आगरा में 25 परसेंट तक अस्थमा के मरीजों में इजाफा
- वर्ल्ड अस्थमा डे आज, पिछले कुछ सालों में 20 से 25 प्रतिशत बढ़ गए हैं मरीज
- बच्चे और यंगस्टर्स हो रहे ज्यादा आ रहे हैं इसकी चपेट में AGRA। आगराइट्स की सांसे फूलने लगी हैं। वो यहां के पॉल्यूशन की मार से बीमार हो रहे हैं। यह हम नहीं कह रहे बल्कि डॉक्टर्स की जुबानी है। पिछले कुछ सालों में दमे के मरीजों की संख्या में ख्0 से ख्भ् परसेंट की वृद्धि हुई है। सिटी में तेजी से अस्थमा के पेशेंट्स बढ़ रहे हैं, यह आगरा के लिए खतरे की बात है। यह कहती है डबल्यूएचओ की रिपोर्टडबल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार आबादी का दो से चार परसेंट आबादी का हिस्सा अस्थमा का शिकार होता है। लेकिन यह फिगर्स एज ग्रुप में अलग हो जाते हैं। जैसे बच्चों और यंग एज में ज्यादा हो जाता है। इसमें अगर ज्यादा उम्र में होने वाली बीमारी सीयूपीडी के आंकड़े भी शामिल कर दिए जाएं तो यह आंकड़ा हैरान कर देने वाला होता है.इस हिसाब से पिछले कुछ सालों में अस्थमा के पेशेंट्स में ख्0 से ख्भ् परसेंट का इजाफा हुआ है।
बच्चों पर हो रहा ज्यादा अटैकसिटी के बच्चों पर अस्थमा का अटैक ज्यादा हो रहा है। पांच से क्क् साल के क्0 से क्भ् प्रतिशत बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ चुके हैं। यह बीमारी कम उम्र में ज्यादा असर करती है क्योंकि इस उम्र में बच्चों में बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा मजबूत नहीं होती है।
यंग एज भी हो रही प्रभावित क्8 से ख्भ् साल के युवा भी इस बीमारी की चपेट में इन दिनों ज्यादा हो रहे हैं। इसके पीछे कई कारण है लेकिन सबसे बड़ा कारण है सिटी में बढ़ता पॉल्यूशन। युवा ज्यादातर अपना समय घर से बाहर गुजारते हैं। बाहर पॉल्यूशन से आप चाहकर भी नहीं बच सकते हैं। यह होते हैं मेन रीजन अस्थमा के वैसे तो कोई ठोस कारण नहीं होते हैं लेकिन डॉक्टर्स आम तौर पर इन तीन कारणों को ही इस बीमारी के लिए जिम्मेदार मानते हैं। इनमें सबसे पहला कारण अनुवांशिक है यानि अगर आपकी फैमिली में किसी को यह बीमारी है तो आने वाली जनरेशन मे इस बीमारी के होने के चांस ज्यादा हो जाते हैं। दूसरे नंबर पर पोल्यूशन है। तीसरे नंबर पर मैटरनल रीजन होते हैं। यानि प्रेग्नेंसी के दौरान अगर मां स्मोकिंग करती रही हो या ऐसी दवाओं को सेवन किया हो, जिसका असर बच्चे के रेसपिरेटरी सिस्टम पर पड़ा हो।ये कारण हैं मुख्य
- धूल-मिट्टी - ठंडी हवा - फूलों से निकलने वाले पराग कण - रजाई की रूई - घरों में पाले जाने वाले जानवरों के बाल - कॉकरोच की ड्रॉपिंग्स सांस में फूलन अस्थमा नहीं होती आमतौर पर लोग इस बीमारी को समझ नहीं पाते हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि सांस की नली में जकड़न का मतलब अस्थमा ही नहीं होता है यह रेसपिरेटरी वायरल इंफ्केशन भी हो सकता है। यह होते हैं लक्षण - सांस फूलना - छाती में जकड़न - खांसी कैसे हो सकता है बचाव अस्थमा से बचने के लिए इलाज ही सबसे बेहतर उपाय है, लेकिन धूल मिट्टी से बच कर रहना चाहिए। यह ट्रीटेबल डिजीज है। ठंडी हवाओं का असर भी रेस्पेरिटरी सिस्टम पर पड़ता है। अस्थमंा पेशेंट्स इन बातों का रखें ध्यान - नम और उमस भरे क्षेत्र को नियमित रूप से सुखाएं। उमस खत्म करने वाले इक्यूपमेंट्स के प्रयोग से ह्यूमिटी को ख्भ् प्रतिशत से भ्0 प्रतिशत के बीच रखें। - यदि संभव हो तो एसी का उपयोग करें। - बाथरूम की नियमित रूप से सफाई करें और इसमें ऐसे प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल करें, जो इंसेक्ट्स को खत्म करने में सक्षम हों।- एक्जॉस्ट फैन का उपयोग करें और नमी को घर में न रहने दें।
- पौधों को बेडरूम से बाहर रखें। - पेंटिंग करते समय पेंट में फंगल खत्म करने वाले केमिकल का उपयोग करें, जिससे फंगल को बढ़ने से रोका जा सकता है। - दिखाई देने वाले फंगल को साफ करें तथा ब्लीच तथा डिटजर्ेंट जैसे पदाथरें से युक्त क्लीनिंग सोल्युशंस का उपयोग करें। - ह्यूमिड या तेज हवा वाले दिन अंदर रहें , क्योंकि इस दिन पॉलेन गे्रन की मात्रा वातावरण में काफी हाई होती है। - पॉलेन ग्रेन को रोकने के लिए खिड़कियों को बंद रखें। - पिलो और कालीनों को एलजर्ेंन्स - रोधी बनाएं। - पिलो व बेड को पंखों से दूर रखें। अपने बेड को सप्ताह में एक बार गरम पानी से धोयें। - कालीन का प्रयोग न करें। करें भी तो उसकी वैक्यूमिंग करते समय चेहरे पर मास्क लगाएं। यदि आपके बच्चे को दमा है तो उस समय वैक्यूम न करें , जब वह कमरे में हो। - भीगे कपड़े से फर्श के धूल को साफ करें और साथ ही लैंपशेड्स तथा विंडोंसिल्स की भी सफाई करें। - हीटर्स और एयर कंडिशनर्स के फिल्टर्स को नियमित रूप से बदलें।- ऐसे मित्रों और परिजनों के यहां लंबे समय तक न रहें , जिनके पास पालतू जानवर हैं। यदि आप वहां जाते हैं तो यह सुनिश्चित कर लें कि दमा या एलर्जी की दवाएं आपके साथ हैं।
- अपने पालतू जानवर को सप्ताह में एक बार अवश्य नहलाएं। बहुत सारी हैं भ्रांतियां अगर किसी को अस्थमा की प्रॉब्लम होती है तो उसे केले में, खीर में या मूली में रखकर दवा खिलाई जाती है। डॉक्टर्स इन इलाजों को सिरे से नकार देते हैं। उनका कहना है कि यह सभी भ्रांतियां हैं। इलाज के लिए इनहेर्ल्स सबसे सुरक्षित होते हैं। इतना फायदा गोलियां और इंजेक्शन भी नहीं करते, जितना फायदा इनहेलर्स से होता है। दवाओं और इंजेक्शन में इस बीमारी से लड़ने वाले कैमिकल्स की मात्रा मिलीग्राम में होती है जबकि इनहेलर्स में इनकी मात्रा माइक्रोग्राम में होती है। गोलियां और इंजेक्शन पहले पेट, खून और फिर फेंफड़ों में पहुंचते हैं, कई बार ऐसी जगह भी पहुंच जाते हैं, जहां जरूरत नहीं होती है। इससे नेगेटिव इफेक्टस भी देखने पड़ते हैं। जबकि इनहेलर्स सीधा फेफड़ों पर असर करते हैं। एसएन में दी गई जानकारी वर्ल्ड अस्थमा डे से एक दिन पहले मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ। पीके माहेश्वरी और डॉ। प्रशांत प्रकाश ने इस बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किस तरह अस्थमा से बचा जा सकता है और सिटी में अस्थमा पेशेंट्स की संख्या में इजाफा हो रहा है। एसएन मेडिकल कालेज में आने वाले पेशेंट्स में ही पिछले कुछ सालों में डेढ़ से दो गुना की वृद्धि हो गई है। इसके पीछे दो कारण हैं पहला यह कि लोग अवेयर हो गए हैं और दूसरा कारण यह है कि इस बीमारी ने अपना विस्तार कर लिया है- डॉ। प्रशांत प्रकाश, मेडिसिन विभाग, एसएन मेडिकल कालेज अस्थमा बीमारी लाइलाज नहीं है, लेकिन जितनी तेजी से यह वार कर रही है, वो खतरनाक है। सिटी में बढ़ते पोल्यूशन से अस्थमा के पेशेंट्स की संख्या में इजाफा हो रहा है। जोकि चिंता का विषय है। - डॉ। पीके माहेश्वरी, एचओडी। मेडिसिन विभाग, एसएन मेडिकल कालेज