जन्म: 15 जनवरी, 1935 प्रतापगढ़

मृत्यु: 25 दिसंबर 2020, प्रयागराज

PRAYAGRAJ: 'कई चांद थे सरे आसमां कि चमक-चमक के पलट गए.' शायरी की यह लाइन दर्ज है उस किताब में जिसे लिखा शम्सुर्रहमान फारुकी साहब ने। किताब का शीर्षक भी इसी शेर से है, 'कई चांद थे सरे आसमां.' एक ऐसा नॉवेल, जिसे पढ़ते हुए आप एक दूसरी ही दुनिया की सैर करने लगते हैं। शुक्रवार को इस शानदार शाहकार को रचने वाले शम्सुर्रहमान साहब भी इस फानी दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। उर्दू अदब और साहित्य के जानने वालों ने यह खबर सुनी तो दिल ही दिल में दुआ की, 'अब आसमां में चांद बनकर चमकिएगा फारुकी साहब.'

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शिक्षक बनना चाहते थे फारूकी साहब

फारुकी यूं तो हिंदी और उर्दू अदब के चमकते हुए सितारे थे, लेकिन उनकी एक चाहत थी जो उनके दिल में कसक बनकर रह गई। यह चाहत थी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में शिक्षक बनने की। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि उन्हें ताउम्र इस बात का मलाल रहेगा कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में वह शिक्षक नहीं बन सके। उन्होंने कहा था कि तालीम के नजरिए से मैं साहित्य की टूटकर खिदमत करना चाहता हूं। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। डॉ। शम्सुर्रहमान फारुकी द्वारा रचित उपन्यास, अनुवाद, शेर, गजल और साहत्य से कला से जुड़ी विभिन्न विधाओं के पुस्तकों की लंबी फेहरिस्त है।

कई पुरस्कार भी मिले

-साहित्यिक जुड़ाव के चलते फारुकी साहब को उन्हें देश के सर्वोच्च पुरस्कार पद्मश्री से लेकर अनेक चोटी के पुरस्कार मिले।

-वह अमेरिका के असर लखनवी सहित दुनियाभर में दर्जनों बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके थे।

-उनके छोटे भाई प्रो। नईमुर्रहमान एनआर फारुकी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कुलपति पद से ही रिटायर हुए हैं।

-दो बेटियां बारां फारुकी जामिया मिलिया इस्लामिया नई दिल्ली में अंग्रेजी की प्रोफेसर हैं तो दूसरी बेटी मेहर अफशां अमेरिका के वर्जीनिया में प्रोफेसर हैं।

Posted By: Inextlive