आगरा. ब्यूरो देश में 'वन नेशन वन बोर्डÓ की मांग तेजी से उठने लगी है. इस मांग के तहत देश में 6 साल से 14 साल तक के बच्चों के लिए एक ही कॉमन सिलेबस रखने की बात दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के कार्यालय में पेरेंट्स ने पैनल डिस्कशन के दौरान की. इसके साथ ही स्कूल की मनमानी को लेकर जिम्मेदार अधिकारियों के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की. इसके साथ ही फीस में राहत के निर्णय का स्वागत किया है.


क्यों जरुरी है कॉमन सिलेबस
अप्टा अध्यक्ष डॉ। सुनील उपाध्याय ने कहा कि देश मेें वन नेशन वन बोर्ड की मांग को लेकर न्यायालय में मामला विचाराधीन है। केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा देशभर में एक समान शिक्षा व्यवस्था को लेकर कोई भी कदम नहीं उठाया गया है। फ्री एजुकेशन और अनिवार्य शिक्षा की बात आर्टिकल 21 ए में की गई है लेकिन इसको लेकर आज तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। अगर आगामी चुनाव में जनप्रतिनिधि पेरेंट्स की मांग को अपने एजेंडा में शामिल करते हैं, तो जनता के लिए राहत भरी बात होगी।

हर एजुकेशन का खुद का बोर्ड

आगरा प्रोग्रेसिव टीचर एसोसिएशन के संस्थापक, डॉ। सुनील उपाध्याय ने बताया कि वन नेशन वन बोर्ड देश में सामाजिक और आर्थिक समानता व न्याय के लिए जरूरी है। इसमें सभी निजी और सरकारी स्कूल शामिल किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में अभी हर एजुकेशन बोर्ड का खुद का सिलेबस है। अलग-अलग बोर्ड का सिलेबस होने से पेरेंट्स को परेशानी का सामना करना पड़ता है, वहीं स्टूडेंट्स को भी कही न कही दिक्कत उठानी पड़ती है। वन नेशन वन बोर्ड में सिर्फ राज्य सरकारें भाषाओं का अंतर रखें लेकिन बाकी किसी में भी कोई भेदभाव न रखें। दरअसल, इस वन नेशन वन बोर्ड का मूल कारण नेशनल एजुकेशन काउंसिल या नेशनल एजुकेशन कमीशन बनाने की संभावनाएं तलाशना है।

हर साल बदल देते हैं स्कूल बुक्स
ट्रैफिक सपोर्ट के अध्यक्ष सुनील खेत्रपाल पेरेंट्स हर साल अपने स्कूल की बुक्स चेंज कर देते हैं, कुछ एक स्कूल में बुक्स वही होती है लेकिन उसके एक या दो चेप्टर्स को चेंज कर दिया जाता है, इससे मजबूरन पेरेंट्स को स्कूल द्वारा तय की गई दुकान से ही बुक सेट खरीदना पड़ता है। इस में हर साल पेरेंटस की कमाई का मोटा हिस्सा खर्च होता है.अगर सरकार पर्र्यावरण संरक्षण की बात करती है तो इस मामले पर भी अमल करना होगा। इससे पेरेंट्स पर भार भी अधिक नहीं होगा। साथ ही एक बुक सेट को परिवार के दूसरे भाई, बहन भी पढ़ सकेंगे।


देश में वन नेशन वन बोर्ड होना चािहए, इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन बोर्ड यानी आईसीएसई व केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानी सीबीएसई को भी मिलाकर एक ही एजुकेशन बोर्ड की स्थापना की संभावनाओं पर विचार किया जाना चाहिए। देश में आज समान्य एजुकेशन की मांग है।
सुनील उपाध्याय, अप्टा संस्थापक


स्कूल्स की ममानी को लेकर शासन, प्रशासन को ठोस कदम उठाने होंगे, हर साल नया सिलेबस, मनमानी स्कूली फीस में बढ़ोत्तरी से पेरेंट्स आर्थिक रूप से त्रस्त है। सभी को एकजुट होकर इसका विरोध करना होगा।
सुनील खेत्रपाल, अध्यक्ष ट्रैफिक सपोर्ट


कान्वेट स्कूल मनमानी कर रहे हैं, वहीं सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल मे हर साल वही सिलेबस रहता है, बच्चों को भी बेहतर संस्कार दिए जाते हैं। मेरे बच्चे वहां पढ़ते हैं कभी कोई समस्या पैदा नहीं हुई, इससे टीचर्स के प्रति सम्मान की भावना जागृत होती है। तभी देश का विकास संभव है।
बुक्स का सिलेबस बदलने से पहले स्कूल प्रशासन को पेरेंट्स के साथ मीटिंग करनी चाहिए, जिससे वे मानसिक रूप सेे तैयार हो जाए। नियम है कि स्कूल नियामक समिति के समक्ष बैठक के बाद फीस बढ़ाने का प्रस्ताव है, लेकिन कोई पालन नहीं करता है।
निधि बेदी, पेरेंट्स


स्कूल द्वारा बताया जाता है कि आपको तय दुकान से ही ड्रेस और शूज लेने होंगे। ऐसे में वे उस दुकान को ढूंढते हैं। जो स्कूल ने बताई थी, वहां जाने के बाद मनमानी की जाती है, फिर ड्रेस हो या शूज क्वालिटी नहीं दी जाती, लेकिन रुपए ब्रांड के नाम पर लिए जाते हैं।
पूजा बत्रा, पेरेंट्स


शहर के जनप्रतिनिधियों को इस पर विचार करना होगा, आखिर मामला देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों से जुड़ा है। अगर स्कूल फीस कम करती है, सिलेबस हर साल सेम रखती है तो ये पेरेंट्स के लिए बहुत ही राहत देने वाली बात होगी। पेरेंट्स अगर आज विरोध कर रहे हैं तो वे अपने बच्चों के अधिकार की बात कर रहे है। जो जायज है।
रंजीत शर्मा, पेरेंट्स


देश में अभी हर एजुकेशन बोर्ड का खुद का सिलेबस है। अलग-अलग बोर्ड का सिलेबस होने से पेरेंट्स को परेशानी का सामना करना पड़ता है, वहीं स्टूडेंट्स को भी कही न कही दिक्कत उठानी पड़ती है। मैं वन नेशन वन बोर्ड का समर्थन करता हूं। इससे समान्य शिक्षा के साथ बच्चों में भी समान भावना पैदा होगी।
डॉ। अखिलेश सिंह, प्रिंसिपल, जीसी गोयल इंटरनेशन स्कूल, जलेसर रोड

देश में सामान्य सिलेबस से लाभ
-संविधान के अनुच्छेद 21 ए में आरटीई (शिक्षा का अधिकार) अधिनियम कहता है कि 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दी जानी चाहिए।

-देश में एजुकेशन में अव्यवस्थाओं पर पूरे देश में एक समान सिलेबस की है आवश्यकता।

-एक समान्य सिलेबस से सभी छात्र-छात्राओं को शिक्षा के बराबर होने में मदद मिल सकेगी।

-पूरे देश में एक समान सिलेबस के साथ, कोई भी छात्र एजुकेशन में पीछे नहीं रहेगा।

-एक सिलेबस से स्कूल स्तर से परे कंप्टीशन एग्जाम या एडमिशन एग्जाम के लिए बेहतर तैयारी करने में मदद मिलेगी।

-राजनीति, कुछ मामलों में, शिक्षा प्रणाली को प्रभावित करती है। जो देश का भविष्य कहे जाने वाले छात्रों के लिए गलत है।

Posted By: Inextlive