-गाइड से कम नहीं हैं हैं बुक सेलर्स, कॅरियर बनाने में अहम योगदान

-यूनिवर्सिटी रोड की दुकानों पर कइयों को मिल चुका है सफलता का सूत्र

PRAYAGRAJ: प्रतियोगी छात्रों का यूनिवर्सिटी रोड मार्केट से चोली दामन का साथ है। तैयारियों के दिनों में उनका अधिकतर समय किताब और चाय की दुकानों पर बीतता था। खासकर पुरानी दुकानों पर घंटों वह किताबें तलाशते रहते थे। अब अधिकारी बन चुके पूर्व प्रतियोगी छात्रों के मुताबिक मुंह से लेखक का नाम निकलते ही किताब हाजिर हो जाती थी। अगर कोई मजबूर है तो दुकानदार उसे अधिक से अधिक डिस्काउंट पर किताब मुहैया कराते थे। वर्तमान में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों ने इस मार्केट को लेकर दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट से अपने अनुभव शेयर किए

एक नहीं, अनगिनत हैं यादें- रजनीश मिश्रा

सिटी मजिस्ट्रेट रजनीश मिश्रा बताते हैं कि यूनिवर्सिटी रोड से जुड़ी अनगिनत यादे हैं। उन्होंने 2010 में पीसीएस क्वालिफाई किया। कहते हैं कि ऐसे कई मौके आए जब किताबों के लिए भटकना नहीं पड़ा। मेरे कुछ साथी थे जो आर्थिक रूप से कमजोर थे। उन्हें इस मार्केट में आसानी से किताबें मिल जाती थीं। रेयर बुक्स भी यहां अवेलेबल थीं। दुकानदारों को छात्रों की बेहतर समझ थी। वह तत्काल बेहतर किताबों का विकल्प बताते थे। इससे मुझे भी काफी मदद मिली। आज भी उधर से गुजरता हूुं तो पुराने दिन याद आ जाते हैं।

यहां मिलती थी प्रॉपर गाइडेंस: एके मौर्य

जिला विकास अधिकारी एके मौर्य कहते हैं कि पढ़ाई के दिनों में अधिकतर समय हास्टल के कमरों में बीतता था। कर्नलगंज तिराहे पर मेरा कमरा हुआ करता था। पढ़ाई से थक जाते थे तो सीधे यूनिवर्सिटी रोड बुक मार्केट पहुंच जाते थे। दुकानों पर रुककर सब्जेक्ट बेस्ड नई किताबें देखा करते थे। कोई नई मैगजीन या एनसीईआरटी की बुक आती थी तो दुकानदार खुद बता देते थे। ज्ञान भारती की किताबें हमें आधी कीमत पर मिलती थीं। इससे हमें काफी लाभ मिलता था।

याद आती है शीबू की चाय और छोले भटूरे: केके सिंह

परियोजना निदेशक विकास भवन केके सिंह बताते हैं कि अगर किसी ने प्रयागराज में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की है तो उसने यूनिवर्सिटी रोड की निश्चित खाक छानी होगी। मैंने 1996 में पीसीएस क्वॉलिफाई किया। इसके पहले जीएन झा हॉस्टल में रहता था। यहां के बुक सेलर्स सही मायने में गाइड हैं। आप सब्जेक्ट बताइए और वह तत्काल सही किताब के बारे में बता देते हैं। भटकने की जरूरत ही नहीं। इसके बाद बद्री और शीबू की चाय, नटराज के छोले-भटूरे का स्वाद आज भी याद है।

चयन के बाद थैंक्स देने जाते हैं छात्र: मनोज कुमार राव

जिला कार्यक्रम अधिकारी मनोज कुमार राव बताते हैं कि जब भी कोई छात्र एग्जाम क्वालिफाई करता है तो इनमें से अधिकतर यूनिवर्सिटी रोड के दुकानदारों को थैंक्स बोलने जरूर जाते हैं। कई साल की कड़ी मेहनत और तपस्या के दौरान यह दुकानें जरूरी ज्ञान प्रदान करती हैं। मैंने 2006 में पीसीएस क्वॉलिफाई किया और इसके पहले तैयारी के दिनों में किताबें लेने इसी मार्केट में आता था। सबसे अच्छी बात कि दुकानदार जल्दी किसी छात्र को खाली हाथ नहीं लौटाते हैं।

जरूरत से ज्यादा दिया डिसकाउंट: अरविंद व्यास

सीडीपीओ अरविंद व्यास कहते हैं कि ऐसे कई मौके आए जब हमारे पास किताब खरीदने को कम पैसे होते थे लेकिन कभी निराश नही होना पड़ा। दुकानदार उसी किताब को अधिक से अधिक डिस्काउंट पर दे देते थे। कई बार वही किताब पुराने वर्जन में भी मिल जाती थी। जिन स्टूडेंट्स की क्रेडिट बेहतर होती थी उन्हें तो बिना पैसे दिए भी किताबें उपलब्ध करा दी जाती थीं। इसका फायदा निश्चित तौर पर आज भी स्टूडेंट्स को मिलता होगा।

काम आ गई सेलर की सलाह: एसपी तिवारी

जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी एसपी तिवारी बताते हैं कि शुरुआत में प्रतियोगी को पता नहीं होता कि उसे कौन सी बुक से तैयारी करनी है। मेरा भी यही हाल था। दुकानदार के पास पहुंचा तो उससे हिस्ट्री की किताब मांगी। उसने बिना पूछे लेखक केसी श्रीवास्तव की किताब पकड़ा दी। मैंने आश्चर्य व्यक्त किया तो उसने कहा कि यह ले जाइए। इससे बेहतर कोई नहीं है। यह सच भी था। इस किताब से पढ़ने के बाद एग्जाम में बहुत मदद मिली और 2001 में मेरा सेलेक्शन हो गया।

याद आती है गणेश की चाय

जिला कृषि अधिकारी अश्वनी कुमार सिंह का चयन 2009 में हुआ। पुराने दिनों की याद करके कहते हैं कि छात्र हमेशा अभाव में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हैं। उनके पास अधिक पैसे नहीं होते हैं। ऐसे में वह विकल्प की तलाश में रहते हैं और यह विकल्प उन्हें यूनिवर्सिटी रोड जैसी मार्केट में उपलब्ध होते हैं। यहां कई ऐसी पुरानी दुकानें हैं जहां सस्ती से सस्ती किताबें मिल जाती हैं। दुकानदारों से पारिवारिक नाता हो जाता था। वह गार्जियन की तरह हमारी मदद करते थे। जब बोर हो जाते थे तो गणेश की दुकान पर चाय की प्याली के साथ दुनियाभर की डिबेट करते थे।

Posted By: Inextlive