आगरा। बाल मजदूरी को लेकर पूरी दुनिया सजग है। बाल अधिकारों को लेकर इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर भारत भी एक मजबूत पक्षकार है। यही नहीं यूएन में भारत अपनी सक्रिय भागीदारी भी निभा रहा है। भारतीय संविधान ने बालपन को संरक्षित करने की व्यवस्था भी दी है। देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने बाल मजदूरी को लेकर सरकार को तमाम डायरेक्शंस भी दे रखे हैं।

जमीनी हकीकत कुछ और

लेकिन, बाल मजदूरी को लेकर जमीनी हकीकत कुछ और ही है। सचाई से रूबरू कराने के लिए आई नेक्स्ट की ओर से पड़ताल की गई। चाय, जूता पॉलिश, हलवाई की दुकान, छोटे-मोटे होटल-रेस्टोरेंट और ढाबे, टू व्हीलर रिपेयरिंग सेंटर्स आदि स्थानों पर बच्चों को काम में लगे हुए पाया गया। कुछ बच्चों को पढ़ाई के साथ ही साथ अपने पिता के साथ काम में हाथ बंटाते हुए भी पाया गया। हालांकि सरकारी अमला यह मानने को तैयार ही नहीं कि आगरा में बच्चे बाल मजदूरी में लगे हुए हैं। बाल मजदूरी को रोकने के लिए जिम्मेदार श्रम विभाग के उप आयुक्त से इस बारे में जानने की कोशिश की गई तो संपर्क ही नहीं हो सका। उधर, जब बच्चों से काम कराने के बारे में पूछा गया तो एक ही जवाब मिला कि अगर बच्चों से काम नहीं लें तो फिर परिवार का काम कैसे चलेगा? बच्चों से काम करना ठीक नहीं है लेकिन, जो परिवार आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर हैं, आखिर सरकार उनके घर का खर्चा उठाने थोड़े ही आएगी। इस पड़ताल के दौरान क्लिक की गई तस्वीरें बचपन के दर्द को बयां करने के लिए काफी हैं। आइए आपको बताते हैं कि बाल मजदूरी को लेकर क्या कुछ मिला, जब आई नेक्स्ट हकीकत जानने के लिए सड़कों पर निकला। देखिए इस खास पड़ताल के जरिए

बाल मजदूर की दास्तां लाइव

पुराने शहर की घनी बस्ती का रहने वाला लगभग 12 साल का हिमांशु हर रोज की तरह अपने कांधे पर एक मैला-कुचला सा थैला लटका कर चला था। मकसद था चन्द रुपये कमाना। एक हाथ में जूते के एक जोड़ी पैतावे पकड़े संजय प्लेस की सड़कों पर घूमता मिला। जून की इस दोपहरी में उसकी निगाह चमड़े के जूते पहने हर व्यक्ति को तलाशती हुई चल रही थी। बीच-बीच में लोगों से पॉलिश कराने की पूछते हुए आगे बढ़ रहा था। संजय प्लेस पुलिस चौकी के पास चने की ठेल से एक व्यक्ति को उसने चने लेते देखा। उसके पास जाकर पॉलिश की पूछने लगा। पहले दस रुपये और फिर पांच रुपये में तैयार हो गया। ग्राहक की हां करते ही उसने उसे पास ही बैठे मोची के स्थान पर बैठाकर जूते उतरवा लिए। जमीन पर बैठकर जूते पॉलिश किए। ग्राहक संतुष्ट नहीं हुआ तो पास ही बैठे मोची ने हिमांशु की जूते चमकाने में हैल्प की। पॉलिस के बाद ग्राहक से अपना मेहनताना लिया। आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने जब पूछा तो हिमांशु ने बताया कि वह पढ़ता भी है। घर की माली हालत ठीक नहीं है। पिता भी जूता पॉलिश का ही काम करते हैं। तब कहीं जाकर घर का चूल्हा चलता है। बाल मजदूरी नहीं करने के बारे में जब रिपोर्टर ने हिमांशु से पूछा तो बताया कि वह अपनी मर्जी से ही पापा का हाथ बंटाने के लिए काम करता है। इस काम से वह हर दिन पचास से लेकर सौ रुपए तक कमा लेता है।

Posted By: Inextlive