क्विज प्रतियोगिता और लुभावने ऑफर का दे रहे लालच शातिरों की सरकारी और गैर सरकारी विभाग की मिली भगत.

आगरा( ब्यूरो)। सरकारी, गैर सरकारी विभागों में कर्मचारियों के डेटा को डिजिटल किया गया है। वहीं निजी कंपनियों में डेटा सेव करने के लिए नए सॉफ्टवेयर अपलोड किए गए हैं, वहीं कागजों और रजिस्टर में दीमक, भीगने और जलने से भी निजात मिली है। डिजिटल डेटा को साइबर शातिर ठगी के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, ऐसे में यह विभागों से मोल भाव कर डेटा उठा रहे हैं।

इस तरह आते हैं आपको फेक कॉल्स
शहर मे अधिकतर लोगों पर स्मार्ट फोन हैं। ऐसे में रोजाना उनके पास चार से पांच कॉल आ रहे हैं, जिसमें होम लोन के साथ क्विज प्रतियोगिता मेें सही जबाव देने वालों को लाखों रुपए के इनाम का झांसा दिया जा रहा है। अधिकतर इस ट्रैप में आसानी से फंस जाते हैं और प्रोसेस को फॉलो करने लगते हैं। इस दौरान उस व्यक्ति का नाम और पर्सनल डिटेल भी सार्वजनिक हो जाती है, फोन कॉल आने का सिलसिला शुरू हो जाता है।

हाई रेट में बिकता है डेटा
शहर में कई ऐसी छोटी-मोटी कंपनियां हैं, जो समय, समय पर छोटे मोटे कार्यक्रम या सेमिनार ऑर्गेनाइज करते हैं, एनजीओ द्वारा भी बढ़-चढ़कर कार्यक्रम कराए जाते हैं। ऐसे में सक्रिय साइबर ठग कार्यक्रम आयोजकों से संपर्क कर कार्यक्रम में एंट्री करने वाले लोगों की डिटेल हासिल कर लेते हैं। वही शहर के संजय प्लेस में ऐसे कई ऑफिस खुले हैं जो सस्ते लोन के नाम पर खुले हैं। ऐसे में वह आने वाले लोगों के नाम और मोबाइल नंबर भी रजिस्टर में नोट कराते हैं, एक हजार की संख्या में डाटा होने पर उसको बेच दिया जाता है। लोअर क्लास, मिडिल क्लास, हाई क्लास के डाटा के अलग अलग रेट हैं।

मोबाइल फोन पर भेजते हैं लिंक
शातिर साइबर ठगी की वारदात को अंजाम देने से पहले बाहरी राज्यों का डाटा खरीदते हैं, हाल ही में पिनाहट से पकड़े गए साइबर ठगों द्वारा इसका खुलासा किया गया था, वहीं सॉफ्टवेयर के जरिए एक मैसेज पब्लिक में सर्कुलेट करते हैं, जिसमें क्विज प्रतियोगिता का हवाला दिया जाता है। लिंक को क्लिक करते ही, प्रतियोगी को नाम और मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी फिल करनी होती है। इस तरह आम आदमी का डाटा सार्वजनिक होकर साइबर ठगों तक पहुंच जाता है।

यूनिवर्सिटी की साइट पर ओपन मिला डाटा
डॉ। भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी द्वारा एडमिशन लेने वाले स्टूडेंटस का गोपनीय डाटा सार्वजनिक किया गया था। जिसमें तीन लाख से अधिक स्टूडेंटस का डाटा सार्वजनिक था, दैनिक जागरण आई नेक्स्ट द्वारा इसका खुलासा किया गया, इसके बाद ही, तत्कालीन कुलपति द्वारा इसको ब्लॉक किया गया।

एक बार मॉल में खरीदारी करते समय मोबाइल नंबर मांगा गया था, इसके ठीक एक महीने बाद होम लोन, क्विज प्रतियोगिता के फोन कॉल्स आने लगे, कई नंबरों को ब्लॉक कर चुका हूं। लेकिन इसके बाद भी फोन आते हैं।
राजेश मगरानी

दिन में पांच से छह फेक कॉल्स आना आम बात है, ऐसे में गाड़ी ड्राइव करते समय प्लाट खरीदने और क्विज में सलेक्शन का हवाला दिया जाता है। अक्सर ऐसे नंबर्स को फॉलो नहीं करती, लेकिन परेशानी होती है।
दीप्ति

पुराने नंबर पर बहुत कॉल आते थे, जिसमें इनाम जीतने और सॉंग सलेक्ट करने को कहा जाता था, ऐसे में खाते से पैसे निकलने के डर बना रहता है। आए दिन ठगी की खबरें आती हैं, ऐसे नंबर्स को अनदेखी करनी चाहिए।
प्रीति

एक बार कॉल आने पर ओटीपी पूछा गया था, जिससे खाते से तीस हजार रुपए निकल गए, तब से इस तरह के नंबर्स को ब्लॉक कर देती हूं। मैसेज के लिंक भी फॉलो नहीं करती हूं।
स्वाति

'स्मार्ट फोन धारकों को अलर्ट रहने की जरुरत है, अननॉन नंबर्स को फॉलो नहीं करना चाहिए, वहीं आने वाले मैसेज को क्लिक करने से पहले उसके बारे में पूरी तरह से जानकारी कर लेनी चाहिए, सावधानी ही बचाव है'
सुल्तान सिंह, साइबर प्रभारी

Posted By: Inextlive