आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट के स्टूडेंट्स द्वारा तैयार किया जा रहा ये प्रोजेक्ट डीईआई में पर्यावरण की रक्षा कर स्टूडेंटस दे रहे ईको फ्रेंडली का संदेश

आगरा(ब्यूरो) दयालबाग शिक्षक संस्थान में छात्र-छात्राओं को प्रकृति से जोड़े रखने के लिए बैम्बू क्लास का निर्माण किया गया है। इसमें स्टूडेंटस की ट्रेनिंग क्लास लगती है। इस क्लास का निर्माण इसमें पढऩे वाले आर्किटेक्चर विभाग के स्टूडेंटस ने किया है। ये क्लास किसी सीमेंट या पत्थर से नहीं बल्कि जूट, बांस और लकड़ी द्वारा बनाई गई हैं। वहीं अब दयालबाग आर्किटेक्चर विभाग नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा बैम्बू कॉन्फ्रेंस हॉल और सीएफसी, कॉमन फेसिली सेंटर स्टूडेंटसं द्वारा तैयार किया जा रहा है।

प्रोजेक्ट में ट्रीटेड बैंम्बू किया जा रहा यूज
आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रशांत ने बताया कि जो हम बैंबू कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट बना रहे हैं, वह नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। इसमें हम ट्रीटेड बैंबू का प्रयोग कर रहे हैं। आम लोग बैंबू को साधारण तरीके से प्रयोग करते हैं, जिससे उनकी उम्र करीब 20 वर्ष होती है, लेकिन हमारे द्वारा ट्रीटेड बैंबू यूज करने की वजह से यह करीब 35 वर्ष तक यूं ही टिके रहेंगे। अगर, इसमें रोशनी की बात की जाए तो कॉन्फ्रेंस हॉल के विंडोस को इतना बड़ा बनाया गया है ताकि इनमें से सूर्य की रोशनी आराम से अंदर आ सके, जिसकी वजह से हॉल में किसी भी तरह की इलेक्ट्रिसिटी कनेक्शन नहीं है। चारों ओर हरा-भरा वातावरण है।

स्टूडेंटस ने खुद की बैंबू की कटिंग ट्रीटमेंट
आर्किटेक्चर की सैंकेंड ईयर की छात्रा पूजा ने बताया कि उन्होंने वर्कशॉप में काम करने के दौरान बैंबू की कटिंग ट्रीटमेंट और फाउंडेशन वर्क अपने हाथ से किया है। स्टूडेंट ने बताया कि वहीं जब यह बनकर तैयार हो गया तो अब हम इसमें पढ़ रहे हैं तो हमें अच्छा लगता है। क्योंकि जो चीज हमने बनाई है। उसके अंदर पढऩे में एक अलग ही अनुभव होता है। वहीं, छात्रा मेघा ने बताया कि हमने बैंबू को इसलिए प्रयोग किया है, क्योंकि इसमें ईट, सीमेंट का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं किया गया है।

रहता है ट्रेम्ग्रेचर मेंटेन
आर्किटेक्चर असिस्टेंट प्रोफेसर राजेश कुमार ने बताया, कंक्रीट और ईंट से बनने वाले मकानों की अपेक्षा बैंबू हाउस बहुत सस्ता और चलने वाला हे। बैम्बू हाउस को तैयार करने में लगभग 950 स्क्वॉयर फीट का खर्चा आया है। वहीं, कक्रीट वाले मकान के निर्माण कार्य में दोगुना खर्चा आता है। उन्होंने बताया कि बैंबू हाउस में बाहर की अपेक्षा ट्रेम्ग्रेचर मेंटेन रहता है। वहीं फाउंडेशन के साथ बाउंड्री का स्पेस भी बहुत कम रहता है।

दीवारों के बीच सिर्फ मिट्टी का प्रयोग
गर्मियों में यहां पर ठंडक का एहसास रहेगा। वहीं सर्दियों में बैंबू हाउस के अंदर आपको गर्मी मिलेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि पुराने जमाने में जब लोग मकान बनाया करते थे तो ईंट की अपेक्षा दीवार की मोटाई ज्यादा होती थी जिसमें मिट्टी का प्रयोग किया जाता था। इसी तरह से हमने भी इस बैंबू क्लास में दीवार के बीच में सिर्फ मिट्टी का ही प्रयोग किया है।


हमारे यहां स्टूडेंट्स को बताया जाता है कि जब वह आर्किटेक्ट का कोर्स करके बाहर जाए तो जब भी वह कोई निर्माण करें तो उसमें ध्यान रखें कि वह जो निर्माण कर रहे हैं वह वातावरण के अनुकूल हो, साथ ईको फ्रेंडली भी हो।
प्रशांत कुमार, आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट फैकल्टी


बैंबू कॉंफ्रेंस हॉल के खिड़कियां को इतना बड़ा बनाया गया है ताकि इनमें से सूर्य की रोशनी आराम से अंदर आ सके, जिसकी वजह से हॉल में किसी भी तरह की इलेक्ट्रिसिटी कनेक्शन से परहेज किया गया है।
गुरुदयाल, फैकल्टी, सुपरवाइजर


वर्जन
शुरुआत में बच्चों को बैंबू क्लास रूम बनाने का प्रोजेक्ट दिया गया था। जो उन्होंने खुद अपने हाथों से बनाया। जिसके बाद अब हम एक बड़ा बैंबू कॉंफ्रे स हॉल बना रहे हैं। जिसमें सस्टेनबिलिटी लैब भी तैयार की जाएगी।
राजेश कुमार, फैकल्टी

वर्जन
यहां पर किसी भी विभाग के छात्र-छात्राएं आकर ऐसी चीजों पर रिसर्च कर उनको बना सकते हैं, जो वातावरण के अनुकूल है। हाल ही में कॉफ्रेंस हॉल के साथ कॉमन फैसेलिटी सेंटर भी तैयार किया जा रहा है, जो लगभग पूरा हो चुका है।
रूज मेहंदी, फैकल्टी

Posted By: Inextlive