-यूपीपीएससी की हिस्ट्री में पहले कभी नहीं हुआ ऐसा

-परीक्षा, परिणाम व चयन को लेकर लगातार चला विवाद

-आपराधिक इतिहास ने अंत तक नहीं छोड़ा पीछा

ALLAHABAD: उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीपीएससी) में दो अप्रैल 2013 को चेयरमैन बनकर आए अनिल कुमार यादव की कुर्सी ढाई साल में ही चली गई। उनकी नियुक्ति एक अप्रैल 2019 तक के लिए की गई थी। आयोग की हिस्ट्री में पहली बार ऐसा हुआ, जब संवैधानिक पद पर बैठे चेयरमैन को बेआबरू होकर पद छोड़ना होगा। हाईकोर्ट के फैसले का बड़ा आधार चेयरमैन का आपराधिक इतिहास रहा है।

त्रिस्तरीय आरक्षण से हुई थी शुरुआत

अध्यक्ष की कुर्सी संभालते ही अनिल यादव ने एक ऐसा निर्णय लिया, जिसने संसद से लेकर सड़क तक भूचाल ला दिया। उनके कार्यकाल में आया पीसीएस 2011 मेंस परिणाम बवाल की जड़ बना। उन्होंने त्रिस्तरीय आरक्षण लागू करने का विवादित फैसला लिया था। इस फैसले ने प्रतियोगियों को उद्वेलित कर दिया। देखते ही देखते आयोग के खिलाफ बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया। इसके बाद भी अध्यक्ष अपने फैसले पर कायम रहे। हाई कोर्ट के आदेश के बाद उन्होंने फैसला वापस लिया और रिजल्ट फिर से जारी किया।

लीक हुआ पीसीएस का पेपर

इसके बाद के फैसले भी प्रतियोगियों को एकजुट होकर आंदोलन के लिए उकसाते रहे। वह पीसीएस 2013 प्री परिणाम में गलत उत्तरों के आधार पर मूल्यांकन का मामला रहा हो या फिर स्केलिंग फार्मूला। परीक्षा, परिणाम, आंसर की, संशोधित आंसर की, परीक्षा केन्द्र निर्धारण, परीक्षा नियंत्रक, सचिव की नियुक्ति ऐसे मसले रहे, जिन्हें लेकर लगातार बखेड़ा होता रहा। इस दौरान कोई भी ऐसी परीक्षा नहीं रही। जिसमें यादव जाति के अभ्यर्थियों को व्यापक स्तर पर चयनित किए जाने का आरोप न लगा हो। पीसीएस प्री 2015 के पेपर लीक प्रकरण ने आयोग की छीछालेदर करा दी।

तड़ीपार रह चुके आयोग के चेयरमैन

आयोग चेयरमैन के विवादित कार्यकाल में एक ऐसा मुद्दा भी शामिल रहा जिससे अंत तक उनका पीछा नहीं छूटा। उनपर दर्ज आपराधिक मुकदमों को प्रतियोगियों ने लड़ाई का मुख्य अस्त्र बनाया। कोर्ट में राज्य सरकार ने माना कि एडीएम सिटी आगरा 31 अक्टूबर को 86 को उन्हें गुंडा एक्ट के तहत जिला बदर करने का आदेश दे चुके हैं। तत्कालीन एसएसपी आगरा राजेश डी मोदक के हवाले से सरकार ने लिखकर दिया कि अनिल यादव पर चोरी, मकान पर अनाधिकृत कब्जे समेत आधा दर्जन से अधिक मुकदमें आगरा जिले के न्यू आगरा, हरीपर्वत, लोहामण्डी, और शाहगंज थाना क्षेत्रों में दर्ज किए गए थे। राज्य सरकार की रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया था कि सभी मामलों में उन्हें मुक्त किया जा चुका है।

योग्यता दरकिनार कर हुई थी नियुक्ति

कोर्ट में यह बात भी रखी गई कि आयोग चेयरमैन की नियुक्ति के लिए कई शिक्षाविद् और बड़े अफसर लाइन में थे। वे हर मामले में अनिल यादव से बेहतर थे। इसके बाद भी उन्हें इग्नोर कर दिया गया। वेडनसडे को आए फैसले के बाद प्रतियोगी छात्र अब उन्हें जेल पहुंचाने के लिए जोर लगाने की तैयारी मे हैं।

Posted By: Inextlive