इस एकादशी व्रत में केवल फलों का भोग लगाया जाता है। इस वर्ष यह स्मार्त उत्पन्ना एकादशी 22 नवम्बर को पड़ रही है।


भविष्योत्तर पुराण के अनुसार मार्गशीष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर सकंल्प करें। 'ममरिवलपापक्षयपूर्वक- श्री परमेश्वरप्रीतिकामनया मार्गशीर्षकृष्णैकादभीवृतं करिस्यै' सतयुग में तालजंघ का पुत्र 'मुर' नाम का दैत्य था। वह महाबली और विलक्षण बुद्धिमान था। उसने समय पाकर स्वर्ग से देवताओं को मार भगाया और उनके स्थान में नवीन देवताओं का निर्माण करके बिठा दिए। इसमें स्वर्ग के देवताओं को बड़ा कष्ट हुआ और वे शिव जी के पास गए। शिव जी ने गरूणध्वज भगवान के पास भेजा। तब गरूणध्वज ने उनकी रक्षा का विधान किया तो उसमें भगवान के शरीर से एक स्त्री की उत्पत्ति हुई। उसे देख कर 'मुर' दैत्य मोहित हो गया और स्त्री पर पीछे लग गया। उस वक्त स्त्री ने मुर को मार डाला। स्त्री से प्रसन्न हो भगवान ने दिया वरदान
यह देख कर भगवान ने स्त्री को वर दिया कि तू मेरे शरीर से उत्पन्न हुई है। अत: तेरा नाम उत्पन्ना होगा। तू देवताओं का संकट निवारण करने में समर्थ है। अत: जो उत्पन्ना का व्रत करेगा या फिर करेगी उनको अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होगी। कैटभ देश के महादरिद्र सुदामा ने पत्नी सहित उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया था। इसमें वह सब दुखों से मुक्त होकर पुत्रवान, सुखी और सम्पत्ति शाली बन गया।


पूजन विधि

इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा का विधान है। एकादशी का व्रत रखने वाले दशमी केदिन शाम को भोजन नहीं करते हैं। एकादशी के दिन ब्रह्मबेला में भगवान कृष्ण की पुष्य जल, धूप, अक्षत में पूजा की जाती है। इस व्रत में केवल फलों का भोग लगाया जाता है। इस वर्ष यह स्मार्त उत्पन्ना एकादशी 22 नवम्बर को पड़ रही है।-ज्योतिषाचार्य पंडित दीपक पांडेय2 नवंबर को छठ पूजा तो 12 को देव दीपावली, जानें इस महीने के व्रत-त्यौहार

Posted By: Vandana Sharma