- दो दिन पहले ही अपने मुल्क लौटी सविता के दिलो-दिमाग में अब तक है अफगान का खौफ

- इंडियन एयरफोर्स के जांबाजों का शुक्रिया अदा कर रही हैं सविता

देहरादून,

सब कुछ ठीक चल रहा था। अचानक 13 व 14 अगस्त को मानो कोहराम मच गया। 15 अगस्त की सुबह अफगान राष्ट्रपति सहित वहां के लोग और विदेशी सेना व कंपनियों में कार्यरत कर्मचारी अपने मुल्क की ओर भागने लगे। इसी बीच 16 अगस्त को काबुल के कामर्शियल एयरपोर्ट के करीब अमेरिकी एयरपोर्ट पर अचानक भीड़ जुट गई। अमेरिकी नागरिकों के साथ अन्य लोग भी वहां सुरक्षा के लिए पहुंच गई। इसी बीच 17 अगस्त इंडियन एयरफोर्स के एयरक्राफ्ट ने करीब 150 भारतीय को रेस्क्यू करना शुरू कर दिया। यही वजह है कि हम भारतीय सकुशल गुजरात के गांधीनगर एयरफोर्स के एयरपोर्ट पर सुरक्षित पहुंच सके। हमारी जान बचाने में इंडियन एयरफोर्स के जांबाजों की बड़ी बहादुरी रही है। इसीलिए एयरफोर्स की जांबाजी को सलाम। ये कहना है दून के प्रेमनगर ठाकुर निवासी सविता शाही के। दो दिन पहले ही अपने घर सकुशल लौटी सविता के मन में अब तक अफगानिस्तान के हालातों का खौफ नहीं उतर पा रहा है। वह पूरी तरह से अब तक डरी व सहमी हुई हैं।

जब अचानक बदल गया माहौल

दबी व डरी हुई जुबान में सविता अफगान के हालातों पर कहती हैं कि वह पिछले 8 वर्षो से अमेरिकी की सेना के मेडिकल टीम में कार्य करती आई हैं। लेकिन, अचानक अफगान पर तालिबान के कब्जे से अफगान के हालात रातोंरात बदल गए। सविता शाही अपने आंखों देखाहाल बताती हैं कि अमेरिका सेना की ओर से अफगान में उनके कार्यकाल का दिसंबर 2021 तक पहले ही बढ़ाने का ऐलान किया था। इसी बीच अफगान पर ताबिलान का कब्जा होने के जैसे ही तालिबानियों को इस बात की भनक लगी। तालिबानियों ने अपना फरमान जारी कर दिया। कह दिया कि सभी अफगान को छोड़कर अपने मुल्क लौट जाएं। इसके लिए बाकायदा तालिबान की ओर से 11 सितंबर की तिथि भी घोषित कर दी गई।

17 अगस्त को पहुंचा इंडियन एयरफोर्स का क्राफ्ट

सविता शाही बताती हैं कि अचानक 13 व 14 अगस्त को काबुल में कोहराम मच गया। 15 अगस्त को अफगानवासियों के अलावा अफगान में रहने वाले विदेशी नागरिक, कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारी और सेनाएं अपने मुल्क की ओर रवाना होने लगे। मालूम चला की अफगान के राष्ट्रपति भी मुल्क छोड़ चुके हैं। सविता के मुताबिक काबुल में हालात बेकाबू होते देख 16 अगस्त शाम को अमेरिका के सुरक्षित एयरपोर्ट पर अमेरिका के लोगों के पहुंचने को सिलसिला शुरू हो गया। इसी बीच 17 अगस्त सुबह 6 बजे इंडियन एयरफोर्स का एयरक्राफ्ट भी अमेरिकन एयरपोर्ट पर पहुंचा। जिसके जरिए इंडियन एंबेसी के अधिकारियों के अलावा आईटीबीपी के कमांडो और कर्मचारियों को रेस्क्यू करना शामिल था। लेकिन इस बीच काबुल में स्थित अमेरिका के इस एयरपोर्ट पर फंसे भारतीयों की संख्या में अचानक बढ़ोत्तरी हो गई। इंडियन एयरफोर्स के इस एयरक्राफ्ट की क्षमता केवल करीब 115 लोगों को ले जाने की थी। लेकिन क्राफ्ट में 150 यात्री सवार हो गए। पायलट के मनाही के बावजूद कोई नीचे उतरने को तैयार नहीं हुआ। फिर क्या था इंडियन एयरफोर्स के जांबाज पायलट ने बड़ी सूझबूझ का परिचय देते हुए 17 अगस्त सुबह 7.30 बजे उड़ान भरी और सुबह करीब 10.30 बजे गुजरात के गांधीनगर में लैंड कर दिया।

गांधीनगर में हुआ जोरदार स्वागत

सबिता बताती हैं कि काबुल से लौटने पर गांधीनगर एयरफोर्स के एयरपोर्ट में उनका फूल मालाओं से स्वागत हुआ। क्रॉफ्ट में ज्यादा सवारी होने के कारण देशभर के तमाम इलाकों के लोगों को गांधीनगर एयरपोर्ट से दूसरे हवाई जहाज को रवाना किया गया। जिसके जरिए गाजियाबाद तक सकुशल पहुंचाया गया। यहां पहले से ही आईटीबीपी के जांबांजों की तैनाती थी। जहां से देशभर के तमाम इलाकों के निवासियों को उनके बस अड्डे, टैक्सी स्टेंड और एयरपोर्ट तक पहुंचाया गया। सविता कहती हैं कि काबुल से जिस एयरक्रॉफ्ट से वे गांधीनगर तक पहुंचे, उसकी क्षमता कम होने के कारण लोगों को क्रॉफ्ट के नीचे भी बैठ कर सफर करना पड़ा। उन्होंने इस बहादुरी के लिए इंडियन एयरफोर्स के जांबाजों को सलाम किया है। कहा है कि उनकी मदद से ही उनका रेस्क्यू हो पाया।

अमेरिकी सेना ने नजदीकी देशों तक पहुंचाए

सविता बताती हैं कि अमेरिकन आर्मी ने अपने मुल्क के लोगों को शुरुआत में रेस्क्यू कर दुबई, दोहा व कतर तक पहुंचाने की कोशिश की। जबकि इंडियन एयरफोर्स के जांबाजों से वे सीधे गुजरात के गांधीनगर तक पहुंच पाए। सविता के मुताबिक अफगान में अभी भी कई भारतीय फंसे हुए हैं।

आर्मी परिवार से जुड़ी हैं सविता

सविता शाही ग्रेजुएट हैं और 8 वर्षो से अमेरिका सेना के मेडिकल टीम में कार्यरत हैं। वह आर्मी फैमिली से संबंध रखती हैं। उनके पति आर्मी से रिटायर हैं, जबकि एक बेटा उनका इंडियन आर्मी में कार्यरत है।

Posted By: Inextlive