आगरा: ब्यूरो बच्चों के व्यवहार मेें लगातार आ रहे परिवर्तन से उनमें मानसिक अवसाद की भावना पनप रही है. पेरेंट्स की व्यस्तता के चलते बच्चों का अकेलापन इसकी सबसे खास वजह है. अक्सर देखा गया है कि पेरेंट्स बच्चों के व्यवहार में हो रहे परिवर्तन पर ध्यान नहीं देते हैं जबकि ऐसा होने पर पेरेंट्स को सतर्क हो जाना चाहिए. बच्चों की गलती पर उनके साथ सख्ती से पेश आने की बजाए दोस्ताना बर्ताव करते हुए उनकी मनोस्थिति को जानने का प्रयास किया जा सकता है आवश्यकता पडऩे पर काउंसलर्स की सलाह भी लेनी चाहिए. जिससे बच्चे को सही रास्ता मिल सके. रीयल लाइफ पर भारी वर्चुअल दुनिया

वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ। केसी गुनानी का कहना है कि परिवार में अपने मन की बात शेयर न कर पाने वाले बच्चों का मोबाइल फोन, सोशल मीडिया, टेलीविजन और इंटरनेट की ओर होने लगता है। सही मार्गदर्शन न मिलने की वजह से बच्चे रियल लाइफ से वर्चुअल लाइफ को जीने लगते हैं जो आज की सबसे बड़ी समस्या है। मोबाइल पर मिलने वाला ज्यादातर कंटेंट बच्चों के मतलब का नहीं होता। यदि होता भी है तो बच्चे उसे सर्च न करके ऐसे कंटेंट को देखते हैं जो हिंसा, आक्रामता, क्रूरता, पोनोग्राफी को बढ़ावा देता है। बच्चों के लिए गलत कंटेंट को देखना तब और आसान हो जाता है जब पेरेंट्स इस बात की फिक्र करना छोड़ देते हैं कि बच्चा मोबाइल में क्या सर्च कर रहा है। मोबाइल फोन के अधिक प्रयोग और खासकर अनआईडेंटीफाइड कंटेंट को देखने से बच्चों के मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। आज पेरेंट्स के सामने बच्चों को वर्चुअल दुनिया से रीयल लाइफ में लाना एक चुनौती बनता जा रहा है।
मनोरंजन के साधनों पर रखें नजर
आरबीएस कॉलेज की डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ। पूनम तिवारी ने बताया कि आए दिन ऐसे केस सामने आ रहे हैं। जिसमें बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है, वे हिंसक हो रहे हैं। कभी-कभी पेरेंट्स की बात को भी अनसुना कर, उनका कहना मानने से इनकार कर देते हैं। इसका कारण कहीं न कहीं मनोरंजन के साधन हैं। यहां ऐसी चीजें परोसी जा रही हैं जो बच्चों पर बुरा प्रभाव डाल रही हैं। पेरेंट्स को देखना चाहिए कि बच्चा किस तरह की फिल्म पसंद कर रहा है, किस तरह की कॉमिक्स पढ़ रहा है या कोई दूसरी बुक जिसे वह पढ़ रहा है, उसका बच्चे पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? बच्चों के आसपास का माहौल, स्कूल में उसके दोस्त कौन हैं? इस पर भी पेरेंट्स को नजर रखनी चाहिए।
व्यवहार में बदलाव पर कराएं काउंसलिंग
आगरा कॉलेज आगरा की मनोवैज्ञानिक डॉ। रचना सिंह कहना है कि कम उम्र के बच्चों के लिए मेंटल हेल्थ प्रोग्राम की सबसे सख्त जरूरत है। बड़ी गंभीर बात है कि स्कूलों में फिजिशन डॉक्टरों का कैंप लगवाकर बच्चों के लिए चिकित्सा कैंप आयोजित किया जा रहा है। लेकिन किसी स्कूल में मनोचिकित्सा का कैंप आयोजित नहीं किया जा रहा है। इसमें क्लास एक से लेकर दसवीं तक के बच्चों की काउंसलिंग होनी चाहिए। ज्यादातर स्कूलों में काउंसलर्स नहीं हैं और यदि हैं भी तो वे बच्चों की प्रॉपर काउंसलिंग नहीं कर रहे हैं।
पेरेंट्स इन बातों रखें फोकस
-बच्चे को अधिक समय तक अकेला न छोड़ें, पेरेंट्स खुद उनकी जरूरतों के बारे में पूछते रहें।
-पेरेंट्स अगर, बच्चों में महंगे शौक पनपते दिखे तो उसकी काउंसलिंग करवाएं।
-छोटी-छोटी गलती पर बच्चों को प्यार से समझाएं। उनके साथ सख्ती न करें।
-व्यवहार में परिवर्तन दिखने पर बच्चे के साथ समय बिताकर उनके मन की बात जानने का प्रयास करें।
-बच्चा एक ही गेम को लगातार खेलता दिखे तो उसका ध्यान दूसरी तरफ ले जाने का प्रयास करें।
-गुस्सा, चिड़चिड़ापन, जिद या कोई असमान्य बर्ताव दिखने पर बच्चे को तत्काल मनोचिकित्सक के पास ले जाएं।
-बच्चों की पसंद में अचानक बदलाव होने पर उसकी वजह जानने की कोशिश करें।
-बच्चों के दोस्तों के बारे में जानकारी रखें और उसके पेरेंट्स से पारिवारिक संबंध बनाएं।


बच्चे को दें पहले जितना अटेंशन
डॉ। केसी गुरनानी का कहना है कि ओल्डेस्ट चाइल्ड सिंड्रोम की परेशानी बच्चों में पेरेंट््स के व्यवहार के कारण अक्सर आ जाती है। ये वो बच्चे होते हैं, जिनके छोटे भाई-बहन घर में आ जाने पर उन्हें पहले की तुलना में अटेंशन कम मिलता है। उनका कहना है कि दूसरे बच्चे के जन्म के बाद भी पहले बच्चे को पहले जितना ही अटेंशन देना चाहिए और दोनों की बच्चों के साथ सामान्य व्यवहार करना चाहिए।


बच्चों के व्यवहार में अचानक परिवर्तन का कारण सोशल मीडिया है, जो पेरेंट्स बच्चों को समय नहीं दे पाते, वे बच्चे खुद को अकेला महसूस करते हैं और सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं। इससे बच्चों बदले की भावना, हिंसक व्यवहार, अपनी बात को मलवाने के लिए गुस्सा करना, जिससे पेंरेंट्स का ध्यान उन पर बना रहे। पॅाजीटिव व्यवहार बेहतर विकल्प है।
प्रो। डॉ। केसी गुरनानी, वरिष्ठ मनोचिकित्सक


बच्चे के अचानक व्यवहार में आए बदलाव का कारण आसपास का वतावरण भी है, इससे बच्चों में गुस्सा, चिड़चिड़ापन, जिद या कोई असमान्य बर्ताव दिखने पर बच्चे को तत्काल मनोचिकित्सक के पास ले जाएं। पेरेंट्स को चाहिए कि वे अधिक से अधिक समय बच्चों को दें।
डॉ। पूनम तिवारी, मनोवैज्ञानिक, आरबीएस कॉलेज


बच्चे बहुत ही मासूम होते हैं, न्यूक्लियर फैमिली में पेरेंट्स में झगड़ा रहने के चलते वे डर जाते हैं, इससे उनका व्यवहार स्कूल में भी बदला नजर आता है। पढ़ाई पर भी अधिक फोकस नहीं रहता है।
अंजुल शर्मा, टीचर


क्लास में कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं जो पढ़ाई पर फोकस नहीं करते, अगर उनसे बात की जाती है तो वे घर की बातों को शेयर करते हैं, जिसमें पेरेंट्स का झगड़ा एक बड़ी वजह है।
प्रियंका गौतम, टीचर


स्कूलों में बच्चों के लिए हेल्थ शिविर लगाए जाते हैं, इसी तरह मनोचिकित्सक की ओर से उनकी काउंसलिंग भी करानी चाहिए। प्रिल्यूड पब्लिक स्कूल में बच्चों के बदलते व्यवहार पर काउंसलिंग भी कराई जाती है, अप्सा के सभी स्कूल्स इस पर विचार करेंगे।
डॉ। सुशील गुप्ता, डायरेक्टर, प्रिल्यूड पब्लिक स्कूल एवं अध्यक्ष अप्सा

Posted By: Inextlive