देर तक संघर्ष चलता रहा। दरोगा काफी घायल हुआ था।

ख्। क्7 दिसंबर वर्ष ख्0क्फ् को दौराला के सकौती चौकी के दरोगा समेत कुछ पुलिस कर्मियों ने रुहासा गांव में कबाड़ी की दुकान में छापा मारा। बदमाशों पुलिस की टीम पर हमला बोल दिया। पुलिस कर्मियों की रायफल भी तोड़ डाली।

फ्। क्ख् दिसंबर वर्ष ख्0क्फ् एक मर्डर केस की तफ्तीश करने पानीपत हरियाणा एसओजी टीम पर हर्रा गांव के लोगों ने हमला कर दिया। उनकी गाडि़यों को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया।

ब्। क्क् अक्टूबर वर्ष ख्0क्ब् को मुजफ्फरनगर में बंदी वाहन पर फायरिंग में सिपाही नरेंद्र शहीद हुए थे।

भ्। क्7 जून ख्0क्ब् को फिरोजाबाद रामगढ़ में लूटेरों ने दो सिपाहियों को गोलियों से भून दिया था।

म्। क्म् जुलाई ख्0क्ब् को बागपत के डोला पुलिस चौकी पर तैनात सिपाही को गश्त के दौरान गोली लगी थी।

Posted By: Inextlive