- हजारों परिवारों की चल रही रोजीरोटी

- बेरोजगारी से भली है रोजीरोटी

आगरा। बेड़ई-पकौड़ा जनता का नाश्ता और भोजन है। इसके सड़कों पर लगे ठेले लोगों की कुछ रुपये में भूख मिटा रहे हैं। लेकिन कुछ दिनों पहले पीएम मोदी ने पकौड़े का नाम क्या ले लिया कि ये सड़कों से उठकर संसद में गूंजने लगा। जनता से छीनकर सभी पार्टी के बड़े राजनेताओं की जुबान में पकौड़ा आ चुका है। देश में राजनीति का मुद्दा बन चुका पकौड़ा हकीकत में उन दुकानदारों पर क्या असर डाल रहा है? जिनकी रोजी-रोटी उसी से जुड़ी हुई है। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ने ऐसे ही दुकानदारों से बातचीत करके जानने की कोशिश की।

कई परिवारों की कमाई का जरिया

कई भाइयों और परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए अनिल पाल ने 14 साल पहले बेड़ई का एक छोटा सा ठेल लगाना शुरू किया। दोनों भाइयों को भी काम में लगा लिया। लोगों की जुबान पर बेड़ई का स्वाद लगने लगा। लोगों की भीड़ के साथ संजय प्लेस में ठेले का आकार भी बढ़ता गया। अनिल अब बेड़ई, कचौड़ी के साथ जलेबी भी बनाते हैं। अनिल पाल ने तीन से चार लोगों को दुकान में रोजगार दे रखा है। उनका कहना है कि बेरोजगरी से भला पकौड़ा बेचना है, जिससे अपने परिवार के साथ कई अन्य परिवारों का भी खर्च चल रहा है।

पुश्तैनी व्यापार को बढ़ाया

करीब 70 सालों पहले दादा ने चाट-बताशे की दुकान लगाई। पिता ने भी धंधे को बढ़ाया और अब अनिल कश्यप न्यू आगरा थाना के सामने पकौड़े, ब्रेड-पकौड़े, समोसे बना रहे हैं। इनके साथ कई अन्य परिवार की भी जीविका चल रही है। कश्यप का कहना है कि शिक्षित हैं और बेरोजगारी से अच्छा अपना रोजगार करना लगा। पिता के साथ हाथ बंटाया। ब्रेड पकौड़ा और समोसा बनाने लगे। रोजगार के साथ अपना सम्मान भी बना हुआ है। अपनी पकौड़े दुकान से गर्व है। राजनीति के लिए पकौड़ा कोई मुद्दा नहीं है, बल्कि लोगों की भूख मिटाने वाली चीज है।

ठेले-खुमचे से पल रहे हजारों परिवार

शहर की खास डिश में पकौड़ा तो नहीं, लेकिन उसकी ही तरह बेड़ई है। इसका स्वाद लोगों की जुबान पर है। यही कारण है कि शहर की गलियों, सड़कों, ठेले- खुमचे समेत छोटी से लेकर बड़ी 5 हजार से अधिक दुकानों में बेड़ई बिक रही है। इनके साथ हर दुकान में दो से तीन परिवार की रोजीरोटी का साधन बनी हुई है।

Posted By: Inextlive