- डॉक्टर्स ने इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन के इस्तेमाल से ब्लैक फंगस के मामले बढ़ने की जताई आशंका

- मेडिकल ऑक्सीजन जितनी शुद्ध नहीं होती इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन, आगरा में नहीं एलएमओ का प्लांट

- इंडिस्ट्रयल यूज में लिए जाने वाले सिलिंडर का किया गया उपयोग, सफाई का नहीं रखा ध्यान

आगरा। इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन और सिलिंडर को साफ न करना ब्लैक फंगस के मरीजों की बढ़ती संख्या के पीछे वजह हो सकता है। जब ऑक्सीजन क्राइसिस हुई तो एलएमओ (लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन) के साथ इंडिस्ट्रयल ऑक्सीजन की सप्लाई को भी अनुमति दे दी गई। आगरा में एक भी एलएमओ का प्लांट नहीं है। ऑक्सीजन सिलिंडर की क्राइसिस हुई तो इंडस्ट्रियल यूज में उपयोग होने वाले सिलिंडर इस्तेमाल किए गए। एक्सप‌र्ट्स की मानें तो अचानक से बढ़ रहे ब्लैक फंगस मरीजों के पीछे ये बड़ा कारण हो सकता है।

एसएन के मरीजों में नहीं मिला ब्लैक फंगस

जिस ऑक्सीजन ने आपातकाल में लोगों की जान बचाई उसी ऑक्सीजन के कारण लोग ब्लैक फंगस जैसी बीमारी का शिकार हो रहे हैं। एसएन मेडिकल कॉलेज के पीडियाट्रिक विभाग में बने कोविड वार्ड के इंचार्ज डॉ। सीपी पाल बताते हैं कि हॉस्पिटल में यूज होने वाली लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन प्योर होती है। जबकि इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन मिक्स्ड होती है। इस कारण अशुध्दता के कारण ब्लैक फंगस को बढ़ावा मिलना बड़ा कारण हो सकता है। उन्होंने बताया कि एसएन में एलएमओ की सप्लाई होती है, जिन मरीजों का एसएन में इलाज हुआ है उनमें से एक में भी अभी तक ब्लैक फंगस का मामला सामने नहीं आया है।

सिलिंडर नहीं किए गए साफ

ऑक्सीजन क्राइसिस के बीच लोगों को अपनों की सांसे बचाना जरूरी था। सरकार ने भी इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन को मेडिकल में उपयोग को मंजूरी दे दी थी। हॉस्पिटल में बेड न मिलने के कारण लोगों ने घर पर ही मेडिकल ऑक्सीजन का उपयोग किया। ऐसे में सही ट्रेनिंग न होने के चलते लापरवाही भी हुई। लोगों ने रेग्यूलेटर ट्यूब में पानी नहीं बदला। डिस्टिल वॉटर की जगह पर नल के पानी के उपयोग किया। जबकि नल के पानी में बैक्टीरिया सहित कई अशुद्धिया होती हैं। ये भी एक ब्लैक फंगस का बड़ा कारण हो सकता है। इसके साथ ही ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के उपयोग में भी लापरवाही हुई। ऑक्सीजन कंसंट्रेटर जिनका उपयोग के लिए साफ-साफ गाइडलाइन है कि आप उसमें सिर्फ डिस्टिल्ड वॉटर यानी पूरी तरह से स्वच्छ जल का प्रयोग करें, लेकिन लोगों ने उस दौरान भी नल के पानी का इस्तेमाल किया। ये भी ब्लैक फंगस लगने का बड़ा कारण हो सकता है।

एलएमओ और इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन में फर्क

ऑक्सीजन का इस्तेमाल इंडस्ट्रीज में होता है। जिसे कंबस्टेशन, ऑक्सीडेशन, कटिंग और केमिकल रिएक्शन में इस्तेमाल किया जाता है। दोनों में सिर्फ इतना ही अंतर होता है, कि इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन मेडिकल ऑक्सीजन जितनी शुद्ध नहीं होती और उसका इस्तेमाल मेडिकल के कामों में नहीं होता है, लेकिन ऑक्सीजन क्राइसिस के बीच इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन को मेडिकल उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गई थी।

सिलिंडर नहीं हुए वैक्यूम

मेडिकल ऑक्सीजन जिस सिलेंडर में भरी जाती है, वो बिल्कुल साफ होना चाहिए। जबकि ऑक्सीजन संकट के दौरान इंडस्ट्रियल यूज होने वाले वेल्डिंग गैस सिलिंडर इत्यादि का भी लोगों ने उपयोग किया। अग्रवाल गैसेज के विशाल अग्रवाल बताते हैं कि एलएमओ लिक्विड ऑक्सीजन होती है और हमारे यहां पर एयर ऑक्सीजन होती है। लेकिन हम भी शुध्दता का विशेष ध्यान रखते हैं। उन्होंने बताया कि आगरा में एलएमओ का कोई प्लांट नहीं है, यहां पर मुरादाबाद और नोएडा से एलएमओ आती है। ट्रेडर्स उसे हॉस्पिटल्स में सप्लाई करते हैं। कोविड काल में हमें ऑक्सीजन मेडिकल यूज के लिए सिलिंडर भरने की अनुमति मिली है। जब उनसे दैनिक जागरण-आईनेक्स्ट टीम ने पूछा कि आप सिलिंडर को वैक्यूम करते हैं तो उन्होंने कहा कि हमारे यहां पर सिलिंडर आता है और हम उसे रिफिल कर देते हैं।

ऐसे बनती है मेडिकल ऑक्सीजन

- मेडिकल ऑक्सीजन वातावरण में मौजूद हवा में से शुद्ध ऑक्सीजन को अलग करके बनाई जाती है।

- वातावरण में मौजूद हवा में 78 परसेंट नाइट्रोजन, 21परसेंट ऑक्सीजन और बाकी 1 परसेंट आर्गन, हीलियम, नियोन, क्रिप्टोन, जीनोन जैसी गैस होती हैं।

- इन सभी गैसों का बॉयलिंग पॉइंट बेहद कम, लेकिन अलग-अलग होता है।

- अगर हम हवा को जमा करके उसे ठंडा करते जाएं तो -108 डिग्री पर जीनोन गैस लिक्विड में बदल जाएगी। ऐसे में उसे हवा से अलग कर लिया जाता है।

- ठीक इसी तरह -153.2 डिग्री पर क्रिप्टोन, -183 ऑक्सीजन और अन्य गैस बारी-बारी से तरल बनती जाती हैं और उन्हें अलग-अलग करके लिक्विड फॉर्म में जमा कर लिया जाता है।

- वायु से गैसों को अलग करने की इस टेक्निक को क्रायोजेनिक टेक्निक फॉर सेपरेशन ऑफ एयर कहा जाता है।

- इस तरह से तैयार लिक्विड ऑक्सीजन 99.5 परसेंट तक शुद्ध होती है।

- यह पूरी प्रक्रिया बेहद ज्यादा प्रेशर में पूरी की जाती है ताकि गैसों का बॉयलिंग पॉइंट बढ़ जाए। यानी बहुत ज्यादा ठंडा किए बिना ही गैस लिक्विड में बदल जाए।

- इस प्रक्रिया से पहले हवा को ठंडा करके उसमें से नमी और फिल्टर के जरिए धूल, तेल और अन्य अशुद्धियों को अलग कर लिया जाता है।

एलएमओ पूरी तरह से मेडिकल उपयोग के लिए होती है। ये पूरी तरह से शुद्ध होती है। जबकि इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन मिक्स्ड होती है। जिन लोगों ने बाहर से ऑक्सीजन ली है, उनमें ब्लैक फंगस होने के चांस बढ़ सकते हैं। एसएन में उपचार कराने वाले मरीजों में ब्लैक फंगस का एक भी केस नहीं मिला है।

- डॉ। सीपी पाल, प्रोफेसर, एसएनएमसी

एलएमओ लिक्विड ऑक्सीजन होती है। आगरा में ऑक्सीजन संकट से पहले एलएमओ मुरादाबाद और नोएडा से आती थी। ऑक्सीजन संकट के दौरान हमें भी मेडिकल सप्लाई की अनुमति दी गई। हमारे यहां हवा से ऑक्सीजन बनाई जाती है।

-विशाल अग्रवाल, अग्रवाल गैसेज

Posted By: Inextlive