आगरा। बॉलीवुड के ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार का निधन बुधवार सुबह हो गया। ताजनगरी और ताजमहल से भी उनकी हसीं यादें जुड़ी हुई हैं। फि ल्म की शूटिंग के दौरान जब वह आगरा आए तो उन्होंने शू फैक्ट्री देखने की इच्छा जताई थी। वह देखना चाहते थे कि आगरा में जूता किस तरह तैयार किया जाता है। साथ ही वह शहर के मुगलई जायकों के भी काफी शौकीन थे।

जब बिना फैक्ट्री देख लौट आए

टूरिज्म गिल्ड ऑफ आगरा अरुण डंग बताते हैं कि जब आगरा में दिलीप कुमार रुके हुए थे, तो उनका बाहर निकलना बहुत ही कम होता था। क्योंकि जहां भी वह जाते थे उनके चाहने वालों का जमावड़ा पहले ही लग जाता था। लेकिन, तब उन्होंने एकबार कहा था कि आगरा के जूते की फैक्ट्री देखनी है। आगरा में जूता किस तरह बनता है, ये देखना है। तब बड़े एक्सपोर्टर शहर में नहीं आए थे और न ही आज की तरह शू फैक्ट्री थीं। तब ये कुटीर उद्योग था। बाजारों के बीच जूते की फैक्ट्री होती थी। हम मोतीकटरा में उन्हें एक जूते की फैक्ट्री दिखाने ले गए थे। लेकिन, उनके चाहने वालों की वहां इतनी भीड़ हो गई कि वह अंदर घुसने से पहले ही वहां से लौट आए।

'लीडर' का फेमस सॉन्ग ताज में हुआ था शूट

टूरिज्म गिल्ड ऑफ आगरा के प्रेसीडेंट रहे अरुण डंग बताते हैं कि उनकी जो पहली फिल्म थी वह आगरा से रिलेटेड थी 'मुगल-ए-आजम'। वर्ष 1963 में फिल्म लीडर की शूटिंग के लिए दिलीप कुमार और बैजयंती माला आगरा आए थे। वह लॉरेज होटल में रुके थे। इस फिल्म की शूटिंग ताजमहल में हुई थी। इस फिल्म का फेमस सॉन्ग 'इक शहंशाह ने बनवाके हसीं ताजमहल, सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है' ताजमहल में फिल्माया गया था। मुख्य मकबरे, गार्डन व पाथवे पर दोनों पर दृश्य फिल्माए गए थे। वैसे तो उस समय आउटडोर शूटिंग बहुत ही कम होती थी, लेकिन इस फिलम के सॉन्ग की शूटिंग ताजमहल में रखी गई थी।

तब होटल मुगल बना दिलीप कुमार का घर

वर्ष 1982 में विधाता फिल्म की शूटिंग के दौरान जो दिलीप कुमार का घर था, उसे होटल मुगल शेरेटन (वर्तमान में आईटीसी मुगल) में दिखाया गया था। तब फिल्म की शूटिग के लिए वह एक महीने रुके थे। उनकी दोस्ती हमारे बड़े भाई साहब डॉ। महेंद्र डंग से थी। भाई साहब दुबई में रहते थे। भाभी नीता डंग तो सायरा बानो के सबसे नजदीकी सहेलियों में थीं। जब दिलीप कुमार को पता लगा कि उनकी फैमिली आगरा में है, तो उनकाआना-जाना शुरू हो गया। इस दौरान भाई साहब और भाभी भी दुबई से आ गए। एक महीने तक जब तक दिलीप कुमार आगरा में रहे, उनसे तकरीबन रोज मुलाकात हुई।

अंदर तक जाती है फकीरों की जुबान

अरुण डंग ने बताया कि उस समय वो शेर और शायरी की बात करते थे। मीर और गालिब की बहुत बात करते थे। अचानक जिक्र आया कि नजीर अकबराबादी का। वह हिंदी अच्छे से नहीं जानते थे। ऐसे में उन्होंने उर्दू में नजीर की कोई किताब लाने के लिए कहा। मैं फव्वारा से नजीर अकबराबादी के ऊपर लिखी एक किताब लेकर आया। उनकी चाहत पर जब मैंने नजीर पर एक किताब दी तो वह खिल उठे। बोले आगरा आकर नजीर नहीं पढ़ा तो क्या पढ़ा इसके बाद नजीर के ऊपर ही बोलते रहे। दिलीप कुमार का ये चेहरा देख सायरा बानो ने कहा कि इन्हें तो दीवानगी छा गई है, इतना किताब में डूब गए हैं। दिलीप कुमार कहने लगे फकीरों की जुबान जो होती है, वो अंदर तक जाती है, जो अधिक पढ़े लिखे होते हैं उनकी बात ऊपर-ऊपर महलों तक रहती है, लेकिन जो फकीर होता है वो कॉमन पर्सन के बीच रहता है। तब फिल्म शूटिंग के लिए आई यूनिट में डायरेक्टर सुभाष घई, संजीव कुमार, पद्मिनी कोल्हापुरी शामिल थीं।

करीब छह साल पहले हुई आखिरी मुलाकात

इसके बाद उनका आगरा आना नहीं हुआ। लेकिन, वह हमारे बड़े भाई साहब के यहां आयोजित विवाह समारोह व अन्य कार्यक्रमों में आते रहे। मेरी उनसे आखिरी मुलाकात पांच से छह साल पहले हुई। मुंबई में मेरे भतीजे की डेथ हो गई थी। उसमें दुख जताने दिलीप कुमार भी आए थे। तब याददाश्त उनकी कुछ कमजोर हो गई थी। बात तो कर रहे थे, लेकिन वह कुछ चीजों को भूलने लगे थे। लेकिन, चेहरे पर उनके नूर तब भी बरकरार रहा।

जब कुर्सी लेकर स्टेज के पास आ गए

गजल गायक सुधीर नारायन बताते हैं कि फिल्म 'विधाता' की शूटिंग के दौरान ट्रैवल ट्रेड से जुड़े राजकुमार कासलीवाल ने एक कार्यक्रम कराया था। इसमें उन्होंने दो घंटे तक प्रस्तुति दी थी। इस दौरान लोग दिलीप कुमार और सायरा बानो के पास जाकर फोटो कराने और ऑटोग्राफ देने का आग्रह कर रहे थे। इससे वो परेशान हो गए थे। अंत में दिलीप कुमार और सायरा बानो स्वयं कुर्सी उठाकर स्टेज के सामने उनके पास ले आए थे। वहीं, 90 के दशक में राजघाट पर नेहरू युवा केंद्र द्वारा कराए गए कार्यक्रम में भी उन्हें दिलीप कुमार के समक्ष प्रस्तुति देने का मौका मिला था। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में नोबल प्राइज विनर व भारत रत्‍‌न मदर टेरेसा मुख्य अतिथि थीं। तब दिलीप कुमार ही उन्हें गजल ट्रांसलेट कर बता रहे थे। दो घंटे की प्रस्तुति के बाद उन्होंने मुझसे विजिटिंग कार्ड मांगा थ

कंप्लीट आर्टिस्ट थे

गजल गायक सुधीर नारायन कहते हैं कि दिलीप कुमार एक कंप्लीट आर्टिस्ट थे। उन्होंने न सिर्फ मुझे सुना, बल्कि गजल गायिकी के बारे में टिप्स भी दिए। उन्हें भाषा, संगीत और साहित्य की शानदार जानकारी थी।

बॉक्स

साहित्य और भाषा के अच्छे जानकार

अरुण डंग बताते हैं कि दिलीप कुमार सिर्फ एक्टर ही नहीं थे, बल्कि उन्हें साहित्य की भी अच्छी खासी जानकारी थी। जब भी कोई उनसे मुंबई-दिल्ली से मिलने आता था तो वह उन्हें बताते थे कि आगरा का साहित्य में कितना कंट्रीब्यूशन है। मीर गालिब और नजीर अकबराबादी को सुनने के लिए कहते थे। उनका तीन भाषाओं पर अधिकार लाजवाब था। इनमें इंग्लिश, उर्दू और पंजाबी हैं। वह बहुत ही खिली हुई पंजाबी बोलते थे।

बॉक्स

मुगलई फूड के शौकीन

मुगलई खाने के शौकीन थे। होटल मुगल शेरेटन में जो 'मौर्या का बुखारा' (रेस्टोरेंट) है, उसके शेफ को एक बार उन्होंने बुलाया। उनके तैयार किए गए मुगलई फूड की तारीफ की।

जब ताज में सायरा बानो को भीड़ से बचाते रहे दिलीप कुमार

एएसआई के पूर्व अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ। आरके दीक्षित ने बताया कि वर्ष 1982 के आसपास अभिनेता दिलीप कुमार सायरा बानो के साथ मोहब्बत की निशानी ताजमहल का दीदार करने आए थे। लेकिन वो ठीक से ताज को नहीं देख पाए। दिलीप साहब और सायरा बानो को देख पर्यटकों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया। लोगों में ऑटोग्राफ और फोटो खिंचवाने की होड़ होने लगी। भीड़ इतनी ज्यादा बढ़ गई कि दिलीप कुमार का पूरा वक्त सायरा बानो को भीड़ से बचाने में लग गया। एएसआई को पुलिसकíमयों को बुलाना पड़ा था। उस समय ताज में सीआईएसएफ की सुरक्षा नहीं थी।

Posted By: Inextlive