आगरा। साइबर क्रिमिनल्स पर शिकंजा कसने के लिए पुलिस बड़े स्तर पर प्लानिंग कर रही है। इसमें अवेयरनेस से लेकर कं प्लेन को आसान बनाने तक को शामिल किया गया है। इस 'एआईटीई' प्रोजेक्ट पर काम जारी है। जल्द इसको अमल में लाया जा सकता है। इस पूरे प्रोजेक्ट पर एडीजी राजीव कृष्ण के निर्देशन में काम चल रहा है।

अवेयरनेस

अधिकतर मामलों में देखा गया है कि व्यक्ति साइबर क्राइम का शिकार अनजान में बनता है। उसे पता ही नहीं होता कि मोबाइल या कंप्यूटर पर किया गया एक गलत क्लिक उसे किस तरह नुकसान पहुंचा सकता है। अनजान नंबर से वॉइस कॉल आने पर भी लोग कॉन्फिडेंशियल जानकारी शेयर कर देते हैं। आर्थिक या सामाजिक नुकसान होने पर उन्हें अपने साथ हुए क्राइम की जानकारी होती है। लेकिन, अब पुलिस का फोकस इस क्राइम को रोकने का भी होगा। इसके लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ अन्य स्तर पर भी लोगों को जागरूक किया जाएगा। अवेयरनेस कैंप के साथ वर्कशॉप भी ऑर्गनाइज्ड की जाएगी। इसमें सामाजिक संस्थाओं और शैक्षणिक संस्थानों की भी मदद ली जा सकती है।

इंफ्रास्ट्रक्चर

साइबर अपराध से निपटने में पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती इंफ्रास्ट्रक्चर की होती है। जिस तरह से क्रिमिनल्स लगातार साइबर क्राइम को अंजाम देने के लिए नए-नए तरीके अपना रहे हैं, उसको ट्रेस करने में कहीं न कहीं पुलिस पिछड़ जाती है या समय से उन्हें ट्रेस नहीं कर पाती। इसके पीछे प्रॉपर इक्विपमेंट्स न होना भी कारण है। इस प्रोजेक्ट के तहत साइबर कंट्रोल रूम को भी अपडेट किया जाएगा। जरूरत की डिवाइसेस और इक्विपमेंट्स खरीदे जाएंगे, जिससे साइबर सेल को एडवांस बनाया जा सके।

ट्रेनिंग

साइबर क्राइम के मामलों में इंवेस्टिगेशन के लिए पुलिस डिपार्टमेंट को सबसे अधिक जूझना पड़ता है, तो वह है ट्रेंड स्टाफ। जिस तरह से आए दिन पुलिस के पास साइबर क्राइम के मामले पहुंच रहे हैं। इनमें लगातार इजाफा ही हो रहा है। इसको लेकर पुलिस के पास ट्रेंड स्टाफ की क्राइसिस है। इस क्राइसिस को दूर करने के लिए अब पुलिसकर्मियाें को ट्रेनिंग दी जाएगी। इसमें नए रिक्रूट्स को शामिल किया जाएगा। साथ ही ऐसे पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग में शामिल किया जाएगा, जो इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से होंगे या फिर टेक्नोलॉजी की ओर जिनका रूझाना होगा। जिससे साइबर क्राइम के मामलों की जांच में तेजी लाई जा सके।

ईज ऑफ कंप्लेन

अब तक साइबर क्राइम की कंप्लेन करने के लिए स्थानीय थाने में एप्लीकेशन दी जाती है। यहां से उसे साइबर सेल के लिए फॉरवर्ड कर दिया जाता है। साइबर सेल में पीडि़त की कंप्लेन पर कार्रवाई शुरू होती है। वहीं, हाल ही में पुलिस लाइन में रेंज थाने पर भी कंप्लेन दर्ज कराई जा सकती है। लेकिन, इसको और आसान बनाया जाएगा। साइबर क्राइम का पीडि़त अपनी कंप्लेन आसानी से पुलिस से कर सके, इस पर भी काम किया जा रहा है।

इस चुनौती को भी किया जाएगा दूर

मौजूदा समय में पुलिस डिपार्टमेंट के सामने सबसे बड़ी चुनौती साइबर क्राइम से जुड़े मामलों की तफ्तीश को लेकर है। आईटी एक्ट के सेक्शन 78 के अनुसार साइबर क्राइम से जुड़े मामलों की जांच इंस्पेक्टर रैंक या उससे ऊपर की रैंक का अधिकारी कर सकता है। लेकिन, पुलिस डिपार्टमेंट में इंस्पेक्टर्स की संख्या सीमित है। ऐसे में इस समस्या का हल भी निकाला जाएगा। इसके लिए साइबर क्राइम की इंवेस्टीगेशन कर रहे इंस्पेक्टर के साथ टीम को लगाया जाएगा। इस टीम में ट्रेंड पुलिसकर्मी होंगे, जो इंवेस्टीगेशन कर रहे इंस्पेक्टर को असिस्ट करेंगे। इससे इंस्पेक्टर्स की कमी को दूर किया जा सकेगा, वहीं साइबर क्राइम से जुड़े मामलों में भी तेजी आएगी।

साइबर क्राइम क्या है?

इस क्राइम में कंप्यूटर एक वस्तु होता है क्राइम (हैकिंग, फिशिंग, स्पैमिंग) का। इसे एक औजार के हिसाब से इस्तेमाल में लाया जाता है। कोई भी ऑफेंस या क्राइम करने के लिए, जैसे कि इंफॉर्मेशन की चोरी, आईडेंटिटी की चोरी, ऑनलाइन फ्रॉड, चाइल्ड प्रोनोग्राफी, हेट क्राइम्स आदि। इस साइबर क्राइम को जो अंजाम देते हैं, उन्हें साइबर क्रिमिनल्स कहा जाता है। ये साइबर क्रिमिनल्स कंप्यूटर और इंटरनेट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल पर्सनल इंफॉर्मेशन, बिजनेस ट्रेड सीक्रेट्स आदि को एक्सेस करने के लिए करते हैं।

साइबर क्राइम के प्रकार

1. हैकिंग

इस तरह के क्राइम में हैकर्स साइबर व‌र्ल्ड के प्रतिबंधित एरिया में घुसकर दूसरों की पर्सनल और सेंसिटिव इंफॉर्मेशन को एक्सेस करता है। ये प्रतिबंधित एरिया किसी का पर्सनल कंप्यूटर, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस या ऑनलाइन अकाउंट हो सकता है।

2. थेफ्ट

जब कोई पर्सन किसी कॉपीराइट्स लॉ का उल्लंघन करता है। म्यूजिक, मूवीज, गेम्स या सॉफ्टवेयर डाउनलोड कर लेता है। ऐसी बहुत सी वेबसाइट्स हैं, जो सॉफ्टवेयर पाइरेसी और ओनर के बिना परमीशन ही सभी प्रीमियम कंटेंट को फ्री में डिस्ट्रीब्यूट करती हैं। ऐसा कानूनी अपराध माना जाता है।

3. साइबर स्टालकिंग

इसमें विक्टिम को ऑनलाइन हैरस किया जाता है। ये अक्सर सोशल मीडिया में देखने को मिलता है। स्टालकर्स ऑनलाइन मैसेज और ईमेल्स के द्वारा विक्टिम्स को परेशान करते हैं। इसमें स्टालकर्स अक्सर छोटे बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं, जिन्हें इंटरनेट की ज्यादा समझ नहीं होती है। ये उनका फिजिकल एड्रेस, फोटोज, पर्सनल इंफॉर्मेशन प्राप्त कर बाद में उन्हें ब्लैकमेल करते हैं।

4. आईडेंटिफाई थेफ्ट

इसमें साइबर क्रिमिनल्स ऐसे लोगों को टारगेट करते हैं, जो इंटरनेट का इस्तेमाल कर कैश ट्रांजेक्शन और बैंकिंग सर्विस में करते हैं। साइबर क्रिमिनल्स बैंक अकाउंट नंबर, क्रेडिट कार्ड डिटेल्स, इंटरनेट बैंकिंग डिटेल्स, पर्सनल इंफॉर्मेशन, डेबिट कार्ड और दूसरे सेंसिटिव इंफॉर्मेशन किसी तरह एक्सेस कर लेते हैं। फिर उन्हीं डिटेल्स का इस्तेमाल कर विक्टिम की आईडेंटिटी लेकर ऑनलाइन चीजें पर्चेज करते हैं। ऐसे में विक्टिम्स का बड़ा फाइनेंशियन लॉसेस होता है।

5. मैलिसियस सॉफ्टवेयर

ऐसे बहुत से इंटरनेट बेस्ड सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम्स हैं, जो कि किसी भी नेटवर्क को खराब कर सकते हैं। ऐसे सॉफ्टवेयर को यदि किसी नेटवर्क में एक बार इंस्टॉल कर दिया जाए, तब ये हैकर्स बड़ी ही आसानी से उस नेटवर्क में स्थित सभी इंफॉर्मेशन को एक्सेस कर सकते हैं। साथ में उसमें डाटा को भी डैमेज कर सकते हैं।

6. चाइल्ड प्रोनोग्राफी और एब्यूज

इस तरह के क्राइम में क्रिमिनल्स ज्यादातर चैट रूम्स का इस्तेमाल करते हैं और खुद की आईडेंटिटी को छुपाकर माइनर्स के साथ बातचीत करते हैं। छोटे बच्चों को या मानर्स को इतनी ज्यादा समझ नहीं होती है, जिसके चलते वो इन बच्चों को एब्यूज करते हैं। उन्हें डराते धमकाते हैं और साथ में प्रोनोग्राफी के लिए बाध्य भी करते हैं।

वर्जन

महिला अपराध और नकली दवा के बाद अब साइबर क्रिमिनल्स पर शिकंजा कसा जाएगा। इस पर काम चल रहा है। जल्द ही इसको लेकर मीटिंग भी की जाएगी।

राजीव कृष्ण, एडीजी जोन

Posted By: Inextlive