भारतीय स्‍वाधीनता संग्राम में सरदार भगत सिंह की भूमिका से सभी लोग वाकिफ हैं लेकिन कम ही लोगों को पता है कि उन्‍होंने अपने जीवन का एक हिस्‍सा आगरा में भी गुजारा था। जहां उस घटना की रूपरेखा तय हुई जिसने आने वाले दिनों में स्‍वतंत्रता आंदोलन पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।

आगरा (ब्‍यूरो)। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगाशहर का नूरी दरवाजा भी आजादी के लिए अपने क्रांतिकारी प्रयासों का गवाह रहा है। आजादी के लिए हंसते हुए फांसी के फंदे को चूमने वाले सरदार भगत सिंह स्टूडेंट्स बनकर अपने साथियों के साथ यहां रहे थे। यहां उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए साथियों के साथ बम तैयार किए थे, जिन्हें असेंबली में फोड़ा गया था। इस घटना के बाद देश के हर कौने में स्वतंत्रता का आगाज शुरू हो गया था।

शहीद भगत सिंह की यादों को संजोए बैठा आगरा

इतिहासकार राज किशोर राजे ने बताया कि भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त और भगवान ने आगरा में एक वर्ष का कार्यकाल बिताया था। वहीं लगातार तीन वर्ष तक वह आगरा के संपर्क में रहे। आगरा में क्रांतिकारियां गतिविधियों बहुत अधिक नहीं थीं, जिससे आगरा शांत था। यहां रहने पर किसी को शक भी नहीं हुआ, वहीं आगरा में रहने के बाद इन क्रांतिकारियों को कैलाश, कीठम और भरतपुर के जंगलों का भी फायदा मिलता था। यहां वह किराये का कमरा लेकर रहे थे, उस जगह का नाम अब भगत सिंह द्वार है। नूरी दरवाजा पर स्थित यह जगह आज भी शहीद भगत सिंह की यादों को संजोए बैठी है। यहां आज भी वो इमारत है, जहां सरदार भगत सिंह ने एक वर्ष का समय बिताया था, लेकिन आज ये इमारत बेहद जर्जर हो चुकी है।

दो मंजिला मकान में बनाई थी रणनीति

राज किशोर राजे बताते हैं कि नूरी दरवाजा स्थित एक दो मंजिला मकान आज भी मौजूद है, जहां भगत सिंह साथियों के साथ यहां रहे थे। पंजाब से पढ़ाई के लिए आगरा आए सरदार भगत सिंह ने इसी दो मंजिला मकान में अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ने की रणनीति साथियों के साथ तैयार की थी। भगत सिंह ने अपना नाम बदलकर बलराज रखा था। एक वर्ष में वह हींग की मंडी और नाई की मंडी भी रहे। सिकंदरा कीठम, कैलाश के साथ ही भरतपुर के जंगलों में वह क्रांतिकारी हथियारों से निशाना लगाने का अभ्यास भी करते थे। नूरी दरवाजे के मकान में ही उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए साथियों के साथ बम तैयार किए थे, जिन्हें असेंबली में फोड़ा गया था। इस घटना के बाद देश के हर कौने में स्वतंत्रता का आगाज शुरू हो गया था, इस आवाज को दबाना ब्रिटिश हुकूमत के लिए नामुमकिन रहा। वर्तमान में जर्जर हो चुके नूरी दरवाजे के मकान के ठीक सामने वह मिष्ठान भंडार स्वामी बैनी प्रसाद की दुकान पर दूध, मिठाई लिया करते थे, जो बाद में उनकी गिरफ्तारी के बाद शिनाख्त के लिए कई बार लाहौर गए थे।

एक नजर

भगत सिंह ने नूरी दरवाजा स्थित मकान नंबर 1784 को लाला छन्नो मल को ढाई रुपए एडवांस देकर 5 रुपए महीने पर किराए पर लिया था।

यहां सभी स्टूडेंट्स बनकर रह रहे थे, जिससे किसी को शक न हो सके।

उन्होंने आगरा कॉलेज में बीए में एडमिशन भी ले लिया था।

घर में बम फैक्ट्री लगाई गई, जिसकी टेस्टिंग नालबंद नाला और नूरी दरवाजा के पीछे जंगल में होती थी।

इसी मकान में बम बनाकर भगत सिंह ने असेंबली में विस्फोट किया था।

जुलाई, 1930 की 28 और 29 तारीख को सांडर्स मर्डर केस में लाहौर में आगरा के दर्जन भर लोगों ने इसकी गवाही भी दी थी।

सांडर्स मर्डर केस में गवाही के दौरान छन्नो ने यह बात स्वीकारी थी कि उन्होंने भगत सिंह को कमरा दिया था।

-नूरी दरवाजा तिराहे पर भगत सिंह की एक प्रतिमा आज भी स्थापित है।

हमारे पिता लाहौर कई बार गवाही देने गए थे, जहां उन्होंने भगत सिंह के पक्ष में ब्यान दिया, लेकिन स्थानीय कलेक्टर द्वारा उन्हें कोर्ट में उनके खिलाफ गवाही देने की हिदायत दी गई थी। सरदार भगत सिंह रात को एक बजे साथियों के साथ दुकान पर दूध पीने के लिए आते थे। जिससे आसपास के लोगों की नजर में न आ सकें।

सीता राम, व्यापारी

इस जर्जर बिल्डंग को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं, लेकिन सरकार की अनदेखी से यह खस्ता हाल बनी है। सरकार को चाहिए कि यहां शहीद भगत सिंह की याद में उनकी यादों को संजोया जाए। मेरे बाबा के पास अक्सर वह आते थे।

महेश चंद, व्यापारी

शहीद भगत सिंह की याद में एक म्यूजियम बनाया जाए। इसको देखने के लिए टिकिट लगाए जाए, जिससे बिल्डिंग का रख रखाव किया जा सके। 40 वर्ष बाद यहां की रोड बनी है। अक्सर व्यापारी गिरकर चुटैल हुआ करते थे।

राजीव अग्रवाल, व्यापारी

अचल भवन से तारघर मैदान तक निकाला था जूलूस

आगरा। 15 अगस्त 1947 की रात जश्न की रात थी। उस दिन पूरा देश जश्न में डूबा हुआ था और हो भी क्यों न देश को लंबे संघर्ष के बाद आजादी मिली थी। बच्चों से लेकर बुजुर्गो ने आजाद होने का जश्न मनाया। आगरा में भी उस दिन जश्न मनाया गया। मशहूर इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि आजादी की खबर सुनते ही सभी स्वतंत्रता सेनानियों में जोश की लहर उठ पड़ी थी। उस वक्त दरेसी स्थित अचल भवन से तारघर मैदान तक जूलूस निकाला गया था। सभी कांग्रेसी उस वक्त सड़कों पर थे और मिठाईयां बांटी जा रही थीं। उस वक्त आगरा उस ऐतिहासिक पल का गवाह बना।

Posted By: Inextlive