हाई कोर्ट ने कहा, बेसहारा पशुओं को रखने के लिए रास्ता निकालने की जरूरत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में गोवध संरक्षण कानून के दुरुपयोग व बेसहारा जानवरों की देखभाल की हालत पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि सूबे में गोवध संरक्षण कानून का उपयोग निर्दोष लोगों के खिलाफ हो रहा है। मांस बरामद होने पर उसकी फॉरेंसिक लैब में जांच कराए बगैर उसे गोमांस बताकर निर्दोष व्यक्तियों को जेल भेजा जाता है।

वास्तविकता जानने की कोशिश नहीं

कोर्ट ने बेसहारा (छुट्टा) जानवरों की देखभाल की स्थिति पर कहा कि प्रदेश में गोवध अधिनियम को सही भावना के साथ लागू करने की जरूरत है। यह आदेश जस्टिस सिद्धार्थ ने गोवध कानून के तहत जेल में बंद रामू उर्फ रहीमुद्दीन के जमानत प्रार्थना पत्र में दिया है। कोर्ट ने याची की जमानत मंजूर करते हुए उसे निर्धारित प्रक्रिया पूरी करके रिहा करने का आदेश दिया है। रामू के जमानत प्रार्थना पत्र में कहा गया था कि प्राथमिकी में याची के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं है। न ही वह घटनास्थल से पकड़ा गया है। पुलिस ने बरामद मांस की वास्तविकता जानने का कोई प्रयास नहीं किया कि वह गाय मांस ही है या किसी अन्य जानवर का। कोर्ट ने कहा कि ज्यादातर मामलों में जब मांस पकड़ा जाता है तो उसे गोमांस बता दिया जाता है। आरोपी को उस अपराध में जेल जाना पड़ता है।

तैयार नहीं होता रिकवरी मेमो

इसी प्रकार जब कोई गोवंश बरामद होता है तो कोई रिकवरी मेमो तैयार नहीं किया जाता है। किसी को नहीं पता होता है कि बरामदगी के बाद उसे कहां ले जाया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि गो-सरंक्षण गृह और गोशाला वृद्ध और दूध न देने वाले पशुओं को नहीं लेते हैं। पुलिस और स्थानीय लोगों द्वारा पकड़े जाने के डर से वे इन पशुओं को किसी दूसरे राज्य में ले नहीं जाते।

दूध न देने वाले जानवरों को घूमने के लिए छुट्टा छोड़ दिया जाता है। ऐसे पशु किसानों की फसल बर्बाद कर रहे हैं। ये बेसहारा जानवर सड़क और खेत दोनों जगह समाज को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। इन्हें गो सरंक्षण गृह या अपने मालिकों के घर रखने के लिए कोई रास्ता निकालने की आवश्यकता है।

-इलाहाबाद हाई कोर्ट

Posted By: Inextlive